आपस की बात
इस लूटतन्त्र के सताये एक नाबालिग मज़दूर की कहानी

पिंटू, गुड़गाँव

मै पिण्टू, माधोपुरा बिहार का रहने बाला हूँ, अपने घर में बहन-भाई में सबसे बड़ा मैं ही हूँ। मेरी उम्र 15 साल है। मुझसे छोटी मेरी दो बहने हैं। 2010 मे मेरे पापा गुजर गये, तो अब मेरी माँ व हम तीन भाई-बहन ही हैं। ग़रीबी तो पहले से ही थी, लेकिन पापा के गुजरने के बाद दुनिया के तमाम नाते-रिश्तेदारों ने भी हमसे नाता तोड़ लिया। गाँव के कुछ लोग गुड़गाँव मे काम करते थे तो मेरी माँ ने बड़ी मुसीबत उठाकर 4 रुपये सैकड़ा पर 1000 रुपये लेकर व जो काम करते थे उनसे हाथ जोड़कर मुझे जैसे-तैसे गुड़गाँव भेज दिया। क्योंकि घर मे सबसे बड़ा मैं ही था और गाँव पर भी मेरी माँ और मैं मज़दूरी करके ही पेट पाल रहे थे। खेत व जमीन मेरे पास कुछ नहीं है, बस रहने के लिए गाँव में एक झोपड़ी है।

2012 में मैं गुड़गाँव आ गया बहुत फ़ैक्टरियों में चक्कर लगाये मगर काम नहीं मिला क्योंकि मैं अभी बच्चा था। 10-15 दिन में वो सारा रुपया ख़र्च हो गया जो माँ ने दिया था। मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि‍ मैं क्या करूं? गुड़गाँव में मेरे कमरे के पड़ोस का आदमी दिहाड़ी (बेलदारी) पर जाता था। उससे हाथ-निहोरे करने पर उसने मुझे अपने ठेकेदार से मिलवा दिया। मेरी उम्र कम थी इसलिए ठेकेदार ने बड़ा एहसान दिखाकर मुझे काम पर रखा लिया और रोज के 150 रुपये देने का तय किया जबकि 2012 में सामान्य मज़दूरी 300 के लगभग थी। सुबह 8:30 बजे से शाम 7 बजे तक मुझे 150 रु. मिलने लगे। तब से आज तक मैं बेलदारी ही कर रहा हूँ। अब जुलाई 2014 में मुझे 250 रु. मिल रहे हैं। सामान्य मज़दूरी 350-400 रु. है। पूरे महीने 10-12 घण्टे काम करने के बाद मुझे 7500 रु. तक मिलते है और अगर काम न हो या छुट्टी हो जाए तो रोज के 250 रु. कट जाते है। बड़ी मुश्किल से अपना ख़र्च निकालकर मैं अपनी माँ व दो बहनों के ख़र्चों के लिए महीने में उसे 4 हज़ार रुपये भेज पाता हूँ। मैं अपनी बहनों की शादी कैसे करूंगा, अगर हारी-बिमारी होगी तो क्या होगा और किसी की जिन्दगी का कोई भरोसा भी तो नहीं कब तक कौन जिन्दा रहेगा। यही तमाम चिन्ताएँ मुझे लगातार सताती रहती है। एक दिन काम करने के दौरान मुझे भैया मिले जिन्होंने मेरी समस्या भी सुनी और मुझे प्यार से समझाया भी कि तुम फालतू में अकेले क्यों परेशान हो। अरे तुम्हारी माँ और बहन लूली-लंगड़ी, अपाहिज तो हैं नहीं, फालतू में उनको गाँव में रख छोड़े हो, उनको यहाँ गुड़गाँव बुलाओ। तुम तो कमा ही रहे हो। मम्मी को भी किसी कम्पनी में 5000 रुपये में काम मिल जायेगा और अपनी बहनों को यहाँ किसी अच्छे स्कूल में नाम लिखवा देना। तुम्हारा पूरा परिवार तुम्हारे साथ रहेगा।

उनकी यह बात मुझे बहुत अच्छी लगी मैंने उनका पता, फोन नम्बर ले लिया और मैं लगातार उनके सम्पर्क में हूँ। और अब मैंने यह तय कर लिया है कि अगले महीने मैं अपनी माँ और दोनों बहनों को गुड़गाँव ले आऊंगा। हम सब मिलजुल कर संघर्ष करेंगे और ज़ि‍न्दगी को बदलने की लड़ाई लड़ेंगे। मुझे पढ़ने-लिखने का मौका कभी जिन्दगी में नहीं मिला इसलिए अपनी ये कहानी मैं इन्ही बिगुल वाले भैया से लिखवा रहा हूँ।

 

मज़दूर बिगुल, सितम्‍बर 2014

 


 

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