वियतनाम में मज़दूरों की जुझारू एकजुटता ने ज़ुल्मी हुक़्मरानों को झुकाया
आनन्द
वियतनाम के हो ची मिन्ह शहर में नाइकी और एडिडास जैसी साम्राज्यवादी लुटेरी कम्पनियों के लिए जूते बनाने वाली एक कम्पनी के हज़ारों मज़दूरों ने पिछले महीने के अन्त में मज़दूर वर्ग की जुझारू एकजुटता का एक शानदार नमूना पेश कर वहाँ की सरकार को झुकने पर मजबूर कर दिया।
ताइवानी जूता कम्पनी पाऊ यूएन में काम करने वाले करीब 90,000 मज़दूरों ने सरकार के प्रस्तावित बीमा क़ानून के विरोध में 26 मार्च से हड़ताल का ऐलान कर दिया। हो ची मिन्ह शहर के तान ताओ औद्योगिक इलाक़े में इन मज़दूरों को एकजुट होता देख अन्य कारखानों के मज़दूर भी इस हड़ताल के समर्थन में आने लगे और देखते ही देखते यह हड़ताल एक व्यापक मज़दूर आन्दोलन की शक्ल अख़्तियार करने लगी। आसपास की फैक्ट्रियों में भी हड़ताल के फ़ैलने का ख़तरा मँडराने लगा। 1 अप्रैल को हो ची मिन्ह शहर के नज़दीक एक दूसरे शहर में भी एक कारखाने के मज़दूर हड़ताल में शामिल हो गए। मज़दूरों की इस अभूतपूर्व एकजुटता को देखते हुए ताइवान के संशोधनवादी हुक़्मरान सकते में आ गए। प्रधानमंत्री न्गूएन तान दुंग द्वारा नये बीमा क़ानून को वापस लेने से संबन्धित मज़दूरों की माँगें मानने के आश्वासन के बाद मज़दूरों ने अपनी एक सप्ताह तक चली हड़ताल को समाप्त किया।
ग़ौरतलब है कि पिछले कुछ वर्षों से ताइवान नाइकी और एडिडास जैसी जूता कम्पनियों से लेकर कपड़ा कम्पनियों द्वारा मज़दूरों की मेहनत की लूट का खुला चारागाह बना हुआ है। दक्षिण कोरिया, चीन और ताइवान जैसे देशों में पिछले कुछ वर्षों में श्रम की लागत बढ़ जाने की वजह से तमाम साम्राज्यवादी राष्ट्रपारीय निगमों ने अपने उत्पादन को वियतनाम, इंडोनेशिया और बांग्लादेश जैसे देशों की ओर मोड़ा है जहाँ मज़दूरों से नरक जैसे हालात में काम करवाकर वे अतिलाभ निचोड़ रहे हैं। भूमण्डलीकरण के युग में पूरी दुनिया के पैमाने पर एक विश्वव्यापी अदृश्य असेंबली लाइन का निर्माण हुआ है जिसमें किसी उत्पाद के सभी हिस्से एक ही कारखाने में बनने की बजाय अलग-अलग कारखानों में बनते हैं और उनकी असेंबलिंग भी अलग कारखाने में होती है। पश्चिमी देशों में अपनी छीछालेदर से बचने के लिए ये दैत्याकार निगम उत्पादन का काम खुद से नहीं बल्कि ठेकेदारों और उप ठेकेदारों के ज़रिये करवाते हैं जो मज़दूरों का निर्ममता से शोषण करने में पारंगत होते हैं।
वियतनाम में शासन करने वाली पार्टी खुद को कम्युनिस्ट पार्टी कहती है लेकिन कम्युनिज़्म के उसूलों एवं मज़दूर वर्ग से विश्वासघात का आलम यह है कि वह 1980 के दशक से ही नवउदारवाद की राह पर चलती आयी है। साम्राज्यवादियों के दबाव में वह मज़दूर वर्ग के बचे-खुचे अधिकारों को भी छीनने में जी जान से जुटी है। हाल ही में इस पार्टी ने श्रमिकों के पेंशन से संबन्धित एक नये क़ानून को पारित करवाया है जिसको अगले वर्ष से लागू होना है। मज़दूरों को इस क़ानून से आपत्ति यह थी कि इसके लागू होने के बाद मज़दूरों को सामाजिक सुरक्षा के रूप में मिलने वाला वाली पेंशन की राशि किसी भी सूरत में उनको रिटायरमेंट के पहले नहीं मिल सकेगी। इसके अलावा मज़दूर रिटायरमेंट की उम्र बढ़ाने की भी माँग कर रहे थे। ग़ौरतलब है कि वियतनाम की संशोधनवादी सरकार विश्वबैंक व आईएमएफ के निर्देशानुसार नवउदारवादी नीतियाँ मज़दूरों पर थोपने की पूरी तैयारी कर चुकी है।
वियतनाम के मज़दूरों की यह हड़ताल इस मायने में महत्वपूर्ण रही कि मज़दूर केवल अपनी फैक्ट्री के मालिक के खि़लाफ़ ही नहीं बल्कि मालिकों के समूचे वर्ग की नुमाइंदगी करने वाली सरकार की नीतियों के खि़लाफ़ एकजुट हुए और उनकी माँगें सामाजिक सुरक्षा जैसे अहम मसले से जुड़ी थीं। वियतनाम जैसे देश में जहाँ मज़दूर आन्दोलन कम ही सुनने में आते हैं, इतनी बड़ी हड़ताल यह संकेत दे रही है कि भूमण्डलीकरण के दौर में नवउदारवादी नीतियों के खि़लाफ़ दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में मज़दूर वर्ग का गुस्सा स्वतःस्फूर्त रूप से फूट रहा है। एक हालिया रिपोर्ट के मुताबिक पिछले कुछ वर्षों में चीन में भी मज़दूरों की हड़तालों में जबर्दस्त बढ़ोतरी हुई है। पूँजीवाद का संकट खुद ही मज़दूर वर्ग में असंतोष की भावना पैदा कर रहा है। ऐसे में ज़रूरत इस बात की है कि मज़दूर वर्ग के आक्रोश को व्यवस्था परिवर्तन की ओर मोड़ा जाये।
मज़दूर बिगुल, अप्रैल 2015
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मज़दूरों के महान नेता लेनिन