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बिगुल के जुलाई-अगस्त 1996 अंक की पीडीएफ फाइल डाउनलोड करने के लिए यहाँ क्लिक करें और अलग-अलग लेखों-खबरों आदि को यूनिकोड फॉर्मेट में पढ़ने के लिए उनके शीर्षक पर क्लिक करें)
सम्पादकीय
साझा सरकार का साझा बजट : मेहनतकश अवाम के लिए कपट ही कपट
अर्थनीति : राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय
मज़दूरों द्वारा आत्महत्या नहीं पूँजीवाद द्वारा उनकी हत्या : छंटनी के कुल्हाड़े से नई आर्थिक नीति की बलिवेदी पर
संघर्षरत जनता
इंसाफ के लिए केरल की औरतों की चूल्हा-चौका हड़ताल
मज़दूर आंदोलन की समस्याएं
संसदीय मार्ग का खण्डन / महान बहस का एक अंश
साझा सरकार की काली टोपी पर टंके दो लाल फुंदने / कबीरदास
बहस
कुछ ज़्यादा ही लाल… कुछ ज़्यादा ही अन्तरराष्ट्रीय (बिगुल के स्वरूप पर आत्माराम का पत्र)
इतने ही लाल… और इतने ही अन्तरराष्ट्रीय की आज ज़रूरत है (सम्पादक बिगुल का जवाब)
विरासत
मकड़ा और मक्खी / विल्हेलम लीब्कनेख्त
समाज
गोरखपुर का सर्राफ नर्सिंग होम काण्ड : हिंसा, पूँजी और सत्ता के त्रिशूल से बींध दी गयी एक और आैरत की आत्मा और शरीर / कात्यायनी
इतिहास
15 अगस्त के मौके पर : आजादी शान्ति के रास्ते से नहीं क्रान्ति के रास्ते से मिलती है
कला-साहित्य
लोकगीत – कहां गई हैं लड़कियां
कविता – सोई हुई औरतें आगे बढ़ेंगी / ओसानो आकिको
नज़्म – कौन आज़ाद हुआ ? / अली सरदार जाफ़री
आपस की बात
आपस की बात / सुधीर ढवले, मुंबई : आलोक भट्टाचार्य, मुंबई : हरियश राय, अहमदाबाद : सुभाष ऐकट, खड़गपुर : सुरेश प्रताप सिहं, बस्ती : रामेश्वर द्विवेदी, मेघालय : नीरद जनवेणु, पुर्णिया, बिहार : शकुन्तला, देहरादून : जितेन्द्र राठोर, पटना : एक मज़दूर, कैरिज एण्ड वैगन वर्कशॉप, लखनऊ : महेश अंजुम, बोकारो : ए के दत्ता, गोरखपुर
मज़दूरों की वेदना में छिपा है एक तूफानी इंकलाब / लालचन्द, बसखारी, अम्बेडकरनगर
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बुर्जुआ अख़बार पूँजी की विशाल राशियों के दम पर चलते हैं। मज़दूरों के अख़बार ख़ुद मज़दूरों द्वारा इकट्ठा किये गये पैसे से चलते हैं।
मज़दूरों के महान नेता लेनिन