Category Archives: मज़दूर यूनियन

होण्डा से 3,000 ठेका मज़दूरों को निकालने के विरोध में संघर्ष तेज़

होण्डा मोटरसाइकिल एण्ड स्कूटर्स के मानेसर प्लाण्ट से मन्दी की आड़ में पिछले तीन महीनों से ठेका श्रमिकों को 50 से 100 के समूह में निकाला जा रहा है। धीरे-धीरे कम्पनी ने लगभग तीन हज़ार मज़दूरों की छँटनी कर दी है। अक्टूबर के अन्तिम सप्ताह में भी मज़दूरों ने इसके विरोध में सांकेतिक भूख हड़ताल की थी। मगर कम्पनी प्रबन्धन अपनी मनमानी करने में लगा हुआ है।

गाँव की ग़रीब आबादी के बीच मनरेगा मज़दूर यूनियन की ज़रूरत और ‘क्रान्तिकारी मनरेगा मज़दूर यूनियन’ के अनुभव

पिछले लगभग 6-7 महीनों से हरियाणा के कलायत ब्लॉक के आसपास के गाँवों में रहने वाले मनरेगा मज़दूर संघर्ष कर रहे हैं। उनके संघर्ष की शुरुआत इस बात को लेकर हुई कि मनरेगा विभाग उनके गाँव में रहने वाले सभी मज़दूरों का मनरेगा कार्ड बनाये और मनरेगा के तहत मिलने वाला काम जितना जल्द हो सके शुरू करवाये। क्रान्तिकारी मनरेगा मज़दूर यूनियन के बैनर तले ये मज़दूर अपने संघर्ष को जारी रखे हुए हैं। मनरेगा मज़दूर अपने इस संघर्ष के दौरान कलायत के तीन-चार गाँव में मनरेगा का काम शुरू करवाने में कामयाब भी हुए हैं। मनरेगा मज़दूरों को अपना यह संघर्ष जारी रखने में बहुत सारी दिक्क़तों का सामना करना पड़ रहा है। इन सभी दिक्क़तों का ज़िक्र हम आगे करेंगे।

गुड़गॉंव ऑटोमोबाइल पट्टी में जगह-जगह मज़दूरों का संघर्ष जारी है!

कंसाई नैरोलेक पेंट्स लिमिटेड के बावल (ज़ि‍ला रेवाड़ी, हरियाणा) प्लाण्ट के करीब 250 ठेका मज़दूरों को श्रम विभाग के समक्ष लिखि‍त समझौते के बावजूद कम्पनी में अभी तक काम पर वापस नहीं लिया जा रहा है। कम्पनी बदले की भावना से एक के बाद एक नया बहाना गढ़ के हड़ताल में शामिल अधिकांश ठेका मज़दूरों समेत अन्य ठेका मज़दूरों को काम पर वापस नहीं ले रही है।

लुधियाना में औद्योगिक मज़दूरों की फ़ौरी माँग के मसलों पर मज़दूर संगठनों की गतिविधि और इसका महत्व

लुधियाना उत्तर भारत के बड़े औद्योगिक केन्द्रों में से एक है। यहाँ के कारख़ानों और अन्य संस्थानों में लाखों मज़दूर काम करते हैं। ये मज़दूर भयानक लूट-दमन का शिकार हैं। यह लूट-दमन मालिकों की भी है और पुलिस-प्रशासन की भी। कारख़ाना मज़दूर यूनियन व टेक्सटाइल-हौज़री कामगार यूनियन पिछले लम्बे समय से लुधियाना के मज़दूरों को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक करने, लामबन्द व संगठित करने में लगे हुए हैं। पिछले एक दशक से भी अधिक समय में इन यूनियनों के नेतृत्व में कई छोटे-बड़े मज़दूर संघर्ष लड़े गये हैं। ये ज़्यादातर संघर्ष कारख़ानों के एक क्षेत्र या एक कारख़ाने से सम्बन्धित रहे हैं। इन संघर्षों का अपना महत्व है। लेकिन इस समय कुल लुधियाना के विभिन्न क्षेत्रों के मज़दूरों को संघर्ष की राह पर लाने की ज़रूरत है। क्योंकि विभिन्न क्षेत्रों में काम करने वाले मज़दूरों की जीवन परिस्थितियाँ लगभग एक जैसी हैं। ऐसी लामबन्दी मज़दूरों को संकीर्ण विभागवाद की मानसिकता से भी मुक्त करती है।

आँगनवाड़ी एवं आशा कर्मियों के मानदेय में बढ़ोत्तरी की घोषणा : प्रधानमन्त्री का एक और वायदा निकला जुमला!

प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी द्वारा 11 सितम्बर 2018 को आँगनवाड़ी एवं आशा कर्मियों के मानदेय में बढ़ोत्तरी की घोषणा की गयी थी। ‘आँगनवाड़ी’ और ‘आशा’ महिलाकर्मियों को मानदेय बढ़ोत्तरी का यह वायदा दिवाली के तोहफ़े के तौर पर किया गया था किन्तु अभी तक भी इस मानदेय बढ़ोत्तरी की एक फूटी कौड़ी भी किसी के खाते में नहीं आयी है! दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन को जिस बात की पहले ही आशंका थी, वही हुआ। यूनियन के द्वारा अपनी पिछली प्रेस कॉन्फ्रेंस में इस बात की आशंका भी जतायी गयी थी। प्रधानमन्त्री द्वारा किये गये वायदे के अनुसार अक्टूबर माह से कार्यकर्त्ताओं के वेतन में 1,500 रुपये और सहायिकाओं के वेतन में 750 रुपये की वृद्धि होनी थी लेकिन अक्टूबर के महीने से बढ़ी हुई यह राशि अब तक किसी महिलाकर्मी को प्राप्त नहीं हुई है।

महिला एवं बाल विकास विभाग में चल रहे भ्रष्टाचार का आँगनवाड़ी महिलाकर्मियों ने दिल्ली में किया पर्दाफ़ाश!

केन्द्र सरकार ने हाल में ही यह घोषणा की है कि आँगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं के मानदेय में क्रमशः 1500 व 750 रुपये की बढ़ोत्तरी की जायेगी! वैसे तो इस देश में शिवाजी की मूर्ति पर 3600 करोड़ व पटेल की मूर्ति पर 3000 करोड़ ख़र्च कर दिये जा रहे हैं, जिसका सीधा मक़सद जातीय वोट बैंक को भुनाना है, उलजुलूल के कामों में अरबों रूपये पानी की तरह बहाये जाते हैं, किन्तु आँगनवाड़ियों में ज़मीनी स्तर पर मेहनत करने वाली कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं को पक्का रोज़गार देने की बजाय या तब तक न्यूनतम वेतन के समान मेहनताना देने की बजाय भुलावे में रखने की कोशिश की जा रही है। मोदी सरकार 28 लाख महिलाकर्मियों के वोटों का आने वाले चुनाव के लिए 1500 और 750 रुपये में मोल-भाव कर रही है!?

ऑटोमोबाइल इण्डस्ट्री कॉण्ट्रैक्ट वर्कर्स यूनियन का प्रथम सम्मेलन सफलतापूर्वक सम्पन्न

ऑटोमोबाइल इण्डस्ट्री कॉण्ट्रैक्ट वर्कर्स यूनियन का प्रथम सम्मेलन सफलतापूर्वक सम्पन्न 7 अक्टूबर, 2018 को गुड़गाँव में ‘ऑटोमोबाइल इण्डस्ट्री कॉण्ट्रैक्ट वर्कर्स यूनियन’ के बैनर तले ‘ऑटोमोबाइल मज़दूर सम्मेलन’ का सफल आयोजन…

नोएडा में सैम्संग के नये कारख़ाने से मिलने वाले रोज़गार का सच

मोदी ने फैक्ट्री का उद्घाटन करते हुए बड़े ज़ोर-शोर से दावा किया कि यह कारख़ाना ‘मेक इन इंडिया’ की सफलता की मिसाल है और इससे हज़ारों लोगों को रोज़गार मिलेगा। नई फैक्ट्री से कितने लोगों को रोज़गार मिला यह तो अभी पता नहीं लेकिन सैम्संग कैसा रोज़गार दे रही है, यह जानना ज़रूरी है। नोएडा कारख़ाने में 1000 से अधिक ठेके के मज़दूर हैं जिन्हें 12-12 घण्टे काम करने के बाद न्यूनतम मज़दूरी भी नहीं मिलती।

हरियाणा में नगर परिषद, नगर निगम, नगर पालिका के कर्मचारियों की हड़ताल समाप्त

हड़ताल का नेतृत्व नगरपालिका कर्मचारी संघ, हरियाणा ने किया था जोकि जोकि सर्व कर्मचारी संघ, हरियाणा से सम्बन्ध रखता है। 16 दिन की हड़ताल का कुल परिणाम यह निकला की कर्मचारियों की तनख्वाह 11,700 से बढ़ाकर 13,500 कर दी गयी है। पक्का करने की माँग, ठेका प्रथा ख़त्म करने की माँग और समान काम का समान वेतन देनें की माँग पर सरकार ने वही पुराना कमेटी बैठने का झुनझुना कर्मचारी नेताओं को थमा दिया जिसे लेकर वे अपने-अपने घर आ गये। इस चीज़ में कोई दोराय नहीं है कि फ़िलहाली तौर पर मिल रहे संघर्षों के हासिल को अपने पास रख लिया जाये और आगे के संघर्षों की तैयारी की जाये। किन्तु फ़िलहाल और लम्बे समय से देश सहित हरियाणा प्रदेश में भी मज़दूर-कर्मचारी आन्दोलनों में अर्थवाद पूरी तरह से हावी है।

ऑटोमोबाइल सेक्टर के मज़दूरों के बीच माँगपत्रक आन्दोलन की शुरुआत

देश के विकास का बखान करते वक़्त सबसे पहले ऑटोमोबाइल पट्टी की बात आती है और हो भी क्यों न? देश के सकल घरेलू उत्पाद का क़रीब 7.1 फ़ीसदी हिस्सा ऑटोमोबाइल सेक्टर से ही आता है। ऑटोमोबाइल सेक्टर के उत्पादन का आधा से अधिक हिस्सा गुडगाँव-मानेसर-धारुहेड़ा–बावल से लेकर भिवाड़ी-ख़ुशखेड़ा-नीमराना में फैली औद्योगिक पट्टी से आता है। यह पट्टी देशी-विदेशी पूँजी के लिए अकूत मुनाफ़़ा लूटने का चारागाह है। किन्तु, यहाँ पर काम कर रहे मज़दूरों का जीवन नर्क से बदतर है। यहाँ हज़ारों कारख़ाना इकाइयों में काम कर रहे लाखों मज़दूर प्रतिदिन 10-12 घण्टा कमरतोड़ मेहनत करने के बावजूद बमुश्किल किसी तरह 8-10 हज़ार रुपये  प्रतिमाह कमा पाते हैं। काम के हालात इस तरह हैं कि मज़दूरों को एक मिनट के अन्दर 13 प्रक्रियाओं से गुज़रना होता है।