संसदीय वामपंथियों के राज में हज़ारों चाय बाग़ान मज़दूर भुखमरी की कगार पर
बिगुल सवांददाता
पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले में स्थित नावेड़ा नड्डी चाय बाग़ान के 1000 मज़दूरों और उनके परिवार के सदस्यों सहित करीब 6,500 लोग भुखमरी की कगार पर हैं। यह चाय बागान दुनिया की सबसे दूसरी बड़ी चाय कम्पनी टाटा टेटली का है। यह चाय बाग़ान उस राज्य, पश्चिम बंगाल, में है जहाँ खुद को मज़दूरों की हितैषी बताने वाली मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी का शासन है। मज़दूरों की यह हालत उन अमानवीय स्थितयों का विरोध करने के कारण हुई है जिनमें वे काम करने और जीने को मजबूर हैं।
मौजूदा स्थिति की शुरुआत 10 अगस्त की घटना से हुई। उस दिन मज़दूरों ने, एक 22 वर्षीय स्त्री मज़दूर को 8 माह का गर्भ होने पर भी मातृत्व अवकाश न दिए जाने और उसे चाय की पत्तियाँ चुनने का काम जारी रखने के लिए मजबूर करने के विरोध में प्रदर्शन किया था; जिसके बाद कम्पनी ने बग़ान पर ताला लटका दिया। दरअसल, 9 अगस्त को एक गर्भवती स्त्री मज़दूर आरती, काम करते-करते बाग़ान में बेहोश होकर गिर गयी थी। वहाँ के चिकित्सा अधिकारी द्वारा उनके लिए एम्बुलेंस न भेजने पर उन्हें ट्रैक्टर के पीछे एक रेहड़ी लगाकर, उस पर लिटाया गया और वहाँ से अस्पताल ले जाया गया। वहाँ भी उनका उपचार नहीं किया गया जिस पर मज़दूरों ने विरोध किया तब कहीं जाकर उनको मामूली प्राथमिक उपचार प्रदान किया गया। वहाँ पर्याप्त इलाज न होने पर उन्हें उसी ट्रैक्टर से सरकारी अस्पताल ले जाया गया, जो वहां से करीब 1 घण्टे की दूरी पर है।
घटना की ख़बर फैलते ही करीब 500 मज़दूरों ने, जिनमें से अधिकांश स्त्रियां थीं, चिकित्सा परिसर का घेराव किया और उक्त चिकित्सा अधिकारी के ख़िालाफ कार्रवाई की मांग की। उस समय तो स्थानीय प्रबंधन ने मज़दूरों से मिलकर बात करने का आश्वासन दिया, लेकिन 11 अगस्त को चिकित्सा अधिकारी सहित प्रबंधन बागान से चला गया और तालाबन्दी की घोषणा कर दी।
इसके बाद 27 अगस्त को, बेहद कम मज़दूरों का प्रतिनिधित्व करने वाली तीन ट्रेड यूनियनों के साथ प्रबंधन ने बाग़ान को खोलने का समझौता किया। इस समझौते के तहत, तालाबन्दी के दौरान सभी मज़दूरों की दिहाड़ी पर रोक लगा दी गयी। इसमें समझौते में यह भी जोड़ा गया कि एक ”आंतरिक जांच” की जाएगी। यह समझौता अंग्रेजी में लिखा गया था, जिसे बाग़ान मज़दूर नहीं समझते।
अगले दिन चाय बाग़ान खोल दिया गया, लेकिन मज़दूरों को बाग़ान दोबारा चालू करने की शर्तें नहीं बतायी गयीं। 8 सितम्बर को, प्रबन्धन ने आठ मज़दूरों के निलम्बन और घरेलू जांच के पत्र जारी किये। आठों में से एक भी मज़दूर को इसकी सूचना के लिए पत्र नहीं दिया गया। इन आठों मज़दूरों में से किसी मज़दूर ने हिंसा या गैर-क़ानूनी व्यवहार नहीं किया था। इन्हें इसलिए निशाना बनाया गया क्योंकि वे बाग़ान मज़दूरों को उनके अधिकारों के बारे में जागरूक करते रहे हैं।
10 सितम्बर की एक बैठक में, प्रबन्धन ने मज़दूरों को बताया कि ये निलंबन पत्र 27 अगस्त के समझौते के अनुसार जारी किये गये हैं और बाग़ान को इसी शर्त पर खोला गया है कि इस समझौते का अनुपालन हो। दूसरे शब्दों में – इसका मतलब यह हुआ कि निलम्बन को स्वीकार करो या दोबारा तालाबंदी के लिए तैयार रहो। मज़दूरों ने इस चेतावनी का जवाब देने के लिए 6 दिन का समय माँगा। लेकिन प्रबंधन ने 4 दिन बाद ही, दोबारा तालाबन्दी कर दी। क्योंकि उस दिन मज़दूरों को दो महीने की तनख्वाह के बराबर बोनस मिलना था। अगस्त से लेकर तालाबन्दी तक मज़दूरों को केवल दो दिन का वेतन मिला था।
उसके बाद से मज़दूरों ने कई बार प्रबंधन ने बाग़ान चालू करने का अनुरोध किया, लेकिन प्रबंधन ने यह कहते हुए ऐसा करने से साफ इंकार कर दिया कि बाग़ान तब तक चालू नहीं होगा तब तक कि सभी मज़दूर 10 सितम्बर के अल्टीमेटम को स्वीकार करते हुए दर्ुव्यवहार का विरोध करने के अपने अधिकार को छोड़ेंगे नहीं।
टाटा टेटली प्रबंधन की इस मनमानी के चलते नावेड़ा नड्डी चाय बाग़ान के मज़दूरों और उनके परिवारों सहित 6500 लोग भूखो मरने की हालत में हैं। वैसे भी, तालाबन्दी नहीं होने पर भी चाय बाग़ान के मज़दूरों को 62.50 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से मजदूरी मिलती है। इस मामूली सी मज़दूरी में मज़दूर आमतौर पर बेहद दयनीय स्थिति में रहते हैं। इस पर तालाबन्दी ने उनकी हालत और खराब कर दी है।
उधर, टाटा चाय की वर्ष 2009 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, टाटा टी के प्रबंध निदेशक को प्रतिदिन नावेड़ा नड्डी के मजदूरों से लगभग 1000 गुना ज्यादा के हिसाब से तनख्वाह मिलती है। नावेड़ा नड्डी चाय बाग़ान का स्वामित्व ‘अमलगमेटेड प्लांटेशन प्राइवेट लिमिटेड’ के पास है, जिसका आधा मालिकाना टाटा टी कम्पनी के पास है। इस बाग़ान से तैयार हुई चाय टाटा टेटली के नाम से बाजार में आती है।
अब नावेड़ा नड्डी चाय बाग़ान के मज़दूरों ने एक संघर्ष समिति बनाई है जिसने तुरंत बाग़ान को चालू करने, निलंबन को वापस लेने और मज़दूरों पर कोई इलज़ाम न लगाने, 14 सितम्बर की बीती तिथि से मज़दूरी और राशन देने, हर वर्ष त्यौहारों पर देय बोनस का भुगतान करने और प्रबंधन द्वारा श्रीमती आरती से माफी मांगने की मांग की है। इस पूरे मामले में राज्य में काबिज माकपा की यूनियन सीटू ने हमेशा की तरह मज़दूरों से दगाबाज़ी का रुख अपनाया है। उसले विरोध-प्रदर्शन की घटना की निंदा करते हुए कंपनी द्वारा मज़दूरों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई को जायज़ ठहराया है। कंपनी के साथ मज़दूर-विरोधी समझौता करने में भी सीटू और हिंद मज़दूर सभा की यूनियन ही आगे रही थी।
बिगुल, दिसम्बर 2009
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