देश के विभिन्न हिस्सों में माँगपत्रक आन्दोलन-2011 की शुरुआत
अब चलो नयी शुरुआत करो! मज़दूर मुक्ति की बात करो!

बिगुल संवाददाता

सितम्बर 2010 में देश के विभिन्न हिस्सों में मज़दूर कार्यकर्ताओं, विभिन्न मज़दूर यूनियनों, और क्रान्तिकारी जनसंगठनों द्वारा माँगपत्रक आन्दोलन-2011 की शुरुआत की गयी है। यह एक महत्तवपूर्ण आन्दोलन है जिसमें भारत के मज़दूर वर्ग का एक व्यापक माँगपत्रक तैयार करते हुए भारत की सरकार से यह माँग की गयी है कि उसने मज़दूर वर्ग से जो-जो वायदे किये हैं उन्हें पूरा करे, श्रम कानूनों को लागू करे, नये श्रम कानून बनाये और पुराने पड़ चुके श्रम कानूनों को रद्द करे। इस माँगपत्रक में करीब 26 श्रेणी की माँगें हैं जो आज के भारत के मज़दूर वर्ग की लगभग सभी प्रमुख आवश्यकताओं का प्रतिनिधित्व करती हैं और साथ ही उसकी राजनीतिक माँगों को भी अभिव्यक्त करती हैं। इन सभी माँगों के लिए मज़दूर वर्ग में व्यापक जनसमर्थन जुटाने के लिए आन्दोलन चलाने के वास्ते एक संयोजन समिति का निर्माण किया गया है जो आन्दोलन की आम दिशा और कार्यक्रम को तय करेगी।

माँगपत्रक में सबसे प्रमुखता के साथ न्यूनतम मज़दूरी और कार्यदिवस की लम्बाई के प्रश्न को उठाया गया है। यह माँग की गयी है कि नये न्यायपूर्ण पैमानों के आधार पर एक नयी राष्ट्रीय न्यूनतम मज़दूरी तय की जाये और उसे समय-समय पर बढ़ाया जाये। जब तक कि यह नयी न्यूनतम मज़दूरी तय नहीं होती तब तक न्यूनतम मज़दूरी को 11 हज़ार रुपये तय किया जाये जो मज़दूर के लिए बुनियादी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए लगभग पर्याप्त होगी। इसके अतिरिक्त, यह माँग की गयी है कि भोजनावकाश समेत आठ घण्टे के कार्यदिवस को सख्ती के साथ लागू किया जाये। इन दोनों कानूनों का उल्लंघन करने वाले मालिकान और श्रम विभाग के अधिकारियों पर त्वरित और सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए। इसके लिए माँगपत्रक ने सरकारी श्रम विभाग के पूरे ढाँचे में परिवर्तन की माँग रखते हुए उसके जनवादीकरण की माँग को उठाया है। श्रम न्यायालयों की पूरी संरचना में भी माँगपत्रक महत्तवपूर्ण बदलावों की माँग करते हुए जनवादीकरण करने की माँग करता है।

माँगपत्रक-2011 ठेका मज़दूरों और पीस रेट मज़दूरों समेत समस्त अनौपचारिक मज़दूरों की माँगों को विशेष रूप से केन्द्र में रखता है। सरकार ने 1971 के ठेका मज़दूर कानून को बनाते समय यह वायदा किया था कि इस कानून का लक्ष्य ठेका मज़दूरी का उन्मूलन करना है, लेकिन वास्तव में इस कानून को ताक पर रखकर लगातार सरकार ने अपने वायदे का उल्लंघन किया है और अपने ही विभागों में ठेकाकरण किया है और निजी पूँजीपतियों को ठेका मज़दूरी का जमकर शोषण करने की छूट दे दी है। इसलिए सबसे पहले तो माँगपत्रक आन्दोलन ने यह माँग की है कि सरकार ठेका मज़दूरी कानून के सभी प्रावधानों को सख्ती से लागू करे और उसमें काम के घण्टे नौ घण्टे से घटाकर आठ घण्टे करे। पीस रेट पर काम करने वाले मज़दूरों के लिए माँगपत्रक में यह माँग रखी गयी है कि अलग-अलग पेशों में पीस रेट को कार्यदिवस की लम्बाई और उस पेशे/उद्योग की औसत उत्पादकता के अनुसार ऐसे निर्धारित किया जाये कि वह न्यूनतम मज़दूरी के बराबर हो जाये। माँगपत्रक हर प्रकार के अस्थायी मज़दूरों और ठेका मज़दूरों को स्थायी करने की माँग करता है।

इसके अतिरिक्त, माँगपत्रक- 2011 में स्त्री मज़दूरों, प्रवासी मज़दूरों की प्रातिनिधिक माँगें शामिल हैं। काम करने की स्थितियों और दुर्घटना के उचित मुआवज़े की माँगों को भी इस दस्तावेज़ में प्रमुखता के साथ रखा गया है। इसके अलावा यह माँगपत्रक ग्रामीण मज़दूरों, घरेलू मज़दूरों, स्वतन्त्र दिहाड़ी मज़दूरों की माँगों को भी सरकार के सामने स्पष्ट तौर पर रखता है। बाल मज़दूरी और जबरिया मज़दूरी के हर रूप को ख़त्म करने को माँगपत्रक ने विशेष महत्तव दिया है। रोज़गार गारण्टी, सामाजिक सुरक्षा, खाद्यान्न सुरक्षा, चिकित्सा और शिक्षा की सुविधाओं को माँगपत्रक मज़दूर वर्ग की बुनियादी आवश्यकता मानता है।

माँगपत्रक-2011 विशेष आर्थिक क्षेत्र कानून को रद्द करने की माँग करता है। जब तक इसे रद्द करने का काम पूरा नहीं होता तब तक इस बात का प्रावधान किया जाना चाहिए कि वहाँ श्रम कानूनों को लागू किया जाये और एस.ई.जेड़. को दी जा रही सुविधाओं और रियायतों का ख़र्च सरकार जनता से नहीं बल्कि विशेष करों और शुल्कों के रूप में पूँजीपतियों से वसूल करे।

माँगपत्रक मज़दूरों के संगठित होने के अधिकार और यूनियन बनाने की पूरी प्रक्रिया को पारदर्शी और जनवादी बनाने के अधिकार को महत्तवपूर्ण राजनीतिक अधिकार मानता है। साथ ही, पर्यावरण सुरक्षा के मानकों को तय करना और उन्हें लागू करना भी माँगपत्रक-2011 मज़दूर वर्ग की माँग मानता है क्योंकि पर्यावरण की तबाही का नुकसान सबसे पहले मज़दूर वर्ग को ही उठाना पड़ता है।

अन्य तमाम अहम माँगों के अतिरिक्त माँगपत्रक-2011 नयी संविधान सभा बुलाने की माँग करता है क्योंकि मौजूदा संविधान को बनाने वाली संविधान सभा को सार्विक मताधिकार के आधार पर नहीं चुना गया था, बल्कि इसे देश के 11.5प्रतिशत सम्पत्तिधारी और राजे- रजवाड़ों के प्रतिनिधियों ने बनाया था। इसके अतिरिक्त, औपनिवेशिक काल में बने आई.पी.सी., सी.आर.पी.सी., जेल मैनुअल और पुलिस मैनुअल को भी बदलने की माँग की गयी है। ये मज़दूर वर्ग की महत्तवपूर्ण राजनीतिक माँगें हैं।

कुल मिलाकर माँगपत्रक-2011 मज़दूर वर्ग की उन सभी माँगों को देश की पूँजीवादी सरकार के सामने रखता है जो उसकी कानूनी और संवैधानिक माँगें हैं। यह माँगपत्रक- 2011 देश के शासक वर्गों और उनकी सरकार से यह माँग करता है कि वह अपने सभी वायदों को पूरा करे, जो उसने देश के मेहनतकशों से किये हैं और अगर वे ऐसा नहीं कर सकते तो उन्हें जनप्रतिनिधि कहलाने का और सरकार चलाने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है। अगर सरकार देश की 80 फीसदी जनता से किये गये वायदे ही नहीं निभा सकती है तो वह किस जनता का प्रतिनिधित्व कर रही है? अगर सरकार ये माँगें नहीं मानतीं तो यह पूँजीवादी व्यवस्था देशभर की मेहनतकश जनता के सामने और अच्छी तरह से बेनकाब हो जायेगी। निश्चित रूप से, मज़दूर वर्ग की मुक्ति की लड़ाई इस माँगपत्रक आन्दोलन से पूरी नहीं हो जाती। वास्तव में यह इससे शुरू होती है। यह आन्दोलन पूरी व्यवस्था और सत्ता के चरित्र को मज़दूर वर्ग के समक्ष और अधिक साफ करेगा। साथ ही, यह आन्दोलन मज़दूर वर्ग की कई जायज़ माँगों को जीतने और फौरी राहत हासिल करने का काम भी कर सकता है। यह एक नयी शुरुआत है जो देश के मज़दूरों को राजनीतिक रूप से संगठित करने के उद्देश्य से की जा रही है।

फिलहाल, इस आन्दोलन की शुरुआत दिल्ली, पंजाब, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ के विभिन्न हिस्सों में की गयी है। सबसे पहले इस माँगपत्रक को लेकर कार्यकर्ता मज़दूरों के कारख़ाना इलाकों और रिहायशी इलाकों में जा रहे हैं और उन्हें इसके बारे में समझा और बता रहे हैं। साथ ही, इस माँगपत्रक के समर्थन में मज़दूरों के हस्ताक्षर जुटाये जा रहे हैं। यह रिपोर्ट लिखे जाने तक हज़ारों हस्ताक्षर जुटाये जा चुके थे। मज़दूरों को गोलबन्द और संगठित करने के लिए उनके रिहायशी इलाकों में उनकी गोलबन्दी कमेटियाँ बनायी जा रही हैं। इसके बाद मज़दूरों की व्यापक सभाएँ और पंचायतें बुलाने की योजना है जिनके ज़रिये मज़दूर वर्ग को इस माँगपत्रक आन्दोलन में गोलबन्द और संगठित किया जायेगा। इस आन्दोलन के पहले चरण का समापन 2011 के मई दिवस को देश की संसद पर मज़दूरों के विशाल जुटान और लाखों हस्ताक्षर संसद को सौंपने के साथ होगा। आने वाला मई दिवस 125वाँ मई दिवस है। इस दिन देश के विभिन्न हिस्सों से हज़ारों मज़दूरों को जुटाया जायेगा और इस देश के तथाकथित प्रतिनिधि निकाय, यानी संसद, के दरवाजे पर दस्तक दी जायेगी और तथाकथित जनप्रतिनिधियों से यह माँग की जायेगी कि अगर वे सही मायनों में ंजनप्रतिनिधि हैं तो मज़दूर वर्ग की इन जायज़ माँगों को पूरा करें। अन्यथा, गद्दी छोड़ दें। लेकिन इस प्रदर्शन के साथ ही यह आन्दोलन ख़त्म नहीं होगा। अगले चरण में लाखों की बजाय देशभर से करोड़ों मज़दूरों के हस्ताक्षरों के साथ लाखों मज़दूरों को देश की राजधानी में लाने की योजना है। पहले चरण की तैयारी शुरू हो चुकी है।

आने वाले महीनों में यह माँगपत्रक आन्दोलन देश के विभिन्न हिस्सों में जायेगा और मज़दूर वर्ग का समर्थन जुटायेगा। माँगपत्रक आन्दोलन-2011 की संयोजन समिति ने देशभर के मज़दूरों और संवेदनशील नागरिकों से अपील की है कि वे भी माँगपत्रक मँगायें और उसके पक्ष में अधिक से अधिक हस्ताक्षर जुटाकर भेजें।

मज़दूर बिगुल, नवम्बर 2010


 

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