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(बिगुल के सितम्बर 2001 अंक में प्रकाशित लेख। अंक की पीडीएफ फाइल डाउनलोड करने के लिए यहाँ क्लिक करें और अलग-अलग लेखों-खबरों आदि को यूनिकोड फॉर्मेट में पढ़ने के लिए उनके शीर्षक पर क्लिक करें)
सम्पादकीय
जनता ने आज सिर्फ गुठलियां फेंकी हैं, कीचड़ उछाला है, कल तख्त उछाले जायेंगे, ताज गिराये जायेंगें
अर्थनीति : राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय
निजीकरण की ओर बढ़ता कोयला उद्योग, राष्ट्रीयकरण का नकाब उतारकर फेंकता पूँजी का दानव / शरद कुमार
लफ्फाज शिरोमणि, लप्पेबाज केसरी और बेहया सम्राट / कुमार गम्भीर
श्रम कानून
सरकार ने ट्रेड यूनियन एक्ट बदला, कोर्ट ने ठेकाकरण को मान्यता दी / योगेश पंत
महान शिक्षकों की कलम से
मज़दूर वर्ग के बीच निरन्तर और नियमित प्रचार कार्य एक बुनियादी कर्तव्य / लेनिन
समाज
सावधान हुक्मरानों! लोगों का गुस्सा बढ़ रहा है!
बुर्जुआ जनवाद – दमन तंत्र, पुलिस, न्यायपालिका
फासिस्ट भाजपाइयों और उनके बिरादरों के राज में बढ़ता पुलिसिया ताण्डव : फरीदाबाद में पत्रकार को घर से उठाया तो दिनेशपुर में बर्बरतापूर्वक लाठियां भांजीं
बुर्जुआ जनवाद – चुनावी नौटंकी
सांसदों के वेतन-भत्तों में बढ़ोतरी : पूँजीवदी लुटेरों के वफादार कुत्ते भौंकने, काट खाने और चौकीदारी करने की पूरी कीमत वसूल रहे हैं
लेखमाला
पार्टी की बुनियादी समझदारी (अध्याय-4) आठवीं किश्त
लेनिन के साथ दस महीने – छठी किश्त / एल्बर्ट रीस विलियम्स
विकास मुनाफाखोरों का, विनाश मेहनती जनता का – 3 : देशी-विदेशी पूँजी का खुला खेल फर्रूखाबादी / मुकुल
कारखाना इलाक़ों से
पंजाब के भट्ठा मज़दूरों के उत्पीड़न और लूट की दर्दनाक दास्तान : सही लाइन पर संगठित करने की जरूरत (अगस्त 2001 अंक में छपी रिपोर्ट का अगला अंश) / सुखविंदर
अधिकारियों की लूट खसोट से सुपर बाजार कंगाल, कर्मचारी संघर्ष की राह पर
कला-साहित्य
कहानी – बदबू / शेखर जोशी
मज़दूरों की कलम से
रेल मज़दूर आन्दोलन को नये सिरे से खड़ा करने के लिए दिशा निर्देश दिया जाये / एक मज़दूर, एनई रेलवे, कटिहार
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बुर्जुआ अख़बार पूँजी की विशाल राशियों के दम पर चलते हैं। मज़दूरों के अख़बार ख़ुद मज़दूरों द्वारा इकट्ठा किये गये पैसे से चलते हैं।
मज़दूरों के महान नेता लेनिन