दिल्ली मेट्रो फीडर के चालकों-परिचालकों की सफल हड़ताल

बिगुल संवाददाता

बिगुल के पिछले अंकों में दिल्ली मेट्रो रेल तथा उसकी ठेका कम्पनियों द्वारा श्रम कानूनों के उल्लंघन और नंगे शोषण की रिपोर्ट छपती रही है। मजदूर- कर्मचारी भी अपने ऊपर हो रहे शोषण के खिलाफ आठ महीनों से ‘मेट्रो कामगार संघर्ष समिति’ के बैनर तले एकजुट होकर समय-समय पर अपने जायज कानूनी हकों को लेकर आन्दोलन करते आ रहे हैं। इसी कड़ी में पिछले दिनों मेट्रो फीडर बस के चालकों- परिचालकों ने राजस्थान बाम्बे ट्रांसपोर्ट (आर.बी.टी.) तथा डी.एम.आर.सी. के खिलाफ अनिश्चितकालीन हड़ताल करने का फैसला किया। हड़ताल की मुख्य माँगें थीं – 1. बुनियादी श्रम कानून लागू किए जायें जैसे आई कार्ड, ईएसआई, पीएफ आदि, 2. समय पर वेतन-वृद्धि की जाये, 3. ओवरटाइम डबल रेट से दिया जाये, 4. आर.बी.टी. द्वारा शोषण-उत्पीड़न बन्द किया जाये, 5. सभी ठेका मजदूरों को स्थायी किया जाये।

इसी दौरान हड़ताल से पहले पता चला कि डी.एम.आर.सी. द्वारा आर.बी.टी. कम्पनी का ठेका रद्द किया जा रहा है। ऐसे में कर्मचारियों ने हड़ताल में अपनी सिक्योरिटी राशि वापस करने की माँग को मुख्य मुद्दा बनाया। तब ‘मेट्रो कामगार संघर्ष समिति’ ने हड़ताल का आह्वान करते हुए हड़ताल-स्थल पर एकजुट होने के पर्चे 19 व 20 सितम्बर को सभी मेट्रो स्टेशनों पर बाँटे।

21 सितम्बर 2009 को मेट्रो स्टेशन द्वारका सेक्टर 9 पर हड़ताल शुरू की गयी। मेट्रो फीडर की इस हड़ताल का नेतृत्व तेजबीर कर रहे थे। जिन्हें कम्पनी मजदूरों की हक की आवाज उठाने के लिए प्रताड़ित करती रही है। द्वारका सेक्टर 9 पर पहले दिन ही करीबन 100-150 चालकों-परिचालकों ने एकजुट होकर अपनी ताकत का प्रदर्शन किया। हड़ताल के दिन मेट्रो फीडर बस के 14 में से 8 रूट बन्द रहे। बचे 6 रूटों पर कम्पनी के गुर्गों ने डरा-धमकाकर कर्मचारियों से बसें चलवायीं।

‘मेट्रो कामगार संघर्ष समिति’ ने घोषणा की कि जब तक कर्मचारियों की जायज माँगें पूरी नहीं हो जाती तब तक अनिश्चितकालीन हड़ताल जारी रहेगी। मेट्रो फीडर की इस हड़ताल को प्रिण्ट व इलेक्ट्रानिक मीडिया ने भी कवर किया। मीडिया में खबरें आने के बाद डी.एम.आर.सी. अपनी जान बचाने के लिए कर्मचारियों पर पुलिस प्रशासन से दबाव डलवाने लगा और ‘मेट्रो कामगार संघर्ष समिति’ को लांछित और बदनाम करने की पुरजोर कोशिश करने लगा। परन्तु मेट्रो फीडर के चालकों-परिचालकों की अटूट एकजुटता और एकता के आगे ये तमाम चालबाजियाँ और हथकण्डे धरे के धरे रह गये।

हड़ताल के तीसरे दिन डी.एम.आर.सी. व आर.बी.टी. को झुकना पड़ा। उसी शाम को छह बजे कर्मचारियों व कम्पनी के बीच बातचीत शुरू हुई। कर्मचारियों ने प्रबन्धन को लिखित माँगपत्र सौंपा। लेकिन आर.बी.टी. के प्रबन्धक हरीश लखोटिया ने जुबानी आश्वासन देते हुए कर्मचारियों की माँगों को पूरा करने का आश्वासन दिया। इस पर कर्मचारियों ने आर.बी.टी. से कहा कि सभी माँगों को लिखित में स्वीकार किया जाये। जिस पर आर.बी.टी. और डी.एम.आर.सी. टालमटोल करने लगे। इस पर कर्मचारियों ने समझौता रद्द कर दिया और कम्पनी को अगले दिन 11 बजे तक अपने फैसले पर पुनर्विचार करने का समय दे दिया।

हड़ताल के चौथे दिन आर.बी.टी. और डी.एम.आर.सी. ने कर्मचारियों का मनोबल तोड़ने के लिए एक वकील को बुलाया। वकील ने कानूनी भाषा का जाल बुनकर कर्मचारियों को चुपचाप काम पर वापस आने की धमकी दी लेकिन कर्मचारियों के पक्ष में बिगुल संवाददाता अभिनव ने जब कर्मचारियाें के श्रम कानूनों के उल्लंघन तथा उसके जिम्मेदार डी.एम.आर.सी. और आर.बी.टी. को कटघरे में खड़ा किया तो वकील और डी.एम.आर.सी. के अधिकारी चुप्पी साध गये। इस बैठक में भी समझौता न होता देख कर्मचारी अपनी माँगों पर अड़े रहे!

देर शाम तक डी.एम.आर.सी. और आर.बी.टी. यह समझ चुके थे कि कर्मचारियों को इस आन्दोलन में तोड़ना मुश्किल है! ऐसे में उसने कर्मचारियों के माँगपत्र की मुख्य बातों पर लिखित समझौता तैयार किया।

इस चार दिवसीय एकजुटता और सफल हड़ताल ने डी.एम.आर.सी. और आर.बी.टी. के घुटने टिकवा दिये। इस संघर्षपूर्ण हड़ताल में चालकों-परिचालकों ने कानूनी हक के रूप में वेतनवृद्धि (क्रमश: 500 व 1000 रुपये), पीएफ व ईएसआई जैसे हक हासिल किये तथा आर.बी.टी. की मनमानी बन्द हुई।

मेट्रो फीडर की यह सफल हड़ताल मेट्रो रेल से जुड़े सभी सफाईकर्मियों, मेण्टनेंस और निर्माण में लगे मजदूरों के लिए सबक और प्रेरणा देती है कि यदि वे भी एकजुट और संकल्पबद्ध होकर लड़ें तो उन्हें भी कानून द्वारा प्रदत्ता अधिकार हासिल हो सकते हैं।

इस हड़ताल के बाद ‘मेट्रो कामगार संघर्ष समिति’ ने ‘हड़ताल का सबक’ नाम से एक पर्चा निकाला और अपनी कानूनी लड़ाई को एक कदम आगे बढ़ाते हुए ‘दिल्ली मेट्रो कामगार यूनियन’ के बन जाने की घोषणा की। साथ ही मेट्रो के साथियों से कहा कि यह समय जीत के जश्न के साथ ही मेट्रो रेल के सभी मजदूरों के हकों की लड़ाई की तैयारी में लग जाने का समय है।

बिगुल, अक्‍टूबर 2009


 

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