चुनावों में भाजपा के फ़र्ज़ी मुद्दों से सावधान!
भारत
अभी महाराष्ट्र और झारखण्ड में चुनाव चल रहे हैं। इस समय इन विधानसभा चुनावों में (ख़ासतौर पर झारखण्ड में) “घुसपैठियों” पर ख़ूब बयानबाज़ी की जा रही है। यह बताने की ज़रूरत नहीं कि इस मुद्दे को भाजपा द्वारा ही सबसे अधिक उछाला जा रहा है। भाजपा ऐसा माहौल बना रही है कि झारखण्ड में “घुसपैठियों” के अलावा और कोई मुद्दा ही नहीं है। पिछले कुछ महीनों से बीजेपी के नेता यह दावा कर रहे हैं कि झारखण्ड के संथाल परगना में बड़ी संख्या में बंगलादेशी “घुसपैठिये” आकर बस गये हैं। भाजपा आरोप लगा रही है कि वे आदिवासियों की ज़मीन पर क़ब्ज़ा कर रहे हैं, आदिवासी महिलाओं से शादी कर रहे हैं, और इस कारण आदिवासियों की जनसंख्या घट रही है। भाजपा के असम के मुख्यमन्त्री खुलकर साम्प्रदायिक बयान दे रहे हैं कि “घुसपैठिये रोटी-बेटी लूट लेंगे।” आइये सबसे पहले तो भाजपा द्वारा फैलाये गये इस “घुसपैठ” के दावों की हक़ीक़त के बारे में जान लेते हैं।
इस मसले को लेकर ‘झारखण्ड जनाधिकार महासभा’ और ‘लोकतन्त्र बचाओ अभियान’ ने क्षेत्रीय तथ्यों का विश्लेषण करने के लिए फैक्ट फाइंडिंग की, यानी तथ्यों की जाँच-पड़ताल की। द मूक नायक की रिपोर्ट के अनुसार इस टीम ने स्थानीय लोगों, पीड़ितों, आरोपियों, ग्रामीणों, ग्राम प्रधानों और सामाजिक कार्यकर्ताओं से विस्तृत बातचीत की। साथ ही 1901 से अब तक की जनगणना के आँकड़े, जनगणना रिपोर्ट, गज़ेटियर और क्षेत्रीय आबादी से सम्बन्धित शोध पत्रों का अध्ययन किया गया। तथ्यों को रांची के प्रेस क्लब में मीडिया के समक्ष भी साझा किया गया। टीम ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि ज़मीनी हक़ीक़त भाजपा के साम्प्रदायिक दावों से कोसों दूर है। जाँच-प़ड़ताल टीम ने कई गाँवों का दौरा किया और सभी गाँवों के ग्रामीणों, शहर के लोगों, छात्रों, जन प्रतिनिधियों आदि से पूछा कि किसी को बंगलादेशी “घुसपैठियों” के बारे में जानकारी है या नहीं। सभी ने कहा कि उन्हें ऐसी कोई जानकारी नहीं है। जब पूछा गया कि “घुसपैठियों” के बारे में उन्होंने कहाँ सुना है, तो सभी ने कहा कि सोशल मीडिया पर सुना है, लेकिन कभी देखा नहीं है। चाहे ज़मीन लेकर बसने की बात हो, आदिवासी महिलाओं से शादी की बात हो या हाल की हिंसा की बात हो, इनमें बंगलादेशी “घुसपैठियों” का कोई सवाल ही नहीं है। फैक्ट फाइंडिंग के दौरान यह पाया गया कि भाजपा द्वारा उठाये गये मुद्दों में बंगलादेशी “घुसपैठियों” का कोई सबूत ही नहीं मिला है। स्थानीय लोग और क्षेत्रीय अधिकारी भी इन दावों को ख़ारिज करते हैं।
भाजपा लगातार दावा कर रही है कि बंगलादेशी “घुसपैठियों” के चलते पिछले 24 वर्षों में आदिवासियों की जनसंख्या 10-16% कम हुई है। इसके उलट सरकारी दस्तावेज़ों तक में बंगलादेशी “घुसपैठियों” के बसने का कोई प्रमाण नहीं है। जनगणना के आँकड़ों के अनुसार संथाल परगना क्षेत्र में 1951 में 46.8% आदिवासी, 9.44% मुसलमान और 43.5% हिन्दू थे। 1991 में आदिवासियों की जनसंख्या 31.89% थी और मुसलमानों की 18.25% थी। 2011 की जनगणना के अनुसार क्षेत्र में 28.11% आदिवासी, 22.73% मुसलमान और 49% हिन्दू थे। 1951 से 2011 के बीच हिन्दुओं की आबादी 24 लाख बढ़ी है और मुसलमानों की 13.6 लाख और आदिवासियों की 8.7 लाख आबादी बढ़ी है। वहीं आदिवासियों की जनसंख्या में गिरावट का मुख्य कारण अपर्याप्त पोषण, स्वास्थ्य व्यवस्था और आर्थिक तंगी हैं। बंगलादेशी “घुसपैठियों” की मौजूदगी इन कारणों में कहीं भी शामिल नहीं है।
आख़िर भाजपा ऐसे फर्ज़ी मुद्दे ही क्यों उठाती है!
ज़रा सोचिए, ऐसा क्यों होता है कि जैसे–जैसे चुनाव नज़दीक आता जाता है और विशेषकर भाजपा सरकार को हार का ख़तरा सताने लगता है, वैसे ही देश भर में दंगों का माहौल बनना क्यों शुरू हो जाता है? क्यों चुनाव के समय ही मन्दिर और मस्जिद के नाम पर लड़ाइयाँ शुरू हो जाती हैं? क्यों ख़बरों में ऐसा आना शुरू हो जाता है कि पाकिस्तान या चीन देश की सुरक्षा के लिए ख़तरा हैं और क्यों फर्जी युद्धोन्माद भड़काना शुरू कर दिया जाता है? और आख़िर क्यों चुनाव आते ही अचानक “घुसपैठ” तेज़ हो जाते हैं? इन सवालों का जवाब बिल्कुल साफ़ है! चुनाव के समय भाजपा जैसी फ़ासीवादी पार्टी रोज़गार, महँगाई, भ्रष्टाचार, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि जैसे ज़रूरी मुद्दों पर बात कर ही नहीं सकती, क्योंकि न तो इन्होंने कभी इस पर काम किया है और न ही इन मुद्दों पर काम करना इनका मक़सद रहा है। यह तो पूरे तन-मन-धन से अपने मालिकों के वर्ग यानी अम्बानी-अडानी, टाटा-बिड़ला आदि जैसे पूँजीपतियों की सेवा में लगे रहते हैं। अब चूँकि इनके पास असल मुद्दे होते ही नहीं जिनपर ये वोट माँग सकें, इसलिए यह आम जनता के सामने नक़ली मुद्दे खड़े करते हैं और नक़ली दुश्मन पेश करते हैं, जिसके सर पर अपनी और समूची पूँजीवादी व्यवस्था की सारी नाकामयाबियों का ठीकरा फोड़ सकें। साम्प्रदायिक तनाव भड़का कर जनता का ध्यान असल मुद्दों से हटा दिया जाता है, मुसलमानों के रूप में बाकी बहुसंख्यक समुदाय के सामने एक नक़ली दुश्मन पेश किया जाता है और यह लफ्फ़ाज़ी की जाती है कि सारी समस्याओं की जड़ मुसलमान हैं! जबकि सच्चाई यह है कि पूँजीवादी व्यवस्था में शोषण, ग़रीबी, बेरोज़गारी और महँगाई का शिकार आम मेहनतकश जनता है, चाहे वह हिन्दू हो, मुसलमान हो या कोई और। लेकिन यह जनता इन असल समस्याओं पर एकजुट न हो सके, इसके लिए फ़ासीवादी ताक़तें आम मेहनतकश जनता को धर्म के मसले पर बाँट देती है और आपस में ही लड़ा देती है। हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि एक फ़ासीवादी पार्टी होने के नाते भी भाजपा के तौर-तरीके अन्य पूँजीवादी पार्टियों से अलग हैं। उसका मुख्य काम ही है साम्प्रदायिकता का इस्तेमाल कर असुरक्षा व निश्चितता से बिलबिलाये टुटपुँजिया वर्गों की अन्धी प्रतिक्रिया को मुसलमानों, ईसाइयों या दलितों के रूप में एक नक़ली दुश्मन दे दिया जाये और फिर दंगे-फ़साद के बूते सत्ता हासिल की जाये।
आज महँगाई लगातार बढ़ती जा रही है। पक्का रोज़गार तो दूर की बात है, आज लोगों के पास रोज़गार का ही भयंकर संकट है। हर साल 2 करोड़ रोज़गार का वायदा कर सत्ता में आयी भाजपा सरकार ने पिछले 10 सालों में लगभग केवल साढ़े सात लाख लोगों को ही रोज़गार दिया, जबकि इससे कहीं ज़्यादा लोगों से रोज़गार इस सरकार ने इसी दौर में छीन लिया है। शिक्षा को लगातार महँगा तो किया ही जा रहा है, नयी शिक्षा नीति जैसी नीतियों की मदद से शिक्षा का साम्प्रदायीकरण भी किया जा रहा है और लगातार मेहनतकश वर्ग से आने वाले नौजवानों को इससे दूर किया जा रहा है। चार लेबर कोड को लागू करने की तैयारी चल रही है, जिसके ज़रिये मज़दूरों के शोषण को और बढ़ाने की क़ानूनी छूट पूँजीपतियों को मिल जायेगी।
कुल मिलाकर हर असली और ज़रूरी मुद्दे पर भाजपा सरकार नंगी हो चुकी है। इसलिए ही इन्हें ग़ैर-ज़रूरी और नक़ली मुद्दों की ज़रूरत होती है, जिसपर जनता को बाँट सकें। वहीं बिके हुए गोदी मीडिया की मदद से यह काम उनके लिए और भी आसान हो गया है। साथ में इनके आईटी-सेल सोशल मीडिया के ज़रिये भी इसी काम में लगे हुए हैं। फ़ेक न्यूज़ फ़ैलाकर यह पहले से ही लोगों के अन्दर ज़हर भरने का काम कर रहे हैं, पर चुनाव के आते ही बंगलादेश और रोहिंग्या मुसलमानों के “घुसपैठ” और “हमले” का डर लोगों के दिमाग़ में डालना शुरू कर देते हैं, जिसका सच्चाई से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं होता।
हमें भाजपा व संघ परिवार के असली फ़ासीवादी एजेण्डे को पहचानना होगा। हमें समझना होगा कि हमारे असली मुद्दे रोज़गार, महँगाई, शिक्षा, स्वास्थ्य और आवास के हैं। यही वे मुद्दे हैं जो सीधे हमारी ज़िन्दगी से जुड़ते हैं। हमें पक्के रोज़गार की, समान व निःशुल्क स्वास्थ्य व शिक्षा की, अप्रत्यक्ष कर को समाप्त करके व पूँजीपतियों पर प्रगतिशील प्रत्यक्ष कर लगाकर महँगाई पर रोक लगाने की, ठेका प्रथा ख़त्म करने की माँगों के लिए लड़ना होगा। यही वे अधिकार हैं, जिसके लिए लड़कर हम एक नयी सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था के निर्माण के संघर्ष को आगे बढ़ा सकते हैं।
मज़दूर बिगुल, नवम्बर 2024
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मज़दूरों के महान नेता लेनिन