मज़दूर बिगुल अख़बार को घर-घर पहुँचाने की ज़रूरत है
मज़दूर बिगुल के माध्यम से मैनें लेनिन के जीवन के बारे में जाना और मुझे इनसे प्रेरणा मिली। देश दुनिया के मज़दूर आन्दोलनों, आर्थिक व्यवस्था, सरकारों की चालबाजियों को मैनें बिगुल अखबार के माध्यम से जाना। मेरा सुझाव है कि मज़दूर बिगुल में चित्र भी होने चाहियें। चित्र होते तो हैं किन्तु कम होते हैं। आम तौर पर कम पढ़े-लिखे मज़दूर लोगों को चित्र आकर्षित करते हैं। साथ ही मुश्किल शब्दों के साथ कोशिश करके आसान शब्द भी दिये जायें ताकि बिलकुल कम पढ़े-लिखे लोग भी इसे और भी आसानी से समझ सकें तथा जान सकें कि पूँजीपति उनका शोषण कैसे करते हैं और इससे कैसे छुटकारा पाया जाये। इससे इसका प्रचार ज़्यादा बढ़ेगा और फ़िर इसे पाक्षिक और साप्ताहिक भी किया जा सकता है। मैं अपने मज़दूर भाइयों से कहना चाहूँगा इसे घर-घर तक पहुँचाएँ।