मज़दूर माँगपत्रक आन्दोलन-2011 के तहत करावल नगर में ‘मज़दूर पंचायत’ का आयोजन
बिन हवा ना पत्ता हिलता है, बिन लड़े ना कुछ भी मिलता है
बिगुल संवाददाता
शहीदेआज़म भगतसिंह, राजगुरू, सुखदेव के 80वें शहादत दिवस पर करावल नगर के न्यू सभापुर इलाक़े में ‘मज़दूर पंचायत’ का आयोजन किया गया। यह आयोजन मज़दूर माँगपत्रक आन्दोलन-2011 की तरफ़ से किया गया था। इसमें करावल नगर के तमाम दिहाड़ी, ठेका व पीस रेट पर काम करने वाले मज़दूरों ने भागीदारी की और अपनी समस्याओं को साझा किया।
मालूम हो कि विगत कई माह से ‘मज़दूर माँगपत्रक आन्दोलन- 2011’ के तहत श्रम क़ानून के अन्तर्गत मज़दूरों को मिलने वाले अधिकारों को लागू कराने और इनमें संशोधन-समीक्षा कराने और नये क़ानून बनाने की लड़ाई छेड़ी जा रही है। 26 माँगों वाले माँगपत्रक को भारत के करोड़ों मज़दूरों की ओर से 1 मई, 2011 को सरकार को सौंपा जायेगा। इसके प्रारम्भिक चरण में मज़दूर लॉजों, डेरे एवं बस्तियों में घर-घर जाकर ‘मज़दूर माँगपत्रक’ के बारे में बताने एवं मज़दूर परिवार के हस्ताक्षर जुटाने का काम किया जा रहा है। गली-गली में बैठकें करने के साथ ही, पूरे इलाक़े के मज़दूरों के जुटान का कार्यक्रम चलाया जा रहा है। 23 मार्च, 11 को आयोजित ‘मज़दूर पंचायत’ एक तरह से तमाम पेशों में लगे मज़दूर साथियों का जुटान था। ‘मज़दूर माँगपत्रक आन्दोलन-2011’ की करावल नगर समिति की तरफ़ से आयोजित इस मज़दूर पंचायत के लिए कार्यकर्ताओं ने सप्ताह भर पहले से ही तैयारी शुरू कर दी थी।
कार्यक्रम की शुरुआत शंकर शैलेन्द्र के गीत ‘भगतसिंह इस बार न लेना काया भारतवासी की, देशभक्ति के लिए तुम्हें फिर सज़ा मिलेगी फाँसी की’ के साथ हुई। साथी कपिल ने अपनी बात रखते हुए कहा कि आज हमारी ज़िन्दगी बद से बदतर होती जा रही है। शहीदों के सपनों को आये दिन तार-तार किया जा रहा है। ऐसे में, देश भर के मज़दूरों को एकजुट करने के उद्देश्य से, हर पेशा और क्षेत्र के मज़दूरों की संयुक्त माँगों का माँगपत्रक आज समय की ज़रूरत बन गया है। देशभर की शानो-शौकत मज़दूर की मेहनत के बूते है, लेकिन चीज़ों को बनाने वाले ही उनसे महरूम रह जाते हैं। हम अपने बच्चों को न तो पढ़ा-लिखा सकते हैं, और न ही ठीक तरीक़े से दवा-इलाज़ करा सकते हैं। सारी उम्र पेट का गड्ढा भरने में ही खप जाती है। कागज़ों पर जो क़ानून बनाये गये हैं उसके लिए मज़दूर वर्ग ने संघर्ष किया था, लेकिन आज वे कहीं भी लागू नहीं होते। हम आज भी आठ फुट की कोठरियों में ग़ुलामों की तरह जीने को मज़बूर हैं। ऐसे में, मज़दूर भाईयो, हमें अपनी और अपने बच्चों की ज़िन्दगी को ठीक करने के लिए एक बार फिर से एकजुट होना होगा।
सिलाई कारीगर राहुल ने कहा कि सुन्दर पोशाकों को बनाने वाले मज़दूरों की ज़िन्दगी फटेहाल है। पीस रेट पर काम होता है और मज़दूर महज़ जीने के लिए 16-16 घण्टा काम करता है। यहाँ पीस रेट तय करने में न्यूनतम मज़दूरी का क़ानून लागू नहीं होता। मज़दूरों का बेइन्तहा शोषण होता है। ‘बादाम मज़दूर यूनियन’ के करावल नगर के साथी नवीन ने बादाम मज़दूरों की बदहाली का ज़िक्र करते हुए कहा कि जब पूरा बादाम उद्योग ही अवैध उत्पादन तन्त्र के रूप में काम कर रहा है, तो उसमें खटने वाले मज़दूरों के लिए श्रम अधिकारों की बात ही क्या की जाये। बादाम उद्योग का मशीनीकरण शुरू होने के बाद से ही मज़दूर साथियों में अफरा-तफरी का माहौल बना हुआ है। लेकिन बादाम उद्योग का यह मशीनीकरण कई मायनों में मज़दूरों के पक्ष में है। अब हम एकजुट होकर फ़ैक्टरी एक्ट के तहत काम कराने की माँग उठा सकते हैं। काम के घण्टे, ओवरटाइम का भुगतान दुगुनी रेट से एवं ईएसआई, पीएफ की सुविधा की ख़ातिर हमें श्रम विभाग पर दबाव बनाने के लिए आगे बढ़ना होगा। ऐसे में, माँगपत्रक आन्दोलन-2011 की माँगे हमारी भी माँगे है। हमें नये सिरे से गोलबन्द होने की दिशा में सोचना होगा। मसलन, करावल नगर इलाक़े का मज़दूर संगठन – जिसके बैनर के तले हम करावल नगर के फ़ैक्टरी-कारख़ानों और निमार्ण कार्य के मज़दूरों से लेकर तमाम मज़दूर साथियों को एकजुट किया जा सके। तभी हम इलाक़े में अपनी ताक़त बढ़ा सकते हैं। बिगुल मज़दूर दस्ता के अजय ने कहा कि यूँ तो देश में 260 श्रम क़ानून दर्ज हैं लेकिन सारे क़ानून सिर्फ़ कागज़ों की ही शोभा बढ़ाते हैं। और इनमें से ज़्यादातर पुराने पड़ चुके हैं, इसलिए आज नये श्रम क़ानून बनाने की माँग के साथ ही श्रम विभाग के ढाँचे का जनतान्त्रिकरण करने की माँग भी उठानी होगी जिससे कि इसमें श्रम अधिकारियों के अलावा मज़दूर प्रतिनिधि, क़ानून विशेषज्ञ और जनवादी आन्दोलनों के प्रतिनिधियों को भी शामिल किया जाये। इसके अतिरिक्त कैज़ुअल, पीस रेट पर काम करने वाले मज़दूरों की माँग, कार्यस्थल की परिस्थतियों को ठीक करने की माँग, प्रवासी मज़दूरों के कार्ड एवं आवास सम्बन्धी माँगों की ख़ातिर हमें माँगपत्रक आन्दोलन- 2011 से जुड़ना होगा। साथियो, सरकार को मज़दूरों का माँगपत्रक सौंपने के लिए आने वाले 1 मई को पूरे परिवार के साथ चलना है।
‘माँगपत्रक आन्दोलन- 2011’ के आन्दोलन में शामिल साथी पवन ने ‘एक कथा सुनो रे लोगों’ गीत के ज़रिये मज़दूरों के हालात के बारे में बताया। कपिल व अन्य साथियों ने ‘अब की लड़ैय्या में मचत घमासान हो’ गीत गाकर लोगों का उत्साहवर्द्धन किया।
बिगुल मज़दूर दस्ता के साथी अभिनव ने कहा कि मज़दूर वर्ग की मुक्ति राज-काज और समाज के पूरे ढाँचे पर मज़दूर वर्ग के अधिकार द्वारा ही सम्भव है, लेकिन ऐसा होने तक हम चुप नहीं बैठेंगे। आज मौजूदा क़ानूनों को लागू करवाने और नये श्रम क़ानूनों की माँग की लड़ाई भी मज़दूर वर्ग को लड़नी होगी। सभा का संचालन कर रहे आशीष ने कहा कि माँगपत्रक आन्दोलन के ज़रिये हम अपनी बुनियादी माँगों पर एकजुट होने का रास्ता निकाल सकते हैं। करावल नगर के तमाम मज़दूरों को आज ‘करावल नगर मज़दूर यूनियन’ के रूप में गोलबन्द होने की सख़्त ज़रूरत है। अगर हमारी माँगें और ज़रूरतें एक बन रही हैं तो हमें एक बैनर तले लामबन्द होना ही होगा। कार्यक्रम का समापन बादाम मज़दूरों के बच्चों द्वारा ‘रुके न जो, झुके न जो’ गीत के साथ किया गया।
मज़दूर बिगुल, मार्च 2011
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मज़दूरों के महान नेता लेनिन