‘सरूप सन्स’ के मज़दूरों को जुझारू संघर्ष से मिली आंशिक जीत

लखविन्दर

लुधियाना। बजाज ग्रुप के एक कारख़ाने सरूप सन्स इण्डस्ट्रीज़ लिमिटेड के मज़दूर अपने बुनियादी अधिकारों के लिए संघर्ष की राह पर हैं। इस ऑटो पार्ट्स कारख़ाने में लगभग सवा सौ मज़दूर काम करते हैं जिनमें महिलाएँ भी हैं। यहाँ के मज़दूरों को कुशलता के अनुसार न्यूनतम मज़दूरी, पहचानपत्र, भत्ते, हादसों व प्रदूषण से होने वाली बीमारियों आदि से सुरक्षा जैसे कोई भी बुनियादी अधिकार नहीं दिये गये हैं। इस कम्पनी में श्रम क़ानूनों की कोई जगह नहीं है। कम्पनी की ज़ोर-ज़बरदस्ती के ख़िलाफ वैसे तो यहाँ के मज़दूर लम्बे समय से संघर्ष कर रहे हैं लेकिन अब उन्होंने अधिक जुझारू, अधिक सूझबूझ और योजनाबद्ध तरीक़े से संघर्ष की नयी शुरुआत की है।

लगभग छह महीने पहले जब बजाज ग्रुप के अन्य कारख़ानों में मज़दूरों ने संगठन बनाया था, तब से ही इस कारख़ाने के मज़दूर भी एकजुट होकर हक़ हासिल करने का प्रयास कर रहे हैं। चूँकि अन्य यूनिटों में सीटू की यूनियनें बनीं, इस कारख़ाने के मज़दूरों ने भी उसे आज़माया। लेकिन जैसे-जैसे सीटू का दलाल चरित्र नंगा होता गया इस यूनिट के मज़दूरों ने सीटू से अपना पीछा छुड़ा लिया। सितम्बर 2010 में मज़दूरों ने कारख़ाना मज़दूर यूनियन से सम्पर्क किया। अक्टूबर में मज़दूरों ने मालिक द्वारा बोनस में किये जा रहे घोटाले के ख़िलाफ कारख़ाना मज़दूर यूनियन के नेतृत्व में दो दिन की हड़ताल की। मज़दूरों की जुझारू एकजुटता के आगे झुकते हुए मालिक को न सिर्फ पूरा बोनस देना पड़ा था, बल्कि हर मज़दूर का 200 रुपया वेतन भी बढ़ाना पड़ा था। मज़दूर तब से अपने बुनियादी अधिकारों के लिए बड़े संघर्ष की तैयारी में जुटे हुए हैं।

125वें मई दिवस पर मज़दूर माँगपत्रक आन्दोलन के तहत जन्तर-मन्तर, नई दिल्ली पर हुई रैली में भाग लेने के लिए इस कारख़ाने के मज़दूरों ने प्रबन्धन को 1 मई को छुट्टी करने का नोटिस सौंप दिया था। इससे बौखलाकर मालिक ने 2 मई को कारख़ाने में यह नोटिस लगवा दिया कि अब कारख़ाना आठ घण्टे ही चलेगा। चूँकि यहाँ वेतन बेहद कम मिलता है, इसलिए मज़दूरों को मजबूरन ओवरटाइम लगाना पड़ता है। मालिक और प्रबन्‍धन ने सोचा था कि ओवरटाइम बन्द करने से मज़दूरों का हौसला टूट जायेगा और वे कभी अपने हक़ के लिए आवाज़ उठाने की हिम्मत नहीं करेंगे। लेकिन मज़दूरों ने ऐलान किया कि जब तक मालिक ओवरटाइम का दोगुना भुगतान और वेतन बढ़ोत्तरी लागू नहीं करता तब तक वे अब ख़ुद ही ओवरटाइम नहीं लगायेंगे। इसके बाद मालिक ने कुछ मज़दूरों को काम से निकालकर उनकी हिम्मत तोड़ने की कोशिश की। निकाले गये मज़दूरों को वापस काम पर लेने के लिए बाकी मज़दूरों द्वारा बार-बार माँग किये जाने पर भी जब मालिक राजी न हुआ तो मालिकान की ज़ोर-ज़बरदस्ती के ख़िलाफ कारख़ाना मज़दूर यूनियन द्वारा एक पर्चा इलाक़े के मज़दूरों में बाँटा गया और समर्थन की अपील की गयी। अगले दिन कारख़ाने के सभी मज़दूर इकट्ठा होकर निकाले गये मज़दूरों को कारख़ाने में ले गये। इससे घबराकर निकाले गये चार मज़दूरों को काम पर रख लिया गया।

इसके बाद मज़दूरों ने वेतन बढ़ोतरी, स्त्री मज़दूरों को बराबर काम का बराबर वेतन, सभी भत्तों को लागू करवाने, पहचानपत्र, सुरक्षा के प्रबन्ध, ओवरटाइम का डबल भुगतान आदि माँगों को लेकर लड़ाई तेज़ कर दी। 21 मई को मालिक को सभी मज़दूरों की ओर से एक माँगपत्र सौंपा गया। माँगपत्र पर कोई सकारात्मक कार्रवाई न होने पर 31 मई को मज़दूरों ने श्रम विभाग पर प्रदर्शन करके कम्पनी के ख़िलाफ कार्रवाई और हक़ दिलवाने की माँग की। इस बीच न सिर्फ ओवरटाइम लगभग बन्द रहा बल्कि सामान्य दिन का उत्पादन भी डाउन रहा। इस तरह मज़दूरों ने मालिक पर कई तरफ से दबाव बनाना जारी रखा। लेबर इंसपेक्टर के कारख़ाने में आने पर मज़दूर प्रतिनिधियों के सामने कम्पनी मैनेजर ने वायदा किया कि कम्पनी में मई महीने से ही न्यूनतम वेतन लागू कर दिया जायेगा, न्यूनतम वेतन या इससे अधिक पाने वाले मज़दूरों के वेतन में भी बढ़ोत्तरी कर दी जायेगी, पहचानपत्र बना दिये जायेंगे, महिलाओं को पक्का कर दिया जायेगा और उनके लिए बराबर काम का बराबर वेतन का नियम लागू किया जायेगा, वेतन पर्ची लागू होगी, पी.एफ. पर्ची हर महीने देने का नियम लागू कर दिया जायेगा। कम्पनी में पहले यह लागू था कि मज़दूर का वेतन किसी काग़ज़ पर लिखा होता था और उनके हस्ताक्षर किन्हीं और काग़ज़ों पर करवाये जाते थे। माँगपत्र में यह गुण्डागर्दी बन्द करने की भी माँग उठायी गयी थी। अब कम्पनी यह माँग मानने को भी तैयार हो गयी। मज़दूरों को आंशिक जीत प्राप्त हुई। जिन मज़दूरों को 3,850 से नीचे वेतन हासिल हो रहा था, उन सभी का वेतन 3,850 कर दिया गया। सबसे अधिक बढ़ोत्तरी यहाँ काम करने वाली 6 स्त्री मज़दूरों को हासिल हुई। हरेक का वेतन 1,150 रुपये बढ़ गया। बाकी मज़दूर जो इससे अधिक वेतन पर काम कर रहे थे, उन्हें 150 रुपये की बढ़ोतरी दी गयी। प्रबन्धन ने पहचानपत्र बनाने के लिए मज़दूरों को फार्म भी बाँट दिये लेकिन मज़दूरों ने फार्म यह कहक़र लौटा दिये कि इसमें मज़दूरों की कुशलता (ग्रेड) और काम पर लगने की तारीख़ नहीं दर्ज की गयी है।

हालाँकि यह एक आंशिक जीत ही है क्योंकि अन्य बुनियादी माँगों और सभी श्रम क़ानूनों को लागू करवाने की माँग पर अभी कार्रवाई नहीं हुई है। इन सभी माँगों को लेकर मज़दूरों का संघर्ष अभी भी जारी है। लेकिन मज़दूरों को यह भी समझना होगा कि मालिक हमेशा नयी-नयी चालें चलकर मज़दूरों की एकता तोड़ने की कोशिश करते हैं और मज़दूरों ने संघर्ष करके जो कुछ भी हासिल किया है उसे छीनने का प्रयास करते हैं। इसलिए मज़दूरों को चौकस रहना होगा। यूनियन के काम में जनवाद को मज़बूती से लागू करते हुए लम्बी लड़ाई के लिए एक मज़बूत संगठन का निर्माण करना होगा। साथ ही मज़दूरों को यह भी समझना होगा कि वे सिर्फ अपने बलबूते ही लड़ाई को अधिक आगे नहीं बढ़ा सकते। अन्य कारख़ानों के मज़दूरों को साथ में लेना बेहद ज़रूरी है। इसके लिए हालात उनसे गम्भीर प्रयास करने की माँग करते हैं।

बजाज ग्रुप के अन्य कारख़ानों में, जहाँ लगभग 2,000 मज़दूर हैं, बिगुल मज़दूर दस्ता तथा कारख़ाना मज़दूर यूनियन का ख़ासा प्रभाव है लेकिन यूनियन का नेतृत्व सीटू के पास है। मगर सभी मज़दूर इस बात को समझ चुके हैं कि सीटू पूरी तरह से मालिक के इशारों पर काम करती है। 19 मई को कम्पनी द्वारा कुछ मज़दूरों के ओवरटाइम के पैसे में किये गये घपले के ख़िलाफ इन सभी मज़दूरों ने अपनी पहल पर ओवरटाइम बन्द कर दिया था।

हम यहाँ यह भी बता दें कि अधिक से अधिक ओवरटाइम लगाने के लिए सीटू नेता ख़ुद मज़दूरों को कहते हैं, यहाँ तक कि ज़बरदस्ती  भी करते हैं। ऐसे में सीटू नेताओं की मजबूरी बनी कि वे आकर मोर्चा सँभालें। लेकिन उन्होंने बस यह बयान दे दिया कि जब तक मैनेजमेण्ट बात नहीं करेगा तक तब ओवरटाइम नहीं होगा। बिगुल मज़दूर दस्ता और कारख़ाना मज़दूर यूनियन द्वारा मज़दूरों के नाम जारी एक पर्चे तथा ओवरटाइम के पैसे में किये गये घपले के ख़िलाफ शुरू किये गये संघर्ष का बजाज ग्रुप के मज़दूरों ने ज़ोरदार स्वागत किया।

सीटू की हमेशा से ही नीति रही है कि प्रोडक्शन बढ़वाकर और अधिक से अधिक ओवरटाइम लगवाकर आमदनी बढ़वाने का ड्रामा किया जाये। यह नीति मज़दूरों के लिए बेहद ख़तरनाक है। मज़दूरों की असल लड़ाई तो आठ घण्टे के काम की मज़दूरी बढ़वाने तथा अन्य अधिकार हासिल करने की है। बिगुल मज़दूर दस्ता और कारख़ाना मज़दूर यूनियन के आह्वान का बजाज ग्रुप के मज़दूरों ने ज़ोरदार स्वागत किया। सीटू के नेताओं को मजबूरी में आपातकालीन मीटिंग करके कुशलता के मुताबिक़ वेतन लागू करवाने, पहचानपत्र बनवाने, ओवरटाइम का दोगुना भुगतान आदि माँगें उठानी पड़ीं। श्रम विभाग में तारीख़ें पड़ने लगीं। बिना मज़दूरों से पूछे और बिना मालिक से कुछ हासिल किये सीटू नेताओं ने ओवरटाइम चलवाने का समझौता कर लिया। इसके विरोध में मज़दूरों ने सीटू नेताओं द्वारा बुलायी गयी मीटिंग में सीटू और इसके नेताओं के ख़िलाफ जमकर नारे लगाये। 95 प्रतिशत मज़दूरों ने सीटू का फैसला मानने से इनकार दिया। लेकिन सीटू नेताओं ने उन अगुवा मज़दूरों की लिस्ट कम्पनी को सौंप दी जो अब ओवरटाइम बन्द रखने के लिए मज़दूरों की अगुवाई कर रहे थे। अन्य मज़दूरों को भी सीटू ने तरह-तरह से धमकाकर और मज़दूरों को ओवरटाइम दुबारा शुरू करने के लिए बाध्य किया। लेकिन इस घटनाक्रम ने बजाज सन्स कम्पनी के मज़दूरों के बीच सीटू को बुरी तरह नंगा कर दिया है। बजाज सन्स के ये सारे मज़दूर अगर दलाल और समझौतापरस्त सीटू से पूरी तरह पीछा छुड़ाकर सरूप सन्स के मज़दूरों की राह अपनाते हैं तो इसमें कोई शक नहीं कि वे बड़ी उपलब्धियाँ हासिल कर सकते हैं।

मज़दूर बिगुल, मई-जून 2011

 


 

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