राष्ट्रीय अनुसूचित-जाति आयोग का भी दलित-विरोधी चेहरा उजागर हुआ
बिगुल संवाददाता
मजदूर बिगुल के पिछले अंक में ‘हरियाणा पुलिस की दलित विरोधी’ घटना की रिपोर्ट में बताया गया था कि भाणा गाँव में दलित उत्पीड़न के शिकार मृतक ऋषिपाल के परिवारजनों और अखिल भारतीय जाति-विरोधी मंच द्वारा न्याय का संघर्ष जारी था। इस संघर्ष के बूते ही दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ धारा 306 के तहत एफ.आई.आर दर्ज हुई थी और परिवारों को उचित मुआवजा मिला था। दलित-उत्पीड़न इस घटना का संज्ञान लेते हुए राष्ट्रीय अनुसूचित आयोग के सदस्य ईश्वर सिंह ने गांव के दौरे के दौरान दोषियों को सजा दिलवाने का आश्वासन दिया था। लेकिन पिछले डेढ़ माह की कार्रवाई के बाद एससी/एसटी आयोग का भी दलित विरोधी चेहरा उजागर हो गया है। पहले तो आयोग द्वारा पहली सुनवाई की तारीख को परिवार को देर से सूचित किया गया ताकि पुलिस-प्रशासन मामले को समझौते में निपटा दे जैसा किप्राय: हरियाणा में दलित उत्पीड़न की घटना में होता है। इस कारण हरियाण पुलिस बार-बार परिवार के बयान लेने के बहाने चक्कर लगवाती रही ताकि परिवार-जन थककर मुआवजा लेकर शांत बैठ जायें। लेकिन परिवार-जन और अखिल भारतीय जातिविरोधी मंच ने ऋषिपाल के न्याय के संघर्ष के सख्त कदम उठाने की ठान रखी थी, इसलिए पुलिस-प्रशासन का प्रयास असफल रहा। इसके बाद एससी/एसटी आयोग ने दूसरी सुनवाई पर परिवार-जन, मामले की जाँच कर रहे पुलिस अधिकारियों को तलब किया। परिवार-जन को उम्मीद थी कि देश की राजधानी के एससी/एसटी आयोग में न्याय मिलेगा। लेकिन एससी/एसटी आयोग हरियाणा के ईश्वर सिंह ने एकतरफा सुनवाई में परिवार को दोषी पुलिसकर्मियों पर से केस वापस लेने के लिए डराया-धमकाया और मुआवज़ा वापस लेने की धौंस जमाई। आयोग के सदस्य ईश्वर सिंह की बदनीयत का इस से भी पता चलता है कि उन्होंने सुनवाई में दलित परिवार की क़ानूनी मदद के लिए आये वकील को भी बाहर कर दिया। वैसे हरियाणा में विपक्ष पार्टी होने के कारण कांग्रेस से जुड़े नेता ईश्वर सिंह भाणा गाँव के दौरे में लम्बी-चौडी़ बातें कर रहे थे लेकिन आयोग के बन्द कमरे में नेता जी ने बता दिया कि वह भी पुलिस-प्रशासन और दबंगों के साथ हैं।
असल में इस पूरी घटना ने एससी/एसटी आयोग के दलित-विरोधी चेहरे को उजगार कर दिया है। साथ ही इससे यह भी पता चलता है किबढ़ते दलित-विरोधी अपारधों को रोकने में देश का क़ानून, न्याय-व्यवस्था इसलिए भी नाकाम है क्योंकि देश की चुनावी पार्टियों, नौकरशाही, पुलिस से लेकर अदालतों तक में ऊँच-नीच वाली ब्राहृमणवादी और गरीब-दलित विरोधी मानसिकता के लोग बैठे हैं। नतीजतन, इनसे आम तौर पर न्याय की उम्मीद करना व्यर्थ है। देश में मोदी सरकार के आने बाद और हरियाणा, राजस्थान में भाजपा सरकारों के सत्तासीन होने के बाद दलित-विरोधी व अल्पसंख्यक-विरोधी अपराधों में भारी बढो़त्तरी हुई है और धर्म, जात-पात के नाम पर वोट बैंक की राजनीति करने वालों से निष्पक्षता और न्यायपूर्णता के साथ कार्रवाई की उम्मीद करना बेकार है।
मज़दूर बिगुल, फरवरी 2016
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