गोरखपुर में मज़दूरों की बढती एकजुटता और संघर्ष से मालिक घबराये
बरगदवा क्षेत्र में फिर से मज़दूर आन्दोलन की राह पर
बिगुल संवाददाता
गोरखपुर में पिछले दिनों तीन कारखाने के मज़दूरों के जुझारू संघर्ष की जीत से उत्साहित होकर बरगदवा इलाके के दो और कारखानों के मजदूर भी आन्दोलन की राह पर उतर पड़े हैं। इलाके के कुछ अन्य कारखानों मे भी मजदूर संघर्ष के लिए कमर कस रहे हैं।
वर्षों से बुरी तरह शोषण के शिकार, तमाम अधिकारों से वंचित और असंगठित बरगदवा क्षेत्र के हज़ारों मज़दूरों में अपने साथी मज़दूरों के सफल आन्दोलन ने उम्मीद की एक लौ जगा दी है।
मॉर्डन लेमिनेटर्स तथा मॉर्डन पैकेजिंग के मज़दूर आन्दोलन की राह पर
इस इलाके में प्लास्टिक की बोरियाँ बनाने वाले दो बड़े कारखाने हैं मॉर्डन लेमिनेटर्स प्रा.लि. और मॉर्डन पैकेजिंग प्रा.लि.। एक ही परिसर में स्थित इन दो कारखानों में कुल एक हज़ार से ज्यादा मज़दूर काम करते हैं। इनमें करीब आधे मज़दूर ठेकेदार के हैं और आधे कम्पनी के हैं, लेकिन दोनों की हालत में कोई अन्तर नहीं है। सभी पीस रेट (मीटर रेट) पर काम करते हैं। रेट इतना कम है कि रोज़ 12 घण्टे 28-29 दिन लगातार काम करें तब जाकर करीब 4000 रुपये मज़दूरी बनेगी। लेकिन हमेशा इतना काम नहीं मिलता। वाइंडर का काम करने वालों को तो 12 घण्टे काम करने के बाद 2400 से 3000 रुपये ही मिलते हैं।
यहाँ पर करीब 150 लूम पर सीमेण्ट और खाद की बोरियाँ बनती हैं। प्लास्टिक के दानों को पिघलाकर शीट तैयार करना, उनकी कटाई-सिलाई सब यहीं होती है। पीवीसी पिघलाने के कारण कारखाने में भीषण गर्मी होती है और हालात स्वास्थ्य के लिए भी बेहद नुकसानदेह होते हैं। लेकिन इनसे बचाव का कोई इन्तज़ाम नहीं है।
इन दोनों कारखानों का मालिक बथवाल परिवार है जिसके मुखिया पवन बथवाल पहले शहर के कांग्रेसी मेयर थे और आजकल भाजपा में हैं। गोरखपुर के भाजपा सांसद योगी आदित्यनाथ से भी उनकी काफी करीबी है। मज़दूरों को डराने-धमकाने और चुप कराने के लिए वह हर तरह के हथकण्डे अपनाते रहे हैं। मज़दूरों ने पहले कई बार यूनियन बनाने की कोशिश की, लेकिन मालिक ने एक-दो अगुआ मज़दूरों को पैसे देकर और बाकी को डरा-धमकाकर आन्दोलन की नौबत ही नहीं आने दी।
पिछले दिनों बरगदवा क्षेत्र की दो धागा मिलों तथा एक कपड़ा मिल के मज़दूर के सफल आन्दोलन (देखें, बिगुल, जुलाई 2009) के दौरान ही बोरी मिल मज़दूरों ने भी संघर्ष समिति तथा बिगुल मज़दूर दस्ता के साथियों से सम्पर्क करना शुरू कर दिया था। उन्होंने आपसी एकजुटता बनानी शुरू कर दी थी और कई बैठकों में व्यापक चर्चा के बाद मॉर्डन लेमिनेटर्स प्रा.लि. एवं मॉर्डन पैकेजिंग प्रा.लि. मज़दूर संघर्ष समिति का गठन किया गया। संघर्ष समिति की ओर से तीन अगस्त को उप श्रमायुक्त को माँगपत्रक सौंपा गया तथा चेतावनी दी गयी कि यदि 14 दिन के अन्दर प्रबन्धन ने माँगों पर गम्भीरता से विचार कर कोई ठोस कार्रवाई नहीं की तो मज़दूर आन्दोलन शुरू कर देंगे। माँगपत्रक में ठेका तथा पीसरेट खत्म करके सभी मज़दूरों को नियमित करने, नियमानुसार न्यूनतम मज़दूरी देने, काम के घण्टे 8 करने, पीएफ तथा ईएसआई की सुविधा देने, साप्ताहिक तथा अर्जित अवकाश देने तथा काम की परिस्थितियों में सुधार सहित विभिन्न माँगें शामिल हैं।
श्रम कार्यालय का जैसा मज़दूर विरोधी चेहरा अब तक सामने आया है, उसे देखते हुए मज़दूरों को कोई भ्रम नहीं है कि उनकी माँगों पर सुनवाई होगी। वे जानते हैं कि अपने हक लड़कर ही हासिल करने होंगे और वे लड़ने के लिए एकजुट और तैयार हैं।
मज़दूरों की बढ़ती एकजुटता और जुझारूपन से मालिक घबराये
इस बीच इलाके के कई अन्य कारखानों के मज़दूर भी संघर्ष के लिए एकजुट हो रहे हैं। कई छोटे-बड़े कारखानों के मज़दूरों ने बिगुल मज़दूर दस्ता के साथियों से भी सम्पर्क किया है।
मज़दूरों के इन तेवरों को देखते हुए कुछ कारखानों के मालिकों ने किसी आन्दोलन से बचने के लिए पहले ही पेशबन्दी शुरू कर दी है। जालान सरिया यहाँ की सबसे पुरानी तथा बड़ी मिलों में से एक है। इसमें 1000 से ज्यादा मज़दूर काम करते हैं। इसमें ज्यादातर काम ठेका मज़दूरों से करवाया जाता है जो कई-कई साल से बेहद कम मज़दूरी पर और बहुत खराब स्थितियों में काम कर रहे हैं। धधकती भट्ठी के आगे बिना किसी सुरक्षा इन्तज़ाम के घण्टों काम करने वाले इन मज़दूरों को सरकार द्वारा घोषित बुनियादी सुविधाएँ तक नहीं मिलतीं।
जैसे ही मालिक को पता चला कि मज़दूर आन्दोलन की तैयारी कर रहे हैं उसने फौरन काम के घण्टे 8 कर दिये तथा मज़दूरी भी बढ़ा दी। लेकिन ठेका खत्म कर मज़दूरों को नियमित करने सहित कई बुनियादी माँगें अभी बनी हुई हैं।
कुछ ऐसी ही स्थिति बरगदवा स्थित तीसरी धागा मिल जालानजी पॉलीटेक्स लि. में भी हुई। इसके मालिक विनोद कुमार जालान उसी अशोक जालान के भाई हैं जिनकी धागा मिल अंकुर उद्योग लि. के मज़दूरों ने सबसे पहले आन्दोलन का बिगुल फूँका था। 2002 में स्थापित इस मिल में 200 से ज्यादा मज़दूर वैसी ही भयंकर स्थितियों में काम करते हैं जिनमें गोरखपुर के अधिकांश मज़दूर खटने को मजबूर हैं। इन मज़दूरों ने भी आन्दोलन के दौरान संघर्ष समिति और बिगुल मजदूर दस्ता के साथियों से सम्पर्क किया था और उनके साथ कई दौर की बैठकें भी की थीं।
इसकी भनक मिलते ही मालिक ने पहले तो मज़दूरों को तरह-तरह से भरमाने की कोशिश की लेकिन उसकी दाल नहीं गली। मज़दूरों के लड़ाकू तेवरों से वह डरा हुआ था। 13 जुलाई को कपड़ा मिल मज़दूरों की जीत के बाद उसने 15 जुलाई को नोटिस निकाल दिया कि दूसरी मिलों के मज़दूरों की जो भी माँगें पूरी हुई हैं वे सब यहाँ भी पूरी की जायेंगी। इसलिए मज़दूर किसी प्रकार का आन्दोलन न करें। नोटिस में एक अगस्त से सारी माँगें लागू करने की घोषण की गयी थी। मज़दूर इस बात पर एकजुट हैं कि अगर नोटिस में किये आश्वासनों को लागू नहीं किया गया तो वे आन्दोलन का रास्ता अपनायेंगे।
माँगें मानने के बाद लागू करने में मालिकों की तिकड़मबाज़ी
जिन तीन कारखानों में मालिकों ने मज़दूरों के संघर्ष के बाद उनकी माँगें मान ली थीं, वहाँ अब वे उन्हें पूरी तरह लागू करने में दायें-बायें कर रहे हैं। अंकुर उद्योग प्रा.लि., वी.एन. डायर्स धागा मिल एवं कपड़ा मिल के मालिकान ने डीएलसी के समक्ष हुए समझौतों में जो माँगें मानी थीं, उनमें से काम के घण्टे आठ करने को तो पिछले माह ही लागू कर दिया गया था लेकिन वेतन स्लिप देने, ईएसआई तथा अन्य माँगों को वे लटकाये हुए हैं। न्यूनतम मज़दूरी देने में भी घपलेबाज़ी करके कुशल मज़दूरों का रेट न देकर सभी मज़दूरों को अर्द्धकुशल के रेट से मज़दूरी दी जा रही है। साथ ही कुछ मज़दूरों को दोगुनी मज़दूरी देने का लालच देकर वे बारह घण्टे काम कराने के लिए फुसलाने में लगे हुए हैं। लेकिन मज़दूर इन चालबाज़ियों को अच्छी तरह समझ रहे हैं और उनमें मालिकों की इन हरकतों पर तीखा आक्रोश है। अगर मालिकों ने ये हथकण्डे बन्द नहीं किये और स्वीकृत माँगों को पूरी तरह लागू नहीं किया तो मज़दूर फिर से आन्दोलन की राह पकड़ने के लिए भी तैयार हैं।
इस बीच मज़दूरों ने गोरखपुर और पूर्वी उत्तर प्रदेश के अन्य औद्योगिक क्षेत्रों में इन्हीं हालात में बुरी तरह शोषित-उत्पीड़ित अपने हजारों-हजार मज़दूर भाइयों तक एकजुटता और संगठन का अपना पैगाम भेजना शुरू कर दिया है।
बिगुल, अगस्त 2009
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