झिलमिल और बादली औद्योगिक क्षेत्र में माँगपत्रक आन्दोलन का सघन प्रचार अभियान
बिगुल संवाददाता
दिसम्बर के पहले सप्ताह में राजधानी दिल्ली के झिलमिल औद्योगिक क्षेत्र और इससे लगी मजदूर बस्तियों की दीवारों पर मजदूरों के एक नये आन्दोलन के नारों ने फैक्ट्री आते-जाते मजदूरों का धयान खींचना शुरू कर दिया। ‘अब चलो नयी शुरुआत करो, मजदूर मुक्ति की बात करो’, ‘मजदूर साथियो जागो, अपना हक लड़कर माँगो’, ‘मजदूर माँगपत्रक आन्दोलन का नारा – लड़कर लेंगे अपना हक सारा’ जैसे नारे दीवारों पर लिखे थे और कारख़ानों तथा बस्तियों की दीवारों पर चिपके हाथ से लिखे पोस्टर मजदूरों की बुनियादी माँगों को उठाने के साथ ही संघर्ष के लिए एकजुट होने का आह्नान कर रहे थे।
फिर 7 दिसम्बर की शाम को झिलमिल के कारख़ानों से बस्ती की ओर जाने वाले रास्ते पर जोरदार नारों की आवाज ने काम से लौटते मजदूरों को रुक जाने पर विवश कर दिया। देखते ही देखते माँगपत्रक आन्दोलन की अभियान टोली के चारों ओर मजदूरों का घेरा बन गया और फिर ढपली की थाप के साथ एक जोशीले क्रान्तिकारी गीत के बाद एक कार्यकर्ता ने मजदूरों के हालात और माँगपत्रक आन्दोलन के बारे में बताना शुरू कर दिया। मजदूरों ने उत्साह के साथ प्रचार टोली की बातों को सुना, आन्दोलन के पर्चे लिये, कई मजदूरों ने माँगपत्रक पुस्तिका खरीदीं और इसके बारे में और जानने तथा इससे जुड़ने के लिए अपने नाम-पते- फोन नम्बर नोट कराये। तीन दिनों तक झिलमिल औद्योगिक इलाके में दर्जनों जगहों पर यह दृश्य दिखा।
‘मजदूर बिगुल’ के पिछले अंकों में प्रकाशित रिपोर्टों से पाठक जानते होंगे कि देश के विभिन्न हिस्सों में मजदूर कार्यकर्ताओं, विभिन्न मजदूर यूनियनों, और क्रान्तिकारी जनसंगठनों द्वारा माँगपत्रक आन्दोलन2011 की शुरुआत की गयी है। यह एक महत्तवपूर्ण आन्दोलन है जिसमें भारत के मजदूर वर्ग का एक व्यापक माँगपत्रक तैयार करते हुए भारत की सरकार से यह माँग की गयी है कि उसने मजदूर वर्ग से जो-जो वायदे किये हैं उन्हें पूरा करे, श्रम कानूनों को लागू करे, नये श्रम कानून बनाये और पुराने पड़ चुके श्रम कानूनों को रद्द करे। इस माँगपत्रक में 26 श्रेणी की माँगें हैं जो आज के भारत के मजदूर वर्ग की लगभग सभी प्रमुख आवश्यकताओं का प्रतिनिधित्व करती हैं और साथ ही उसकी राजनीतिक माँगों को भी अभिव्यक्त करती हैं। इन सभी माँगों के लिए मजदूर वर्ग में व्यापक जनसमर्थन जुटाने के लिए दिल्ली, पंजाब, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ के विभिन्न हिस्सों में इस माँगपत्रक को लेकर कार्यकर्ता कारख़ाना इलाकों और मजदूरों के रिहायशी इलाकों में जा रहे हैं और उन्हें इसके बारे में समझा और बता रहे हैं। साथ ही, इस माँगपत्रक के समर्थन में मजदूरों के हस्ताक्षर जुटाये जा रहे हैं। मजदूरों को गोलबन्द-संगठित करने के लिए उनके रिहायशी इलाकों में उनकी गोलबन्दी कमेटियाँ बनायी जा रही हैं।
इसी के तहत झिलमिल इलाके में 4 से 9 दिसम्बर तक और बादली औद्योगिक क्षेत्र तथा आसपास की मजदूर बस्तियों में 20 से 24 दिसम्बर तक सघन प्रचार अभियान चलाया गया। पहले तीन दिनों तक अभियान टोली ने झिलमिल औद्योगिक क्षेत्र और उससे लगी तीन बस्तियों – राजीव कैम्प, सोनिया कैम्प तथा अम्बेडकर कैम्प में दीवारों पर आन्दोलन के नारे और इसकी प्रमुख माँगों को लिखा और बड़े पैमाने पर पोस्टर बनाकर चिपकाये। दीवारों के अलावा रास्तों के किनारे के पेड़ों और खम्भों पर भी गत्तो बाँधकर उन पर पोस्टर लगाये गये। फिर तीन दिनों तक इलाके में जगह-जगह नुक्कड़ सभाओं का सिलसिला शुरू किया गया जिनमें वक्ताओं ने मजदूरों को बताया कि आज देश के 93 प्रतिशत से भी अधिक मजदूरों को बुनियादी अधिकार भी हासिल नहीं हैं। 10-10, 12-12 घण्टे कारख़ानों में खटने के बाद भी उन्हें न्यूनतम मजदूरी भी नहीं मिलती जोकि ख़ुद ही बेहद कम है। माँगपत्रक आन्दोलन काम के घण्टे आठ करने, न्यूनतम मजदूरी कम से कम 11,000 रुपये करने, मजदूरी सहित साप्ताहिक छुट्टी देने, जबरन ओवरटाइम बन्द करने और ओवरटाइम का डबल रेट से भुगतान करने,ठेका प्रथा ख़त्म करने और इसके ख़त्म होने तक ठेका मजदूरों को सभी जायज सुविधाएँ मुहैया कराने और सभी श्रम कानूनों को सख्ती से लागू कराने की बात उठा रहा है। स्त्री मजदूरों को समान काम की समान मजदूरी, उनके लिए कारख़ानों में अलग शौचालय, पालनाघर और मातृत्व अवकाश देने की भी इसमें माँग की गयी है। प्रवासी मजदूरों, पीस रेट पर काम करने वाले मजदूरों, लेबर चौक पर दिहाड़ी करने वाले मजदूरों सहित हर प्रकार के असंगठित मजदूरों की माँगों को इसमें उठाया गया है। काम की जगहों पर सुरक्षा और दुर्घटना के उचित मुआवजे की माँग को भी प्रमुखता के साथ उठाया गया है।
बादली औद्योगिक क्षेत्र और इसके आसपास राजा विहार, सूरज पार्क, यादवनगर में मजदूरों के रिहायशी इलाकों में 20 से 24 के बीच प्रचार अभियान चलाया गया। यहाँ भी पहले व्यापक दीवार लेखन तथा पोस्टर लगाने के बाद मजदूर बस्तियों में सुबह-सुबह गीत गाते हुए प्रभातफेरी निकाली गयी, और फिर सुबह-सुबह काम पर जाते हुए मजदूरों की विशाल आबादी के बीच नारे लगाते हुए हजारों पर्चे बाँटे गये। इसके बाद साइकिलों पर नारों की तख्तियाँ लगाये हुए कार्यकर्ताओं की टोली ने पूरे औद्योगिक इलाके में घूमते हुए जगह-जगह सभाएँ करके माँगपत्रक आन्दोलन के बारे में मजदूरों को बताया। शाम से लेकर रात तक रिहायशी इलाकों में प्रचार अभियान चलाया गया। सभाओं में वक्ताओं ने इस बात पर जोर दिया कि माँगपत्रक2011 मजदूर वर्ग की सभी कानूनी और संवैधानिक माँगों को देश की पूँजीवादी सरकार के सामने रखता है। उन्होंने यह भी कहा कि मजदूर वर्ग की मुक्ति की लड़ाई इस माँगपत्रक आन्दोलन से पूरी नहीं हो जाती यह तो एक शुरुआत है। यह आन्दोलन पूरी व्यवस्था और सत्ता के चरित्र को मजदूर वर्ग के समक्ष और अधिक साफ करेगा। साथ ही, यह आन्दोलन मजदूर वर्ग की कई जायज माँगों को जीतने और फौरी राहत हासिल करने का काम भी कर सकता है।
अलग-अलग इलाकों में चलाये जाने वाले इन सघन प्रचार अभियानों के साथ मजदूर इलाकों में घर-घर जाकर और कारख़ाना इलाकों में माँगपत्रक पर मजदूरों के हस्ताक्षर जुटाने का काम भी लगातार चलाया जा रहा है।
मज़दूर बिगुल, जनवरी 2011
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मज़दूरों के महान नेता लेनिन