प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लफ़ाज़ी और मज़दूर आबादी!

राहुल, करावल नगर मज़दूर यूनियन

जब से नयी मोदी सरकार यानी भाजपा केन्द्र में विराजमान है, तब से लगातार आलू, प्याज, टमाटर व हरी सब्‍जि़‍यों के दाम सातवें आसमान पर हैं। भले ही अख़बारी आँकड़ों में महँगाई घटने के दावे रोज़ किये जा रहे हैं। पता नहीं इसका कारण क्या है? क्या जमाखोरों को जमाखोरी करने का प्रोत्साहन मिल गया है, क्योंकि भाजपा सरकार अधिकतर छोटे व्यापारियों और बड़े दुकानदारों का विशेष प्रतिनिधित्व करती है या और कोई कारण है। ख़ैर, कारण जो भी है! इस तमाम महँगाई की वजह से मज़दूर वर्ग की ज़िन्दगी पर सीधा प्रभाव है और थाली से हरी सब्जि‍याँ, दाल ग़ायब हैं। बच्चों का दूध तो पहले ही बन्द हो चुका है।

प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी की लफ्फ़ाज़ियाँ उनके तमाम भाषणों, टी.वी. पर विज्ञापनों व अख़बारों में विज्ञापनों के ज़रिये आम आबादी को ज़बरदस्ती सुननी या देखनी ही पड़ती हैं, जिसमें मोदी सरकार ग़रीबों को समर्पित प्रधानमन्त्री जन-धन योजना, मेक इन इण्डिया, जापान के 2 लाख 10 हज़ार करोड़ के निवेश से भारत में रोज़गार का सृजन होगा, 2019 तक स्वच्छ भारत अभियान से स्वच्छ भारत का निर्माण होगा आदि-आदि। मीडिया और अख़बारों में ऐसे नारों से और जुमलों से पूरी मज़दूर आबादी भ्रमित होती है कि भइया, मोदी सरकार तो ग़रीबों और मज़दूरों की सरकार है। मगर जब वास्तविकता में महँगाई से पाला पड़ता है तो इस सरकार के खि़लाफ़ गुस्सा भी यकायक फूट पड़ता है।

Photo source - http://amaderbudhbar.com/?p=4005

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तो आइये इस बात पर ग़ौर करें कि मोदी सरकार कितना ग़रीबों और मज़दूरों के साथ है। मोदी सरकार ने आते ही बिना देर किये कारख़ाना क़ानून 1948, ट्रेड यूनियन क़ानून 1926, औद्योगिक विवाद क़ानून 1948, ठेका मज़दूरी क़ानून 1971 से लेकर प्रशिक्षु अधिनियम (एप्रेंटिस एक्ट) 1961 कुल मिलाकर श्रम क़ानूनों में 54 सुधार प्रस्ताव पारित किये हैं यानी श्रम क़ानूनों को और भी कमज़ोर और ढीला करने की कवायद शुरू कर दी है, जिससे कि मज़दूर वर्ग की बची-खुची संघर्ष की ताक़त को भी पूँजीपतियों के हाथों सौंप दिया जाये। इसका मतलब साफ़ है कि मज़दूर वर्ग के गले में गुलामी का पट्टा डालकर पूँजीपतियों के खूँटे पर बाँध दिया जाये। दूसरा हम मज़दूरों की तरफ़ से यह पुरजोर अपील है कि अगर मोदी सरकार वाकई ग़रीबों और मज़दूरों की सरकार है, तो ज़्यादा लफ्फ़ाज़ियाँ न करते हुए राष्ट्रीय स्तर पर हम मज़दूरों का वेतन आज की महँगाई स्तर को देखते हुए कम से कम 15000 रुपये किया जाये। जिससे कि हमारी ज़िन्दगी में कुछ ख़ुशहाली आये।

 

मज़दूर बिगुल, नवम्‍बर 2014


 

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