हैदराबाद में कांग्रेस सरकार द्वारा मूसी नदी और झीलों को बचाने के नाम पर ग़रीबों व मेहनतकशों के आशियानों और आजीवका पर ताबड़तोड़ हमला
हैदराबाद संवाददाता
तेलंगाना में पिछले साल हुए विधान सभा चुनावों में लोगों ने केसीआर के नेतृत्व वाली भारत राष्ट्र समिति की सरकार को ठुकराकर रेवंत रेड्डी के नेतृत्व वाली कांग्रेस पार्टी को इस उम्मीद में चुना था कि वह सत्ता में पहुँचकर ग़रीबों और आम जनता के पक्ष में नीतियाँ बनाने का अपना वायदा पूरा करेगी। परन्तु सत्ता में पहुँचने के दस महीने के भीतर ही इस सरकार ने अपना घोर जनविरोधी चरित्र उजागर करना शुरू कर दिया है। भाजपा शासित राज्यों के बुलडोज़र राज से प्रेरणा लेते हुए प्रदेश की कांग्रेस सरकार ने हैदराबाद की मूसी नदी के सौन्दर्यीकरण के नाम पर मूसी रिवरफ़्रण्ट विकास परियोजना के तहत नदी के किनारे बसे मेहनतकश जनता के आशियानों पर बेरहमी के साथ बुलडोज़र चलाना शुरू किया है। इसके अतिरिक्त रेवंत रेड्डी सरकार ने शहर की तमाम झीलों को बचाने और बाढ़ को रोकने के लिए ‘हैदराबाद आपदा प्रतिक्रिया और सम्पत्ति संरक्षण एजेंसी (हाइड्रा)’ नामक एक निरंकुश प्राधिकरण बनाया है जिसने शहर की तमाम झीलों के किनारे से अतिक्रमण हटाने के नाम पर आम मेहनतकश आबादी के आशियानों को ज़मींदोज़ करना भी शुरू कर दिया है और उन्हें उनकी आजीविका के साधनों से भी बेदख़ल किया जा रहा है। इस प्रकार शहर में नदियों व झीलों के किनारे दशकों से बसे हज़ारों परिवारों के ऊपर बुलडोज़र का ख़तरा मँडरा रहा है। विडम्बना तो यह है कि इतने बड़े पैमाने पर लोगों को उजाड़ने के बावजूद शहर में बरसात में बाढ़ की समस्या से निजात पाने के कोई आसार नहीं नज़र आ रहे हैं। उल्टे इसकी प्रबल सम्भावना है कि इस प्रकार के सनक भरे फ़ैसलों से नदियों व झीलों की पारिस्थितिकी पर विपरीत असर पड़ेगा।
मूसी नदी के सौन्दर्यीकरण के नाम पर ग़रीबों-मेहनतकशों की ज़िन्दगी में भूचाल
मूसी नदी जो कभी हैदराबाद की जीवन रेखा हुआ करती थी, आज शहर के सीवर और औद्योगिक कचरा डाले जाने की वजह से एक सँकरे नाले में तब्दील हो चुकी है। इसके लिए मुख्य रूप से सरकार, बिल्डर माफ़िया और पूँजीपति ज़िम्मेदार हैं। लेकिन नदी के मौजूदा हालात के लिए अक्सर उसके किनारे रहने वाले हज़ारों ग़रीबों-मेहतनकशों को दोषी ठहराया जाता है।
वैसे मूसी नदी को पुनर्जीवित करने की बात दशकों से चलती आयी है। इस दौरान आयी हर नयी सरकार नदी के सौन्दर्यीकरण की योजना लाती है और लोगों के प्रतिरोध के बाद उसे टाल देती है। 1997 में अविभाजित आन्ध्र प्रदेश की चन्द्रबाबू नायडू की सरकार ने ‘नन्दनवनम’ नामक एक परियोजना शुरू की थी, लेकिन इसे वापस ले लिया गया क्योंकि मूसी नदी के किनारे रहने वाले लोगों ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया था। इसी तरह 2005 में भी ऐसी ही एक योजना तत्कालीन वाई.एस. राजशेखर रेड्डी की सरकार ने तैयार की थी। लेकिन वह योजना भी क्रियान्वित नहीं हो सकी। केसीआर की सरकार ने भी मूसी नदी के सौन्दर्यीकरण की बात कही, लेकिन वह भी कोई कारगर योजना नहीं बना सकी।
अब रेवंत रेड्डी की सरकार न सिर्फ़ मूसी नदी के सौन्दर्यीकरण के बारे में बात कर रही है, बल्कि उसने नदी के किनारे बसी बस्तियों को उजाड़ना भी शुरू कर दिया है। यही नहीं, रेवंत रेड्डी सरकार ने मूसी रिवरफ्रण्ट परियोजना के लिए 4000 करोड़ रुपये के क़र्ज़ के लिए विश्व बैंक से भी सम्पर्क किया है। यह योजना बिना स्थानीय परिस्थितियों को ध्यान में रखे लन्दन की थेम्स नदी विकास और अहमदाबाद के साबरमती रिवरफ्रण्ट विकास से प्रेरणा लेकर क्रियान्वित की जा रही है। ग़ौरतलब है कि हैदराबाद में मूसी नदी क़रीब 56 किमी लम्बे हिस्से से होकर गुज़रती है जिसमें से लगभग 20 किमी के क्षेत्र में हज़ारों ग़रीब और मेहनतकश परिवार दशकों से नदी के किनारे कमल नगर, मूसा नगर, शंकर नगर, तिलक नगर आदि जैसी बस्तियों में रहते हैं।
इन ग़रीबों-मेहनतकशों के परिवारों की आजीविका इस क्षेत्र में मिलने वाले कामों पर निभर करती है। उनमें से अधिकांश इन इलाक़ों में राजमिस्त्री, दर्ज़ी, ऑटो चालक, रेहड़ी-पटरी वाले, घरेलू नौकर आदि के रूप में आसपास के क्षेत्रों में काम करते हैं। बिना किसी उचित पुनर्वास योजना के इतनी बड़ी संख्या में ग़रीबों के घरों को ध्वस्त करना रेवंत रेड्डी सरकार द्वारा उठाया गया एक संवेदनहीन और निर्मम क़दम है। इस प्रक्रिया में, रेवंत रेड्डी सरकार इन परिवारों की आजीविका को भी ध्वस्त कर रही है। बहुत ही कम समय के नोटिस पर उनके घरों को ध्वस्त करने के बाद, उनमें से कुछ को बेहद कम सुविधाओं वाले बहुमंज़िला अपार्टमेण्ट में एक छोटा 2-बीएचके फ्लैट आवण्टित किया गया है, लेकिन उनकी शिक़ायत है कि यह पर्याप्त नहीं है क्योंकि कई विवाहित लोगों वाले संयुक्त परिवार के लिए, सिर्फ़ एक फ़्लैट दिया गया है। जिन परिवारों के घर अभी टूटे नहीं हैं वे लगातार भय और अनिश्चितता में जी रहे हैं क्योंकि उनके घर किसी भी समय ध्वस्त किये जा सकते हैं। उन्हें डर है कि उन्हें शहर के बाहरी इलाक़े में दूर-दराज़ के स्थानों पर भेज दिया जायेगा जहाँ आजीविका का कोई अवसर नहीं होगा। उनमें से कई के पास यह साबित करने के लिए आवश्यक दस्तावेज़ नहीं हैं कि वे घर के मालिक हैं। इसके अलावा, मूसी नदी के किनारे की बस्तियों में रहने वाले बड़ी संख्या में निवासी दशकों से किराये के मकानों में रहते आये हैं। इन परिवारों के पुनर्वास की कोई बात नहीं हो रही है और जो लोग किराये पर दूसरे इलाक़ों में जा रहे हैं उन्हें दोगुना या तिगुना किराया देना पड़ता है जिससे उनका घरेलू बजट डाँवाडोल हो गया है।
मूसी नदी के सौन्दर्यीकरण का यह बेरहम अभियान रेवंत रेड्डी सरकार और कांग्रेस पार्टी के जनविरोधी चरित्र की एक बानगी है। यह देश में विकास के नवउदारवादी मॉडल की निरन्तरता में है जिसे पूरे देश के स्तर पर कांग्रेस पार्टी ने ही शुरू किया था। अगर हम संजीदगी से मूसी जैसी नदियों की दयनीय स्थिति के पीछे का मूल कारण जानने की कोशिश करेंगे तो पायेंगे कि इसके लिए मुख्य रूप से अनियोजित शहरीकरण ज़िम्मेदार है। आज़ादी के बाद देश में हुए पूँजीवादी विकास की वजह से हुआ यह है कि हैदराबाद जैसे महानगर देश के विभिन्न हिस्सों से बड़ी संख्या में लोगों को आकर्षित करते हैं क्योंकि रोज़गार के अवसर केवल ऐसे महानगरों में ही मौजूद हैं। इससे शहरीकरण और निर्माण गतिविधियों में तेज़ी आयी है जो ज़्यादातर अनियोजित होती हैं और ऐसी गतिविधियों पर सरकार की बजाय निजी रियल इस्टेट माफ़िया का नियन्त्रण रहता है। सीवर ट्रीटमेण्ट, ठोस-कचरा प्रबन्धन और औद्योगिक कचरों के प्रबन्धन की कोई उचित योजना नहीं बनायी जाती है। इसलिए बिना ट्रीट किये गये सीवर और औद्योगिक कचरे को नदियों और जलाशयों में डाल दिया जाता है, जिससे वे प्रदूषित हो जाते हैं और बरसात के मौसम में उनमें बाढ़ आ जाती है। इसी प्रकार, इस तरह का अनियोजित शहरीकरण आपस में जुड़ी झीलों और जलाशयों की प्राकृतिक जल निकासी प्रणाली को भी नष्ट कर देता है और सुनियोजित जल निकासी चैनलों के अभाव की वजह से विशेष रूप से बरसात के मौसम में बाढ़ की समस्या पैदा होती है। इसके अलावा, पूँजीवादी व्यवस्था में मुनाफ़े की प्रेरणा की वजह से लोगों को आवास प्रदान करने की कोई योजना नहीं बनायी जाती है और आवास के क्षेत्र में बिल्डर माफ़िया का वर्चस्व बना रहता है। यह एक ऐसी स्थिति पैदा करता है जिसमें ग़रीब और मेहनतकश लोग, जो शहरों में अपार्टमेण्ट और बहुमंज़िला इमारतों के निर्माण के लिए मुख्य तौर से ज़िम्मेदार होते हैं, वे उन अपार्टमेण्टों में रहने के बारे में सोच भी नहीं सकते हैं और वे अक्सर नदी या रेलवे पटरी के किनारे झुग्गी बस्तियों में रहने के लिए मजबूर होते हैं।
समस्या को जड़ से हल करने में असमर्थ रेवंत रेड्डी सरकार समस्या को दिखावटी तरीक़े से हल करने की कोशिश कर रही है। लेकिन पर्यावरण के दृष्टिकोण से भी, रिवरफ़्रण्ट के निर्माण जैसे दिखावटी समाधान नदी प्रदूषण और बाढ़ की समस्या का समाधान करने में सक्षम नहीं हैं। रिवरफ़्रण्ट के हिस्से के रूप में बनाये जाने वाले तटबन्ध और कंक्रीट संरचनाएँ नदी के प्राकृतिक प्रवाह को बाधित करती हैं और नदी को एक नहर में तब्दील कर देती हैं। इससे नदी की अखण्डता नष्ट हो जाती है जो समय-समय पर बाढ़ और सूखे के चक्रों के माध्यम से प्राकृतिक रूप से बनी रहती है। रिवरफ़्रण्ट के कारण नदी के प्राकृतिक प्रवाह में जो बाधा पैदा होती उससे नदी में मौजूद विभिन्न प्रजातियों के विलुप्त होने का ख़तरा पैदा हो जाता है। इससे गाद की समस्या भी उत्पन्न होती है जिससे भविष्य में बाढ़ की सम्भावना बढ़ जाती है। इसके अलावा, यह नदी तट पर जैव विविधता के नुक़सान का भी कारण बनता है जो नदी पारिस्थितिकी के लिए नुक़सानदेह है। इसलिए रेवंत रेड्डी सरकार जिस नवउदारवादी पूँजीवादी उपाय को अपनाने पर आमादा है, वह न तो मानवीय है और न ही पर्यावरणीय रूप से टिकाऊ है और वास्तव में इससे हालात और ख़राब होने की सम्भावना है।
हाइड्रा की अन्धाधुन्ध कार्रवाईयों से शहर में बाढ़ की समस्या का समाधान
नहीं होने वाला है
तेलंगाना और आन्ध्र प्रदेश के कुछ हिस्सों में भारी बाढ़ की हालिया घटनाओं के बाद, तेलंगाना में रेवंत रेड्डी सरकार ने हैदराबाद आपदा प्रतिक्रिया और सम्पत्ति संरक्षण एजेंसी (HYDRAA) नामक एक नवगठित प्राधिकरण को अधिक से अधिक कठोर शक्तियाँ प्रदान करना शुरू कर दिया है, जिसे शहर की तमाम झीलों के फुल टैंक स्तर (FTL) के आसपास अतिक्रमण हटाने का अधिकार है। शुरुआत में, हाइड्रा ने कुछ मशहूर हस्तियों और शक्तिशाली लोगों के रिसॉर्ट्स और कन्वेंशन सेण्टरों को ध्वस्त किया। लेकिन जैसे ही बुलडोज़र को खुली छूट दी गयी, उसका आबादी के ग़रीब तबक़े की ओर बढ़ना तय था। रेवंत रेड्डी सरकार अब हैदराबाद में ग़रीब मेहनतकश लोगों के सपनों, आकांक्षाओं और आजीविका को मिट्टी में कुचलने का काम कर रही है। लोगों के घरों पर बुलडोज़र चलाने और उनकी आजीविका को नष्ट करने का भयावह दृश्य हैदराबाद में रोज़मर्रे की बात हो चुकी है। कई सामाजिक कार्यकर्ता और पर्यावरणवादी रेवंत रेड्डी सरकार की इस कार्रवाई का यह कह कर समर्थन कर रहे हैं कि वह झीलों को बचाने और बाढ़ रोकने का प्रयास ईमानदारी से कर रही है। हालाँकि, मुख्यमन्त्री की पर्यावरण हितैषी छवि के इस दावे पर एक बड़ा सवालिया निशान तब खड़ा हो जाता है जब हम देखते हैं कि यह वही सरकार है जो प्रदेश के विकाराबाद ज़िले के दामागुंडम जंगलों में नौसेना का रडार स्टेशन बनाने के लिए लगभग 12 लाख पेड़ों की योजनाबद्ध कटाई की योजना पर एक शातिराना चुप्पी बनाये रखती है। इस रडार स्टेशन को बनाने के लिए लगभग 3000 एकड़ वन भूमि नौसेना को सौंपने की योजना है। इसी तरह, यह साबित करने के भी पर्याप्त उदाहरण हैं कि जब बात कांग्रेस पार्टी के सदस्यों के स्वामित्व वाली संरचनाओं को ध्वस्त करने की आती है तो हाइड्रा के कर्मचारी उतना उत्साह नहीं दिखा रहे हैं।
जब पूँजीपति, बिल्डर माफ़िया और नेता-मन्त्री मुनाफ़े के उद्देश्य से झीलों के किनारे अतिक्रमण कर रहे थे तब उसे रोकना चाहिए था। ग़रीब-मेहनतकश लोगों के लिए योजना के तहत रिहायशी क्षेत्रों का विकास करना चाहिए था। लेकिन इस मुनाफ़ा केन्द्रित व्यवस्था से यह उम्मीद करना दिन में सपना देखने के समान है।
इस समस्या के समाधान की बात करें तो यह बात दिन के उजाले की तरह साफ़ है कि यह सनक भरा अभियान हैदराबाद जैसे महानगरों में बाढ़ की समस्या का कोई रामबाण नुस्ख़ा नहीं है। जैसा कि पहले ही चर्चा की जा चुकी है, अधिकतम लाभ कमाने की चाहत में अनियोजित और बेतरतीब शहरी विकास ही समस्या की जड़ है। नियोजित शहरीकरण, जल निकासी और आवास विकास के बिना झीलों को बचाने के प्रयास कारगर नहीं होंगे। जब तक जल निकासी प्रणाली विकसित नहीं की जाती है और जब तक सीवरेज और औद्योगिक कचरों को झीलों में डालने से पहले ट्रीट नहीं किया जाता है और ठोस-अपशिष्ट प्रबन्धन की योजना नहीं बनायी जाती है, जब तक वर्षा जल संचयन की उचित व्यवस्था नहीं की जाती है, जब तक झीलों से गाद नहीं निकाली जाती है, तब तक झीलें सुरक्षित रखने का लक्ष्य और शहरी बाढ़ को रोकना, एक सपना बना रहेगा।
उपरोक्त तथ्यों और विश्लेषण से यह बात साफ़ है कि इस मुनाफ़ा केन्द्रित पूँजीवादी व्यवस्था में व्यापक जन पक्षधर नियोजित शहरीकरण कभी नहीं हो सकता है। यह सिर्फ़ एक समाजवादी समाज में ही मुमकिन हो सकता है जो मुनाफ़ा केन्द्रित नहीं बल्कि मनुष्यकेन्द्रित और पर्यावरण को बचाने के लिए प्रतिबद्ध होगी। हालाँकि इस पूँजीवादी ढाँचे के भीतर भी हमें जनान्दोलन खड़ा करके आवास के बुनियादी अधिकार, रोज़गार की गारण्टी के अधिकार, स्वास्थ्य व सुरक्षित पर्यावरण के अधिकार आदि के लिए लड़ना होगा।
मज़दूर बिगुल, अक्टूबर 2024
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