Category Archives: अर्थवाद लेखमाला

मज़दूर आन्दोलन में मौजूद किन प्रवृत्तियों के ख़िलाफ़ मज़दूर वर्ग का लड़ना ज़रूरी है? – (तीसरी क़िस्त)

लेनिन अर्थवादियों की इस समझदारी की आलोचना भी प्रस्तुत करते हैं जो कहती थी कि आर्थिक संघर्ष ही जनता को राजनीतिक संघर्ष में खींचने का वह तरीक़ा है जिसका सबसे अधिक व्यापक ढंग से इस्तेमाल किया जा सकता है। लेनिन के अनुसार यह राजनीतिक आन्दोलन को आर्थिक आन्दोलन के पीछे घिसटने की अर्थवादी नसीहत है। ज़ोर-ज़ुल्म और निरंकुशता की हर अभिव्यक्ति जनता को आन्दोलन में खींचने के लिए रत्ती भर भी कम व्यापक उपयोगयोग्य तरीक़ा नहीं है। इसपर सही अवस्थिति यह कि आर्थिक संघर्षों को भी अधिक से अधिक व्यापक आधार पर चलाना चाहिए और उनका इस्तेमाल हमेशा और शुरुआत से ही राजनीतिक उद्वेलन के लिए किया जाना चाहिए। इसके विपरीत कोई भी समझदारी दरअसल राजनीति को अर्थवादी ट्रेड-यूनियनवादी जामा पहनाने जैसा है।

मज़दूर आन्दोलन में मौजूद किन प्रवृत्तियों के ख़िलाफ़ मज़दूर वर्ग का लड़ना ज़रूरी है? – (दूसरी क़िस्त)

लेनिन ने अर्थवाद का खण्डन करते हुए बार-बार दुहराया कि विचारधारा का प्रवेश मज़दूर आन्दोलन में बाहर से होता है और यह भी कि आम मज़दूरों द्वारा अपने आन्दोलन की प्रक्रिया के दौरान विकसित किसी “स्वतन्त्र” विचारधारा का कोई सवाल ही पैदा नहीं होता है, इसलिए केवल दो ही रास्ते बचते हैं, या तो बुर्जुआ विचारधारा को चुना जाये या फिर समाजवादी विचारधारा को चुना जाये। बीच का कोई रास्ता नहीं है

मज़दूर आन्दोलन में मौजूद किन प्रवृत्तियों के ख़िलाफ़ मज़दूर वर्ग का लड़ना ज़रूरी है? – (पहली क़िस्त)

अर्थवाद दरअसल मज़दूरों के लिए आर्थिक संघर्ष को ही, यानी वेतन-भत्ते और बेहतर कार्यस्थितियों के लिए संघर्ष को ही, समस्त आन्दोलन का फलक बना देता है और इस मुग़ालते में रहता है कि मज़दूर वर्ग के बीच राजनीतिक चेतना स्वतःस्फूर्त तरीक़े से इन्‍हीं आर्थिक संघर्षों मात्र से पैदा हो जायेगी। अर्थवाद के कारण ही मज़दूर वर्ग राजनीतिक प्रश्न उठाने में, जिसमें राजनीतिक सत्ता का प्रश्न सर्वोपरि है, असमर्थ हो जाता है और केवल दुवन्नी-अट्ठन्नी, भत्तों-सहूलियतों की लड़ाई के गोल चक्कर में घूमता रहता है। मज़दूर वर्ग एक राजनीतिक वर्ग के तौर पर संघटित और संगठित हो ही नहीं सकता है अगर उसके संघर्ष का क्षितिज केवल आर्थिक माँगों तक सीमित है। इसका मतलब यह नहीं है कि मज़दूर वर्ग आर्थिक माँगों की लड़ाई नहीं लड़ेगा बल्कि इसका अर्थ केवल इतना है कि एक राजनीतिक वर्ग के बतौर वह इन आर्थिक संघर्षों को भी राजनीतिक तौर पर लड़ेगा।