(मज़दूर बिगुल के फरवरी 2015 अंक में प्रकाशित लेख। अंक की पीडीएफ फाइल डाउनलोड करने के लिए यहाँ क्लिक करें और अलग-अलग लेखों-खबरों आदि को यूनिकोड फॉर्मेट में पढ़ने के लिए उनके शीर्षक पर क्लिक करें)

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सम्‍पादकीय

दिल्ली में ‘आम आदमी पार्टी’ की अभूतपूर्व विजय और मज़दूर आन्दोलन के लिए कुछ सबक

अर्थनीति : राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय

अमेरिका व भारत की “मित्रता” के असल मायने / लखविन्‍दर

सेज़ के बहाने देश की सम्पदा को दोनो हाथों से लूटकर अपनी तिज़ोरी भर रहे हैं मालिक! / तर्कवागीश

कोल इण्डिया लिमिटेड में विनिवेश / आनन्‍द

कॉरपोरेट जगत की तिजोरियाँ भरने के लिए जनहित योजनाओं की बलि चढ़ाने की शुरुआत / राजकुमार

श्रम कानून

श्रम क़ानूनों में “सुधार” के बहाने रहे-सहे अधिकार छीनने की तैयारी / सत्‍यनारायण

फासीवाद

ऐसे तैयार की जा रही है मज़दूर बस्तियों में साम्प्रदायिक तनाव की ज़मीन! / कविता कृष्‍णपल्‍लवी

संघर्षरत जनता

फ़तेहाबाद, हरियाणा के मनरेगा मज़दूर संघर्ष की राह पर

26 जनवरी को बरगदवा औद्योगिक क्षेत्र, गोरखपुर में सभा

विरासत

कुछ सीधी-सादी समाजवादी सच्चाइयाँ / पॉल लफ़ार्ग

समाज

हरियाणा के रोहतक में हुई एक और “निर्भया” के साथ दरिन्दगी

पंजाब में चुनावी पार्टियों की नशा-विरोधी मुहिम का ढोंग / छिन्‍दरपाल

विकल्‍प का खाका

देश की 50 फ़ीसदी युवा आबादी के सामने क्या है राजनीतिक-आर्थिक विकल्प? / राजकुमार

बुर्जुआ जनवाद – दमन तंत्र, पुलिस, न्‍यायपालिका

उत्तर-पूर्व की उत्पीड़ित राष्ट्रीयताएँ और दिल्ली की केन्द्रीय सत्ता / तपीश

बुर्जुआ जनवाद – चुनावी नौटंकी

केजरीवाल की राजनीति और भविष्‍य की सम्‍भावनाओं पर कुछ बातें / कात्‍यायनी

राजस्थान में पंचायती राज चुनाव में बदलाव से जनता को क्या मिला! / रवि

कारखाना इलाक़ों से

कब तक यूँ ही गुलामों की तरह सिर झुकाये जीते रहोगे

गतिविधि रिपोर्ट

साम्प्रदायिक फासीवाद के विरोध में कई राज्यों में जुझारू जनएकजुटता अभियान

दिल्ली में ‘चुनाव भण्डाफोड़ अभियान’ चुनाव में जीते कोई भी हारेगी जनता ही!

कला-साहित्य

अतीत की कड़वी यादें, भविष्य के सुनहरे सपने और भय व उम्मीद की वो रात-मक्सिम गोर्की के उपन्यास ‘माँ’ का अंश

मज़दूरों की कलम से

एक आस्तिक की पुकार / दिव्‍या, हौज़री मज़दूर, लुधियाना

आओ गीत एक गाता हूँ / रामआशीष, साईकिल कारखाना मज़दूर, गाेरखपुर


 

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मज़दूरों के महान नेता लेनिन

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