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(बिगुल के जनवरी 2001 अंक में प्रकाशित लेख। अंक की पीडीएफ फाइल डाउनलोड करने के लिए यहाँ क्लिक करें और अलग-अलग लेखों-खबरों आदि को यूनिकोड फॉर्मेट में पढ़ने के लिए उनके शीर्षक पर क्लिक करें)
सम्पादकीय
साम्प्रदायिक कट्टरपंथी फासीवादी राजनीति की नई सरगर्मियां : अयोध्या मुद्दे को उछालकर चुनावी गोटी लाल करने का भाजपाई कुचक्र
अर्थनीति : राष्ट्रीय/ अन्तर्राष्ट्रीय
अब विश्व बैंक तय करेगा कर्मचारियों की कार्य-संस्कृति
दिल्ली विद्युत बोर्ड के निजीकरण की तैयारियां
एनरान ने शिक्षित किया और स्वदेशी झण्डाबरदारों ने जनता को चूना लगाया / राकेश
संघर्षरत जनता
चीन में मेहनतकश जनता के संघर्ष : सड़कों पर बह रहा है पिघला गर्म लावा फिर से : क्या आने वाले दशकों में फिर से संभावित है बसन्त का बज्रनाद / अरविन्द सिंह
आन्दोलन : समीक्षा-समाहार
डाककर्मियों की चौदह दिनी देशव्यापी हड़ताल : एक जर्बदस्त संघर्ष और उसकी अफसोसनाक हार तथा कुछ जरूरी सबक
मज़दूर आंदोलन की समस्याएं
संसदीय वामपंथियों का एक और दोगलापन : स्वास्थ्य का निजीकरण और निजीकरण की मुख़ालफत / मुकुल श्रीवास्तव
लेखमाला
चीन की नवजनवादी क्रान्ति के अर्द्धशतीवर्ष के अवसर पर – जनमुक्ति की अमर गाथा : चीनी क्रान्ति की सचित्र कथा (भाग दस)
कारखाना इलाकों से
कोलार का सोना खदान बन्द : हजारों मज़दूर भुखमरी के हवाले
दयनीय स्थितियों में काम कर रहे हैं लुधियाना के अप्रवासी मज़दूर / विजय नारायण, अरविन्द कुमार, लुधियाना
औद्योगिक दुर्घटनाएं
मुनाफे की अंधी हवस और दुर्घटनाओं के शिकार होते मज़दूर
कला-साहित्य
कहानी – बाज का गीत / मक्सिम गोर्की
आपस की बात
सुधारवाद से नहीं, क्रान्तिकारी तरीके से समाज बदलेगा / दशरथ प्रसाद कुशवाहा, टीकमगढ़
स्टालिन का साक्षात्कार : आज के दौर में लिए जरूरी सामग्री / रमाकांत शर्मा
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बुर्जुआ अख़बार पूँजी की विशाल राशियों के दम पर चलते हैं। मज़दूरों के अख़बार ख़ुद मज़दूरों द्वारा इकट्ठा किये गये पैसे से चलते हैं।
मज़दूरों के महान नेता लेनिन