चीन की जूता फैक्ट्रियों में काम करने वाले हज़ारों मज़दूर हड़ताल पर
मज़दूरों के सामने नंगा हो चुका है नामधारी चीनी कम्युनिस्टों का असली चेहरा
मनन
चीन के प्रमुख औद्योगिक नगरों में से एक डोंगगुआन में यू युएन नामक जूता बनाने वाली कंपनी के मज़दूरों द्वारा अपने जायज अधिकारों को हासिल करने के लिए की गई हड़ताल चीन में हाल ही के कुछ वर्षों में हुई सबसे बड़ी हड़ताल है। पहले के कुछ दिनों में तो इसमें सिर्फ यू युएन के ही मज़दूर शामिल थे, परंतु मज़दूरों की अपनी पहलकदमी और मज़दूर कार्यकर्ताओं के प्रयासों के कारण बाद में कंपनी की धोखाधड़ी और तानाशाहीपूर्ण रवैये के खिलाफ संघर्ष कर रहे मज़दूरों को आस-पास के क्षेत्रों में काम करने वाले मज़दूरों का समर्थन भी मिलना शुरु हो गया, जिसके चलते इस हड़ताल ने एक व्यापक रुप धारण कर लिया। चीन के सामाजिक सुरक्षा बीमा कानून के अनुसार मज़दूर अपनी मासिक मज़दूरी में से हर महीने 10 से 20% हिस्सा सामाजिक बीमा खाते में जमा करवाते हैं, जिसमें कंपनी को भी अपने मुनाफे का एक हिस्सा जमा करवाना आवश्यक होता है। इसमें जमा गई रकम मज़दूर अपनी सेवानिवृत्ति के समय निकाल सकते हैं। यू युएन हर महीने आवास और सेवा-निवृत्ति लाभ के नाम पर 10 से 20 प्रतिशत पैसे मज़दूरों के वेतन में से काटती तो रही, लेकिन उसने काटी गई रकम का एक छोटा सा हिस्सा ही मज़दूरों के खातो में जमा करवाया जबकि बाकी का हिस्सा कम्पनी ने इस धोखाधड़ी के माध्यम से हड़प लिया। ज्यादातर मज़दूरों के मामलो में कम्पनी ने काटी गई रकम का कोई भी हिस्सा सामाजिक बीमा खाते में जमा ही नही किया। चीन की ज़्यादातर फैक्ट्रियों की तरह यू युएन में भी मज़दूरों से लगातार ओवरटाइम करवाया जाता है, इसलिए उनके खातों में जमा की जाने वाली राशि में ओवरटाइम का पैसा भी शामिल किया जाना चाहिए।
लेकिन ज्यादातर मामलों में कंपनियाँ हर महीने जो रकम मज़दूरों के सामाजिक बीमा खाते में जमा करवाती है उसकी गणना वह उनके वास्तविक मज़दूरी पर न कर मूल मज़दूरी पर करती है, जिसके कारण उनके खाते में ओवरटाईम में की गई मज़दूरी का हिस्सा शामिल ही नहीं किया जाता है। कंपनी द्वारा कई सालों से लगातार जारी इस धोखाधड़ी का पता तब चल पाया जब कुछ मज़दूर अपने खाते में जमा की गई रकम का पता करने के लिए बीमा कार्यालय गये। पहले तो मज़दूरों ने मैनेजमेण्ट से बातचीत द्वारा इस मसले को सुलझाने कि कोशिश की, लेकिन मैनेजमेण्ट द्वार उनकी माँगों को लेकर कोई ठोस कदम न उठाने के चलते 14 अप्रैल 2014 को मज़दूर कंपनी की जालसाज़ी के खिलाफ हड़ताल पर चले गये।
ताइवान स्थित यू युएन विश्व की सबसे बड़ी जूता बनाने वाली कंपनी है जो नाइके, एडिडास, रीबॉक, और कई अन्य प्रमुख ब्रांडों के लिए जूता बनाती है। कंपनी की वेबसाइट में दी गई जानकारी के अनुसार पिछले साल 2013 में उसने 30 करोड़ जूतों का उत्पादन किया था, जिसके चलते उसका शुद्ध मुनाफा बढ़कर $434.8 करोड़ तक पहुँच गया था। परंतु यह पूरा मुनाफा उसने मज़दूरों द्वारा अपना हाड़-मांस गला कर कमाए हुए पैसे को हड़प कर कमाया था।
सन 1976 के पूँजीवादी तख्तापलट के बाद से चीन की नकली लाल-झण्डे वाली कम्युनिस्ट पार्टी की लगातार जारी पूँजीवादी नीतियों के खिलाफ बहुसंख्य मेहनतकश आबादी का गुस्सा लगातार बढ़ता जा रहा है और वह रह-रह कर अपने अधिकारों के लिए सड़कों पर उतर रही है। चाइना लेबर बुलेटीन के अनुसार इस साल अप्रैल महीने तक चीन में मज़दूरों के 202 जुझारु हड़तालें हुईं जो संख्या के हिसाब से पिछले साल की तुलना में 31% अधिक है। मज़दूरों के लगातार हो रहे इन प्रदर्शनों से घबराई हुई चीनी सरकार ने नामधारी कम्युनिस्ट चीन में पैदा हुए इस प्रकार के नवधनाण्य पूँजीपतियों और सम्राज्यवादियों के हितो की रक्षा के लिए भारी संख्या में पुलिस और अन्य सैनिक बलो को मज़दूरों के दमन के लिए तैनात किया हुआ था। मज़दूरों को ड़रा-धमका कर काम पर वापस भेजने के लिए पुलिस ने मज़दूरों के साथ मारपीट की और कई मज़दूर कार्यकर्ताओं को जेल भेज दिया, जिसमें से अनेक अब भी कैद हैं। पर मज़दूर इन सबसे घबराए बगैर न सिर्फ कारखाने के बाहर डटे रहे बल्कि अपने संघर्ष को एक व्यापक मज़दूर आबादी तक पहुँचाने के लिए जिन जगहों पर मज़दूर इकट्ठा होते हैं – जैसे, पार्कों, खाने-पीने की दुकानों आदि में पर्चे बाँटते हुए और अपने संघर्ष के बारे में उन्हें बताते हुए लगातार उनसे संपर्क बनाते रहे। इसके अलावा फेसबुक और ट्विटर के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय मज़दूर संगठनों को भी यू युएन के मज़दूरों द्वारा लड़े जा रहे इस जुझारु संघर्ष में अपना समर्थन देने का आह्वान किया। व्यापक प्रचार, सम्पर्क और वैश्विक सहयोग के इन प्रयासों का ही नतीजा था कि जहाँ शुरुआत में इस हड़ताल में 10,000 मज़दूर शामिल थे वहीं बाद में यह संख्या 65,000 हजार तक पहुँच गई।
इस पूरे आंदोलन के दौरान सबसे ख़ास बात यह रही कि यू युएन के मज़दूरों ने अपने इस संघर्ष को एक कारखाने तक सीमित न रख व्याप्क मज़दूर आबादी तक पहुँचाया। इसी कारण न सिर्फ कंपनी को मज़दूरों की माँगें मानने के लिए बाध्य होना पड़ा बल्कि सरकार चाहकर भी मज़दूरों का दमन नहीं कर पायी। अपने पिछले अनुभवों से सीख लेते हुए मज़दूरों का कहना है कि यदि कंपनी द्वारा उनकी माँगो को लेकर कोई ठोस कदम नहीं उठाती तो वे दोबारा संघर्ष की राह अख्तियार करेंगे।
चीन में रह-रह कर हो रहे इन संघर्षों से एक बात बिल्कुल साफ है कि कम्युनिस्टों का मुखौटा लगाकर मज़दूरों के खुले शोषण और उत्पीड़न के दम पर पैदा हो चुके नवधनाड्य पूँजीवादी जमातों के हितो की रक्षा करने वाले मज़दूर वर्ग के इन गद्दारों का असली चेहरा मेहनतकश चीनी जनता के सामने बेनकाब हो रहा है। इस तरह के मज़दूर संघर्ष आने वाले दौर में सच्चे क्रान्तिकारी मार्क्सवादी-लेनिनवादी विचारों के लिए जमीन तैयार करने का भी काम कर रहे है।
नवउदारवाद के दौर में पूँजीवादी लूट और फासीवादी दमन के बीच मज़दूर संघर्षों को संगठित करने के मामले में चीन के मज़दूरों की यह हड़ताल भारत सहित, पूरी दुनिया के मज़दूर संघर्षों के लिए हड़तालों को सही दिशा में नेतृत्व देने का एक अच्छा उदाहरण है। आज पूरे विश्व और खासकर भारत, चीन, पाकिस्तान जैसे तीसरी दुनिया के अन्य देशों के मज़दूर आंदोलनों में लम्बे समय से छाई हुई चुप्पी टूट रही है और मेहनतकश आवाम समय-समय पर अपने अधिकारों के लिए सड़कों पर उतर रही है। परन्तु किसी क्रांतिकारी हिरावल पार्टी की गैर मौजूदगी के कारण यह संघर्ष किसी दूरगामी लक्ष्य के लिए जमीन तैयार करने के मज़दूर वर्ग के उद्देश्य को पूरा नहीं करते। आज सबसे महत्वपूर्ण कार्य जो हमारे सामने है वह है मज़दूरों के बीच लगातार राजनीतिक कार्य करते हुए उनकी चेतना को अर्थवाद के आगे विकसित करते हुए समाजवाद के विचारों तक लाना।
मज़दूर बिगुल, मई 2014
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मज़दूरों के महान नेता लेनिन