आपस की बात
देशव्यापी हड़ताल किसके लिए?

आनन्द, गुड़गांव

20-21 फरवरी 2013 दो दिवसीय देशव्यापी अनुष्ठानिक हड़ताल कुल 11 बड़ी ट्रेड यूनियनों ने मिलकर की जिससे बहुत मजदूर भ्रम में पड़ गये कि ये यूनियन वाले हमारे हितैषी हैं और हमारा साथ दे रहे हैं। वर्षो से पल रहा गुस्सा निकल पड़ा जिससे कई जगह तोड़फोड़ और आगजनी की घटनाऐं हुई। मगर उन मजदूरों को ये शंका भी न हुई कि ये हमारे वर्ग के गद्दार और आस्तीन के सांप है। जिनका यह काम ही है कि हर साल ऐसे एक-दो अनुष्ठान करते रहो, जिससे की दुकानदारी चलती रहे। और मजदूर भ्रम में बने रहें। कि उनकी बात भी कहने वाले कुछ लोग है। हड़ताल वाले दिन नोएडा में तोड़फोड़ हुई। जिसकी सज़ा तुरन्त मजदूरों को मिली और अभी तक 150 से भी ज्यादा मजदूर जेल में है। मगर जिन बड़ी ट्रेड यूनियनों ने मिलकर ये अनुष्ठान सम्पन्न किया। उन्हीं में से एक ट्रेड यूनियन (एटक) के नेता और सांसद गुरूदास दासगुप्ता ने पुलिस से माँफी माँगी कि इस हिंसा में यूनियन की कोई गलती नहीं है। मैं गुड़गांव में था। गुड़गांव में सामान्य व्यवस्था बरकरार रही। जैसे मजदूर रोज फ़ैक्टरी जाते थे वैसे 20 और 21 को गए। आम मेहनतकशों पर कोई खास असर न था। हड़ताल के दौरान दोनों दिन हीरो मोटो कार्प बन्द रही। क्योंकि पिछले सात महीनों से हीरो के स्थाई मजदूर वेतन वृद्धि की माँग कर रहे है। जिसके चलते दो महीने से हाथ पर काली पट्टी बाँधकर विरोध प्रदर्शन कर रहे थे। अभी 28 फरवरी से यूनियन के पांच मुख्य पदधिकारी आमरण अनशन पर चले गए है। मैनेजमेण्ट से अभी तक करीब 60 बैठक भी हो चुकी है 20 व 21 फरवरी को मारुति सुजुकी के गुड़गांव  व मानेसर प्लांट भी बन्द रहे। क्योंकि जुलाई 2012 में मारुति मानेसर प्लांट में हिंसा भड़की थी। और आज भी करीब 25 सौ मजदूर सड़क पर है। जिसमें स्थाई मजदूर आज भी संघर्षरत है। इसी आटो बेल्ट से जुड़ी हेमा इन्जीनियरिंग, आटोपिट, रिको जैसी कई कम्पनियाँ जो हीरो व मारुति को माल सप्लाई करती है उसमें एक या आधे दिन की छुट्टी मुर्करर हुई जिसमें बहुतों को तो उस छुट्टी की भरपाई रविवार को काम कर के करनी पड़ी। जबकि कुछ फ़ैक्टरीयां नोएडा की हिंसा के बाद मालिकों ने डर कर 21 फरवरी को बन्द रखी। बाकी पूरे गुड़गांव के उद्योग विहार के गारमेन्ट मजदूरों से लेकर मानेसर के आटो मजदूरों तक का जनजीवन अपनी सामान्य गति पर था। अब यह बात दिन के उजाले की तरह साफ़ है कि इस दो दिवसीय हड़ताल से मजदूर वर्ग को कुछ भी हासिल नहीं हुआ और ये दावा है कि ऐसे अनुष्ठानों से कुछ हासिल भी न होगा क्योंकि ये पहली आम हड़ताल नहीं थी बल्कि 1990 के दशक से अब तक का 15वां ‘‘देशव्यापी बन्द’’ था। और कहा जाए तो इससे मजदूर वर्ग को नुकसान के सिवा और कुछ नहीं मिलता क्योंकि ऐसी दो दिवसीय नौंटकी के बाद मजदूर यह दलील देने लगते है कि हुई तो थी हड़ताल, क्या हो गया उससे?

 

मज़दूर बिगुलमार्च  2013

 


 

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