Category Archives: सम्‍पादकीय

सिर्फ़ एक धर्म विशेष क्यों, हर धर्म के धार्मिक कट्टरपन्थी अतिवादी संगठनों पर रोक क्यों नहीं?

लेकिन यहाँ एक और अहम सवाल है। क्या पीएफ़आई देश में एकमात्र धार्मिक कट्टरपन्थी और आतंकवादी संगठन है? क्या केवल पीएफ़आई है जो जनता के बीच धार्मिक व साम्प्रदायिक कट्टरपन्थ और दक्षिणपन्थी अतिवादी सोच का प्रचार-प्रसार कर रहा है? सच तो यह है कि हमारे देश में जनता की एकता को हर प्रकार के धार्मिक कट्टरपन्थी और दक्षिणपन्थी साम्प्रदायिक अतिवाद से ख़तरा है और पीएफ़आई ऐसा अकेला संगठन नहीं है जो इस प्रकार की प्रतिक्रियावादी और जनविरोधी विचारधाराओं के प्रचार-प्रसार और अतिवादी गतिविधियों में लगा रहा है। यहाँ तक कि पीएफ़आई को इस मामले में सबसे बड़ा ख़तरा भी नहीं कहा जा सकता है।

बेरोज़गारी की विकराल स्थिति

आज हमारे देश में बेरोज़गारी की जो हालत है, वह कई मायने में अभूतपूर्व है। मोदी सरकार की पूँजीपरस्त नीतियों की क़ीमत देश की मेहनतकश जनता कमरतोड़ महँगाई और विकराल बेरोज़गारी के रूप में चुका रही है। इन दोनों का नतीजा है कि हमारे देश में विशेष तौर पर पिछले आठ वर्षों में ग़रीबी में भी ज़बर्दस्त बढ़ोत्तरी हुई है। हम मेहनतकश लोग जानते हैं कि जब भी बेरोज़गारी, महँगाई और ग़रीबी का क़हर बरपा होता है, तो उसका ख़ामियाज़ा भुगतने वाले सबसे पहले हम लोग ही होते हैं। क्योंकि पूँजीपति और अमीर वर्ग अपने मुनाफ़े की हवस से पैदा होने वाले आर्थिक संकट का बोझ भी हमारे ऊपर ही डाल देते हैं।

जनवादी व नागरिक अधिकारों के लिए जुझारू जनान्दोलन खड़ा करो!

हम ‘मज़दूर बिगुल’ के पन्नों पर मोदी के सत्ता में आने के पहले से ही बार-बार यह लिखते रहे हैं कि आज के दौर के फ़ासीवाद की ख़ासियत यह है कि यह नात्सी पार्टी व हिटलर तथा फ़ासिस्ट पार्टी व मुसोलिनी के समान बहुदलीय संसदीय बुर्जुआ जनतंत्र को भंग नहीं करेगा। आम तौर पर, यह बुर्जुआ चुनावों को बरक़रार रखेगा, संसदों और विधानसभाओं को बरक़रार रखेगा व काग़ज़ी तौर पर बहुतेरे जनवादी-नागरिक अधिकारों को भी औपचारिक तौर पर बनाये रखेगा। लेकिन पूँजीवादी जनवाद का केवल खोल ही बचेगा और उसके अन्दर का माल-मत्ता नष्ट हो जायेगा। आज हमारे देश में यही हो रहा है।

भाजपा के “राष्ट्रवाद” और देशप्रेम की खुलती पोल : अब मज़दूरों-किसानों के बेटे-बेटियों को पूँजीपति वर्ग के “राष्ट्र” की “रक्षा” भी ठेके पर करनी होगी!

‘अग्निपथ’ वास्तव में सैनिक व अर्द्धसैनिक बलों में रोज़गार को ठेका प्रथा के मातहत ला रही है। यह एक प्रकार से ‘फ़िक्स्ड टर्म कॉण्ट्रैक्ट’ जैसी व्यवस्था है, जिससे हम मज़दूर पहले ही परिचित हो चुके हैं और जिसके मातहत एक निश्चित समय के लिए आपको काम पर रखा जाता है, और फिर आपको दूध में पड़ी मक्खी की तरह निकालकर फेंक दिया जाता है। पहले मज़दूरों की बारी आयी थी, अब सैनिकों की बारी आयी है। जैसा कि एक कवि पास्टर निमोलर ने कहा था, फ़ासीवादी देशप्रेम और “राष्ट्रवाद” की ढपली बजाते हुए अन्तत: किसी को नहीं छोड़ते!

बढ़ती महँगाई का असली कारण

अपनी सरकार के आठ साल बीतते-बीतते आखिरकार नरेन्द्र मोदी ने देश की जनता को “अच्छे दिन” दिखला ही दिये! थोक महँगाई दर मई 2022 में 15.08 प्रतिशत पहुँच चुकी थी और खुदरा महँगाई दर इसी दौर में 7.8 प्रतिशत पहुँच चुकी थी। थोक कीमतों का सूचकांक उत्पादन के स्थान पर थोक में होने वाली ख़रीद की दरों से तय होता है, जबकि खुदरा कीमतों का सूचकांक महँगाई की अपेक्षाकृत वास्तविक तस्वीर पेश करता है, यानी वे कीमतें जिन पर हम आम तौर पर बाज़ार में अपने ज़रूरत के सामान ख़रीदते हैं। बढ़ते थोक व खुदरा कीमत सूचकांक का नतीजा यह है कि मई 2021 से मई 2022 के बीच ही आटा की कीमत में 13 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है।

मई दिवस को मज़दूर वर्ग के जुझारू संघर्ष की नयी शुरुआत का मौक़ा बनाओ!

मई दिवस का नाम हम सभी जानते हैं। हममें से कुछ हैं जो 1 मई, यानी मज़दूर दिवस या मई दिवस, के पीछे मौजूद गौरवशाली इतिहास से भी परिचित हैं। लेकिन कई ऐसे भी हैं, जो कि इस इतिहास से परिचित नहीं हैं। यह भी एक त्रासदी है कि हम मज़दूर अपने ही तेजस्वी पुरखों के महान संघर्षों और क़ुर्बानियों से नावाकि़फ़ हैं। जो मई दिवस की महान अन्तरराष्ट्रीय विरासत से परिचित हैं, वे भी आज इसे एक रस्मअदायगी क़वायदों में डूबता देख रहे हैं। कहीं न कहीं हमारे जीवन की तकलीफ़ों में हम भी जाने-अनजाने इसे रस्मअदायगी ही मान चुके हैं। यह मज़दूर वर्ग के लिए बहुत ख़तरनाक बात है। क्यों?

मज़दूर और मेहनतकश दोस्तो! फ़ासिस्ट मोदी सरकार की साज़िश से सावधान!

चार राज्यों में विधानसभा चुनावों के समाप्त होते ही मोदी सरकार ने क़रीब दस दिनों तक हर रोज़ पेट्रोल की क़ीमतों में बढ़ोत्तरी की। अब हालत यह है कि पेट्रोल की क़ीमत 100 का आँकड़ा पार कर चुकी है और डीज़ल की क़ीमत 100 के आँकड़े को छूने के क़रीब जा रही है। हम मज़दूर-मेहनतकश जानते हैं कि पेट्रोलियम उत्पादों की क़ीमत बढ़ने का मतलब है हर चीज़ की क़ीमत बढ़ना। इससे न सिर्फ़ पेट्रोल, डीज़ल, सीएनजी और रसोई गैस की क़ीमतों में सीधे बढ़ोत्तरी होती है, बल्कि लगभग हर सामान की क़ीमत में बढ़ोत्तरी होती है।

विधानसभा चुनावों में भाजपा फिर क्यों जीती?

भाजपा को चार राज्यों में हालिया विधानसभा चुनावों में भारी जीत मिली है। यहाँ तक कि जिन राज्यों में भाजपा और कांग्रेस के बीच काँटे के मुक़ाबले की बात की जा रही थी, उन राज्यों में भी भाजपा ने आराम से कांग्रेस को पीछे छोड़कर बहुमत हासिल किया। देशव्यापी पैमाने पर जिस राज्य के चुनावों का प्रभाव सबसे ज़्यादा पड़ना था वह था उत्तर प्रदेश। वहाँ भाजपा की सीटों में कमी आयी और प्रमुख प्रतिद्वन्द्वी पार्टी समाजवादी पार्टी की सीटों में अच्छी-ख़ासी बढ़ोत्तरी के बावजूद भाजपा ने आराम से बहुमत हासिल किया। इसके साथ ही उत्तर प्रदेश को फ़ासीवाद की प्रयोगशाला बनाने का सबसे बर्बर क़िस्म का प्रयोग भी अब आगे बढ़ेगा, जिसका सिरमौर योगी आदित्यनाथ है।

बजट : पूँजीपतियों की सेवा में बिछी मोदी सरकार की आम मेहनतकश जनता से फिर ग़द्दारी

जैसा कि अनुमान था, मोदी सरकार का नया बजट भी मज़दूरों और आम मेहनतकश आबादी की पूँजीपतियों और धन्नासेठों द्वारा खुली लूट का इन्तज़ाम करने का दस्तावेज़ है। आज जब कि बेरोज़गारी देश के मज़दूरों, कर्मचारियों और आम घरों से आने वाले नौजवानों के लिए सबसे बड़ा मुद्दा बनी हुई है और उत्तर प्रदेश और बिहार में इस पर युवाओं के स्वत:स्फूर्त आन्दोलन फूट रहे हैं, तो मोदी सरकार की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बेरोज़गारी शब्द का अपने बजट भाषण में एक बार भी नाम नहीं लिया और ‘नौकरी’ शब्द का केवल एक जगह नाम लिया।

पाँच राज्यों में आगामी विधानसभा चुनावों के मद्देनज़र क्रान्तिकारी मज़दूर वर्ग का नारा

पाँच राज्यों, उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, पंजाब, गोआ और मणिपुर में फ़रवरी-मार्च में होने वाले विधानसभा चुनावों के नज़दीक आने के साथ ही संघ परिवार और उसके चुनावी चेहरे भाजपा ने साम्प्रदायिकता की लहर फैलाने का काम शुरू कर दिया है। जहाँ एक ओर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ मन्दिर राजनीति की नये सिरे से शुरुआत कर काशी विश्वनाथ और मथुरा में मन्दिर निर्माण का मसला उछाल रहे हैं, वहीं दूसरी ओर हरिद्वार में धार्मिक कट्टरपन्थियों द्वारा किये गये कार्यक्रम में सीधे मुसलमानों के नरसंहार का आह्वान करना भी संघ परिवार की रणनीति का ही एक अंग है और धार्मिक कट्टरपन्थ और साम्प्रदायिकता की लहर को उभाड़ने का ही एक उपकरण था।