अक्टूबर क्रान्ति के सत्तानवे वर्ष पूरे होने के अवसर पर वज़ीरपुर औद्योगिक क्षेत्र में सांस्कृतिक सन्ध्या का आयोजन
बिगुल संवाददाता
आज से 97 वर्ष पहले रूस में 7 नवम्बर 1917 को मज़दूर वर्ग ने रूस के निरंकुश ज़ारशाही पूँजीपतियों की लुटेरी व्यवस्था को उखाड़ फेंका था और अपना राज स्थापित किया था। इतिहास में इसे अक्टूबर क्रान्ति के नाम से जाना जाता है। अक्टूबर क्रान्ति दुनिया भर के मज़दूरों के लिए ऐसी जलती हुई मशाल है जिसकी रोशनी में मज़दूर वर्ग आनेवाले समय का निर्णायक युद्ध लड़ेगा। रूस में सम्पन्न हुई इस मज़दूर क्रान्ति के 97 वर्ष पूरे होने के अवसर पर दिल्ली के वज़ीरपुर औद्योगिक क्षेत्र के बी-ब्लॉक स्थित राजा पार्क में ‘बिगुल मज़दूर दस्ता, दिल्ली’ द्वारा सांस्कृतिक सन्ध्या का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में ‘दिल्ली इस्पात मज़दूर यूनियन’ ने भी अपना सक्रिय सहयोग दिया। यह कार्यक्रम इस सोच के तहत आयोजित किया गया कि आज के इस प्रतिक्रियावादी दौर में सर्वहारा वर्ग को उसके गौरवशाली अतीत की याद दिलाते हुए आज के संघर्षों के लिए तैयार करना और उसे उसके ऐतिहासिक मिशन यानी मज़दूर राज की स्थापना की ओर उन्मुख करना एक अहम कार्यभार है।
कार्यक्रम में ‘विहान सांस्कृतिक मंच, दिल्ली’ के द्वारा क्रान्तिकारी गीतों एवं ‘अक्टूबर क्रान्ति की जली मशाल’ नाटक की प्रस्तुति की गयी तथा मज़दूर कार्यकर्ताओं ने अपनी बात भी रखी। इस अवसर पर ‘मज़दूर बिगुल’ अख़बार के सम्पादक अभिनव भी उपस्थित थे।
‘दिल्ली इस्पात मज़दूर यूनियन’ की क़ानूनी सलाहकार शिवानी ने अपनी बात में कहा कि हमें सिर्फ़ अपनी आर्थिक माँगों तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए। आर्थिक माँगों की लड़ाइयाँ जीत लेना हमारी ज़िन्दगी में थोड़ी सी राहत दे सकता है लेकिन उसे बदल नहीं सकता। हमारी ज़िन्दगी मज़दूर राज में ही बदल सकती है, और मज़दूर राज क़ायम करने के लिए मज़दूर वर्ग की अपनी क्रान्तिकारी पार्टी का होना बहुत ज़रूरी है। तमाम मालिकों और पूँजीपतियों की अपनी राजनीतिक पार्टियाँ हैं। ये पार्टियाँ इनके दमनतन्त्र को क़ायम रखने और जनता को भरमाने का काम करती हैं। मज़दूर वर्ग की अपनी सच्ची क्रान्तिकारी पार्टी ही उसे सही रास्ता दिखा सकती है, उसके हर संघर्ष को सही दिशा दे सकती है। रूस में मज़दूरों की क्रान्तिकारी पार्टी बोल्शेविक पार्टी ने मज़दूरों का मार्गदर्शन किया और वहाँ मज़दूर राज क़ायम हो सका। उन्होंने कहा कि आज की तमाम संशोधनवादी, नक़ली लाल झण्डेवाली पार्टियों यथा, सीपीआई, सीपीआई (एम), सीपीआई (माले) लिबरेशन आदि-आदि से बचकर रहने की ज़रूरत है। इनमें लाल जैसा तो कुछ बचा ही नहीं है, सबकुछ गुलाबी हो गया है। ये मज़दूर वर्ग की पीठ में छुरा घोंपने का काम कर रही हैं। आज जब क्रान्ति के ऊपर प्रतिक्रान्ति की लहर हावी है; ऐसे में ज़्यादा ज़रूरत है कि हम अक्टूबर क्रान्ति को याद करें क्योंकि नयी शुरुआत की सही दिशा वहीं से मिल सकती है।
‘बिगुल मज़दूर दस्ता’ के सनी ने मज़दूरों को अक्टूबर क्रान्ति का इतिहास बताते हुए कहा कि अक्टूबर क्रान्ति मज़दूर वर्ग की पहली ऐसी क्रान्ति थी जिसमें योजना, कार्यक्रम, रणनीतिक कुशलता, विचारधारा और दर्शन का सामंजस्य था। महज किताबी समझी जानेवाली बातों को रूसी मज़दूरों ने वास्तविकता में बदल डाला। अक्टूबर क्रान्ति हमें यह बताती है कि असम्भव को सम्भव बनाने का काम मज़दूर वर्ग कर सकता है।
‘मज़दूर बिगुल’ अख़बार के सम्पादक अभिनव ने अपनी बात में कहा कि आज देश में साम्प्रदायिक फ़ासीवादी ताक़तें सक्रिय हैं। इनका मुख्य मकसद है मेहनतकश अवाम को धर्म, जाति और क्षेत्र के नाम पर बाँटकर अपना उल्लू सीधा करना। ये ताक़तें तब तक मजबूत हैं जब तक मज़दूर वर्ग एकजुट नहीं है। गाय बचाओ, सफ़ाई अभियान, गंगा बचाओ आन्दोलन, ये तमाम ऐसी सरकारी नौटंकियाँ हैं जिनकी आड़ में दमन के काले क़ानूनों को अन्तिम रूप दिया जा रहा है। उन्होंने मज़दूरों को नियमित रूप से अख़बार पढ़ने की सलाह देते हुए कहा कि मज़दूरों को देश-दुनिया में हो रहे बदलावों पर अपनी नज़र रखनी चाहिए। मज़दूर वर्ग का अपना अख़बार ही देश भर के मज़दूरों को एकसूत्र में जोड़ सकता है। चूँकि यह मज़दूरों का अपना अख़बार होता है, इसलिए यह मज़दूरों को शिक्षित करने के साथ-साथ वर्तमान में मौजूद सत्ता के दाँव-पेंचों का राजनीतिक भण्डाफोड़ भी करता है।
‘बिगुल मज़दूर दस्ता’ के अरविन्द ने कहा कि अक्टूबर क्रान्ति ने मज़दूर वर्ग को सोवियतों के रूप में सबसे मजबूत, रचनात्मक और क्रान्तिकारी हथियार सौंपा है। ये सोवियतें जनता की पंचायतें थीं। ये सोवियतें मिलों और कारख़ानों के मज़दूर प्रतिनिधियों की थीं। सैनिकों और जहाज़ियों की भी सोवियतें बनायी गयीं जिन्हें मज़दूरों की सोवियतों से जोड़ा गया। मास्को-सोवियत ने जनता के सशस्त्र विद्रोह का नेतृत्व किया। सोवियतों ने जनता की रचनात्मक पहलक़दमी का क्रान्तिकारी उदाहरण प्रस्तुत किया है। आज भी गाँवों से लेकर शहरों के हर गली, मुहल्ले में इस तरह की लोकस्वराज पंचायतें गठित की जा सकती हैं, फ़ैक्ट्रियों में ऐसी कारख़ाना समितियाँ बनायी जा सकती हैं। ये पंचायतें आज की पंचायतों जैसी नहीं होंगी, जिनमें धनबल और बाहुबल का बोलबाला है, बल्कि ये जनता के अपने क्रान्तिकारी जनसंगठनों के रूप में काम करेंगीं। जनता इनके ज़रिये अपने जनवादी अधिकारों जैसे स्कूल, अस्पताल, सड़क, साफ़ पीने का पानी आदि की माँग लेकर लड़ेगी और कारख़ानों में काम की जगह के सवालों को उठाते हुए इन लड़ाइयों को व्यवस्था के खि़लाफ़ बड़ी लड़ाई में बदलना होगा।
‘दिल्ली इस्पात मज़दूर यूनियन’ के बाबूराम ने अपनी बात रखते हुए कहा कि अक्टूबर क्रान्ति हमें हर हाल में एकजुट रहने और सही-ग़लत की पहचान करने का रास्ता बताती है। हमें अपना अतीत और संघर्षों की गौरवशाली परम्परा को जानने की ज़रूरत है। कार्यक्रम में मज़दूरों ने बड़ी भारी संख्या में शिरकत की। स्त्री मज़दूरों ने भी अपनी सन्तोषजनक उपस्थिति दर्ज करायी।
मज़दूर बिगुल, नवम्बर 2014
‘मज़दूर बिगुल’ की सदस्यता लें!
वार्षिक सदस्यता - 125 रुपये
पाँच वर्ष की सदस्यता - 625 रुपये
आजीवन सदस्यता - 3000 रुपये
आर्थिक सहयोग भी करें!
बुर्जुआ अख़बार पूँजी की विशाल राशियों के दम पर चलते हैं। मज़दूरों के अख़बार ख़ुद मज़दूरों द्वारा इकट्ठा किये गये पैसे से चलते हैं।
मज़दूरों के महान नेता लेनिन