होंडा मोटर्स, राजस्थान के मज़दूरों के आन्दोलन का बर्बर दमन, पर संघर्ष जारी है!
बिगुल संवाददाता
अलवर, राजस्थान के टप्पूखेड़ा स्थित होंडा मोटरसाइकल एंड स्कूटर्स के कारख़ाने में करीब 4000 मज़दूर पिछली 16 फरवरी को हड़ताल पर चले गये थे। वे निकाले गये 10 परमानेंट मज़दूरों को काम पर वापस लेने और 400 ठेका मज़दूरों को दुबारा काम पर रखने की मांग कर रहे हैं। इन ठेका मज़दूरों का टर्म पूरा होने के बाद कम्पनी उन्हें निकाल बाहर कर रही है। एक्टिवा स्कूटर और शाइन मोटरसाइकिल जैसी 5000 गाड़ियाँ रोज़ाना बनाने वाले इस कारखाने में मज़दूर लम्बे समय से अपनी यूनियन का रजिस्ट्रेशन कराने के लिए संघर्ष कर रहे हैं और इसी क्रम में 10 मज़दूरों को मैनेजमेंट ने निकाल दिया था। उल्लेखनीय है कि यह प्लांट गुड़गाँव और उसके आसपास की ऑटोमोबाइल पट्टी का ही एक हिस्सा है।
पिछली 16 फरवरी की शाम को टप्पूखेड़ा प्लांट के बाहर धरने पर बैठे मज़दूरों पर राजस्थान पुलिस और कम्पनी के गुंडों ने बर्बर लाठीचार्ज किया। इसी दिन सुबह एक ठेका मज़दूर के साथ सुपरवाइज़र द्वारा मारपीट के बाद मज़दूर हड़ताल पर चले गये थे। मैनेजमेंट द्वारा कई मज़दूरों के खिलाफ़ कार्रवाई करने से मज़दूरों में आक्रोश था। 16 फरवरी की सुबह एक ठेका मज़दूर ने बीमार होने के कारण काम करने में असमर्थता जताई। इस पर सुपरवाइज़र ने उस पर हमला कर दिया और उसकी गर्दन दबाने लगा। इससे मज़दूर भड़क उठे और उन्होंने काम बंद कर फैक्ट्री के भीतर ही धरना दे दिया। उस वक्त करीब 2000 मज़दूर फैक्ट्री के भीतर थे और बड़ी संख्या में मज़दूर बाहर मौजूद थे। मैनेजमेंट ने यूनियन के प्रधान नरेश कुमार को बातचीत के लिए अंदर बुलाया और इसी बीच अचानक भारी संख्या में पुलिस और बाउंसरों ने मज़दूरों पर हमला बोल दिया। उन्होंने मज़दूरों को दौड़ा-दौड़ाकर बुरी तरह लाठियों-रॉड आदि से पीटा जिसमें दर्जनों मज़दूरों को गम्भीर चोटें आयीं। पूरी फैक्ट्री पर पुलिस और गुंडों ने कब्ज़ा कर लिया। सैकड़ों मज़दूरों को गिरफ्तार कर लिया गया।
17 फरवरी को करीब 1500 मज़दूर धारूहेड़ा में एकत्र हुए क्योंकि टप्पूखेड़ा में वे दाखिल भी नहीं हो सकते थे। पूरा इलाका पुलिस के कब्ज़े में है। मज़दूरों ने पुलिसिया दमन और आतंक से डरने के बजाय 19 फरवरी को गुड़गाँव में होंडा के मुख्यालय पर प्रदर्शन आयोजित किया है। यह रिपोर्ट लिखे जाने तक मज़दूर अपने संघर्ष को जारी रखने पर डटे हुए हैं।
यह घटना भी मज़दूरों के भीतर सुलग रहे गहरे असन्तोष का एक विस्फोट मात्र है। यह आग तो सतह के नीचे पूरे राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के औद्योगिक इलाक़ों में धधक रही है, जिसमें दिल्ली के भीतर के औद्योगिक क्षेत्रों के अतिरिक्त नोएडा, ग्रेटर नोएडा, साहिबाबाद, गुड़गाँव, फ़रीदाबाद, बहादुरगढ़ और सोनीपत, पानीपत के औद्योगिक क्षेत्र भी आते हैं। राजधानी के महामहिमों के नन्दन कानन के चारों ओर आक्रोश का एक वलयाकार दावानल भड़क उठने की स्थिति में है। मज़दूरों के ख़िलाफ़ पूँजीपतियों के पक्ष में सरकार, नेताशाही, अफ़सरशाही, न्यायपालिका से लेकर कारपोरेट घरानों का मीडिया तक सब एकजुट हैं। यहाँ-वहाँ स्वतःस्फूर्त ढंग से भड़क उठने वाले मज़दूर संघर्षों के विस्फोट यदि कुछ व्यापक भी हो जायें, तो भी नवउदारवाद के इस दौर में सत्ता उन्हें हर क़ीमत पर कुचलने के लिए तैयार बैठी है। इन संघर्षों को आनन-फानन में पहुँचकर, समर्थन देकर जो संगठन स्वतःस्फूर्तता की पूजा मात्र करके कुछ लाभ उठाने की कोशिश करते हैं, वे वस्तुगत तौर पर, आख़िरकार, मज़दूर आन्दोलन को नुकसान ही पहुँचाते हैं। सबसे पहले, ज़रूरी यह है कि एक सेक्टर विशेष के सभी कारख़ानों के मज़दूरों (जैसे समूचे आटोमोबाइल सेक्टर के मज़दूर) को एक साथ संगठित करने की कोशिश की जाये ताकि वे एक साथ अपनी माँगें उठायें और यदि किसी एक कारख़ाने में मालिक उत्पीड़न करें या कोई आन्दोलन हो, तो एक साथ पूरे सेक्टर के सभी कारख़ानों को ठप्प कर देने की स्थिति हो। दूसरे, अलग-अलग सेक्टरों के मज़दूरों की आपसी एकता बनाने की कोशिश भी शुरू कर देनी होगी और उन्हें इलाक़ाई पैमाने पर संगठित करना होगा। इसका आज एक वस्तुगत आधार है, क्योंकि सभी सेक्टरों में मज़दूरों की बहुसंख्यक आबादी असंगठित है और उनकी ज़्यादातर माँगें एक समान हैं। बेशक यह काम लम्बा होगा। इसके लिए मज़दूरों के बीच राजनीतिक प्रचार एवं ‘एजिटेशन’ की लम्बी एवं सघन कार्रवाई चलानी होगी। इस काम में मालिकों और प्रशासन के अतिरिक्त चुनावी पार्टियों और संशोधनवादियों की दुकानदारी के रूप में चलने वाली यूनियनों के नौकरशाह और दल्ले भी काफ़ी अड़चनें पैदा करेंगे। लेकिन आज की परिस्थितियों में, मज़दूर संघर्ष को एकमात्र इसी रणनीति के द्वारा आगे बढ़ाया जा सकता है, इसलिए हमें इसी दिशा में अपनी पूरी ताक़त लगानी चाहिए।
मज़दूर बिगुल, फरवरी 2016
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