दिल्ली मेट्रो रेल के टॉम ऑपरेटरों की 5 घण्टे की चेतावनी हड़ताल
बिगुल संवाददाता
इस बार दिल्ली मेट्रो रेल में नये वर्ष की शुरुआत ठेका मज़दूरों के संघर्ष से हुई। यूँ तो पिछले लम्बे समय से दिल्ली मेट्रो रेल के ठेका मज़दूर अपनी यूनियन के माध्यम से क़ानूनी हक़-अधिकारों के लिए संघर्ष करते रहे हैं, लेकिन ठेका कम्पनी, डीएमआरसी प्रबन्धन और श्रम विभाग गठजोड़ भी मज़दूरों के शोषण करने के नये-नये तरीक़े खोजता रहता है जिसका मज़दूरों के पास सिर्फ़ एक ही जवाब होता है: संगठित होकर हड़ताल की जाये। इस बार 1 जनवरी को द्वारका मोड़ से लेकर द्वारका सेक्टर 21 तक वर्षाद ठेका कम्पनी के टॉम ऑपरेटरों (टिकट बाँटने वाले कर्मचारी) ने वेतन और बोनस न मिलने के कारण सुबह 6 बजे से 11 बजे तक काम रोक दिया। टॉम ऑपरेटर मनोज ने बताया कि वर्षाद ठेका कम्पनी ने पिछले तीन माह से न तो वेतन का भुगतान किया और दीवाली पर मिलने वाले बोनस का भुगतान किया। जिसको लेकर टॉम ऑपरेटर शिकायत करते रहे हैं लेकिन सिर्फ़ झूठे भरोसे और डराने-धमकाने के सिवाय उन्हें कुछ नहीं मिला। जिसके बाद टॉम ऑपरेटरों ने संघर्ष का रास्ता चुना और 5 घण्टे की चेतावनी हड़ताल देकर ठेका कम्पनी और डीएमआरसी प्रबन्धन की तानाशाही को करारा जवाब दिया। 11 बजे डीएमआरसी के उच्च अधिकारियों ने मज़दूरों को भरोसा दिया कि आने वाली 7 जनवरी को सभी मज़दूरों को वेतन और बोनस का भुगतान किया जायेगा। इस भरोसे पर मज़दूरों ने हड़ताल को समाप्त कर दिया। मगर इस घटना ने फिर साबित कर दिया कि दुनियाभर के तमाम अवार्ड पाने वाली दिल्ली मेट्रो रेल की चमक के पीछे ठेका मज़दूरों का भयंकर शोषण छिपा है।
यूँ कहने को आज दिल्ली मेट्रो रेल ज़रूर दिल्ली-एनसीआर की लाइफ़लाइन बन चुकी है, रोज़ाना 20 लाख से ज़्यादा यात्री मेट्रो में सफ़र करते हैं, दुनियाभर में दिल्ली मेट्रो रेल को हम ठेका मज़दूरों और कर्मचारियों ने नम्बर 1 मेट्रो रेल बना दिया। मगर इस चमचमती मेट्रो रेल को चलाने वाले हज़ारों ठेका मज़दूर (टॉम ऑपरेटर, सफ़ाईकर्मी और सिक्योरिटी गार्ड) की ज़िन्दगी में अँधेरा ही है। लगभग 5 हज़ार से ज़्यादा ठेका मज़दूर दिन-रात मेट्रो रेल के बेहतर परिचालन के लिए कमर-तोड़ मेहनत करते हैं लेकिन बदले में डीएमआरसी और ठेका कम्पनियाँ बुनियादी श्रम-क़ानून जैसे न्यूनतम वेतन, ईएसआई, पीएफ़ या बोनस के क़ानून भी लागू नहीं करती हैं। यूँ तो प्रत्येक मेट्रो स्टेशन पर न्यूनतम मज़दूरी क़ानून के बोर्ड लगे हुए हैं लेकिन हम मज़दूर जानते हैं कि ये क़ानून सिर्फ़ बोर्ड या काग़ज़ों पर शोभा बढ़ाते हैं, असल में डीएमआरसी और ठेका कम्पनियाँ खुलेआम श्रम-क़ानूनों का उल्लंघन करते हैं, जिसके खि़लाफ़ यूनियन ने कई दफ़ा डीएमआरसी और ठेका कम्पनियों को श्रम विभाग में दोषी भी साबित किया है। लेकिन श्रम विभाग की मिलीभगत से मज़दूरों को उनका जायज़ हक़ नहीं मिलता।
तभी आज सभी कम्पनियाँ नौकरी के नाम पर 25 हज़ार सिक्योरिटी मनी वसूलती हैं और सालभर में ही छँटनी या रि-कॅाल करके नयी भर्ती के नाम पर कमाई करती हैं। वहीं सफ़ाईकर्मियों के हालात और भी बदतर हैं। यूँ तो प्रधानमन्त्री मोदी देशभर में स्वच्छता अभियान की नौटंकी चला रहे हैं लेकिन जो असल ज़िन्दगी में दिन-रात मेट्रो रेल में साफ़-सफ़ाई का बोझ उठाता है, उन सफ़ाईकर्मियों को न्यूनतम वेतन भी नहीं मिलता है। असल में इस शोषण और अत्याचार के ज़िम्मेदार हम भी हैं क्योंकि चुपचाप सब कुछ सहन करते जाते हैं, दूसरा हम अलग-अलग कम्पनियों के नाम पर बिखरे हुए हैं जबकि हमारी मेहनत को लूटने वाली ठेका कम्पनियाँ और डीएमआरसी प्रबन्धन एक हैं। इसका जवाब मज़दूर सिर्फ़ अपनी एकता से ही दे सकते हैं। पहले भी ‘दिल्ली मेट्रो रेल कॉण्ट्रैक्ट वर्कर्स यूनियन’ ने मेट्रो मज़दूरों के संघर्ष लड़े हैं और जीते हैं। इस संघर्ष के साथ यूनियन ने नये सिरे से ठेका मज़दूरों के हक़ों के लिए और साथ ही यूनियन पंजीकरण के कार्य को पूरा करने की मुहिम की शुरुआत की है। ज्ञात हो कि पिछले 2 वर्षों से डीएमआरसी प्रशासन और श्रम विभाग मिलीभगत से यूनियन के पंजीकरण को रोकने का प्रयास करते रहे हैं। यह और कुछ नहीं उनके डर को दिखलाता है। निश्चित तौर पर, ऐसी चालें यूनियन के पंजीकरण को नहीं रोक सकती हैं। मज़दूर नये सिरे से यूनियन को पंजीकृत कराने की मुहिम चला रहे हैं। द्वारका लाइन के मेट्रो मज़दूरों की हड़ताल महज़ एक चेतावनी और शुरुआत थी। इसके साथ, मेट्रो ठेका मज़दूरों का संघर्ष फिर से शुरू हो गया है।
मज़दूर बिगुल, जनवरी 2015
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