करावल नगर मज़दूर यूनियन ने दो दिवसीय मेडिकल कैम्प अयोजित किया।

बिगुल संवाददाता

Medical camp knagar march 14-1दिल्ली के करावल नगर क्षेत्र की मज़दूर आबादी के बीच करावल नगर मज़दूर यूनियन व नौजवान भारत सभा द्वारा दो दिवसीय (1 व 2 मार्च) निःशुल्क मेडिकल कैम्प आयोजित किया गया। डॉक्टरों व शुभचिन्तक नागरिकों की मदद से जुटायी गयी दवाएँ भी मरीजों को निःशुल्क दी गयीं। डॉक्टरों की टीम में सरकारी अस्पताल के डॉ. ऋषि व सतेन्दर पाल ने वालण्टियरी सेवा दी। कैम्प के दौरान डाक्टरों की टीम ने मरीजों की जाँच के साथ ही लोगों को बीमारियों से बचने के उपाय भी बताये। कैम्प में आने वाले लोगों को वहाँ मौजूद कार्यकर्ताओं ने स्वास्थ्य अधिकारों के बारे में भी बताया। इस मेडिकल कैम्प में लगभग 500 मरीजों की जाँच की गयी। इनमें ज़्यादातर महिला बादाम मज़दूर व बच्चे ही थे जिनमें मुख्य बीमारियों में रक्त की कमी, कुपोषण, साँस से सम्बन्धित बीमारियाँ व त्वचा से सम्बन्धित बीमारियाँ थीं। असल बात यह है इन सब बीमारियों के पीछे की मूल वजह पेशागत परिस्थितियाँ हैं, क्योंकि बादाम के कारख़ानों में मुख्यतः महिला मज़दूर काम करती हैं, जिन्हें 12-14 घण्टे काम करने पर भी बुनियादी ज़रूरतों को पूरा करने लायक वेतन नहीं मिलता। इन कारख़ानों में न तो साफ़ पीने के पानी की सुविधा होती है, न महिलाओं के लिए अलग शौचालय की। बादाम तोड़़ते वक़्त धूल उड़ती है, जिससे साँस की बीमारियाँ होती हैं। बच्चों के लिए भी वहाँ कोई सुविधा नहीं होती। सिर्फ़ कारख़ानों में ही नहीं, इलाक़े में भी साफ़ पानी से लेकर आवास तक की तमाम समस्याएँ हैं। एक तरफ़ कारख़ानों में धूल से लेकर गन्दे पानी की वजह से साँस सम्बन्धित और पेट की बीमारियाँ होती हैं, दूसरी तरफ़ इलाक़े में गन्दे पानी व बस्तियों में गन्दगी की वजह से त्वचा से जुड़ी बीमारियाँ होती हैं। नाम-मात्र वेतन की वजह से दो वक़्त का पोषक खाना भी न मिल पाने के कारण महिलाएँ व बच्चे रक्त की कमी व कुपोषण का शिकार होते हैं।

Medical camp knagar march 14-2साफ़ है कि करावल नगर मज़दूर यूनियन द्वारा आयोजित कैम्प का मक़सद झोला-छापा डॉक्टर व मुनाफ़े का धन्धा चलाने वाले डॉक्टरों के बरक्स जनता की पहलक़दमी पर जन-स्वास्थ्य सेवा को खड़ा करना है। यूनियन के नवीन ने बताया कि असल में स्वास्थ्य-शिक्षा-आवास-रोज़गार सरकार की बुनियादी ज़िम्मेदारी होनी चाहिए, लेकिन मुनाफ़े और लूट पर टिकी पूँजीवादी व्यवस्था में ये भी एक बाज़ारू माल बना दिया जाता है और पूँजीपति इसे बेचकर मुनाफ़ा पीटता है। इसलिए मज़दूरों को अपनी लड़ाई सिर्फ़ वेतन-भत्ते तक नहीं लड़नी है, बल्कि स्वास्थ्य-शिक्षा-आवास जैसे मुद्दे को भी अपनी लड़ाई में शामिल करना होगा।

 

मज़दूर बिगुल, मार्च-अप्रैल 2014

 


 

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