सक्षम आँगनवाड़ी और पोषण 2.0 का अक्षम और कुपोषित बजट
वृषाली
लोकसभा चुनावों में “अबकी बार – 400 पार” के नारे की दुर्गति के बाद मोदी सरकार 3.0 बैसाखी के सहारे सत्ता में आयी। इसके साथ ही भाजपा के तीसरे कार्यकाल की शुरुआत में पेश हुए बजट ने सरकार की आने वाले 5 साल का ट्रेलर और पिछले 10 सालों का फ्लैशबैक दिखा दिया है। निर्मला सीतारमण लगातार 7वीं बार बजट पेश करने वाली पहली वित्त मन्त्री बन गईं हैं। लेकिन बजट पिछले 10 सालों की ही तरह मेहनतकशों के लूट और कॉरपोरेट घरानों, धन्नासेठों के लिए छूट का दस्तावेज़ ही है।
भाजपा लम्बे समय से महिला “सशक्तिकरण” के शिगूफ़े उछाल रही है। वित्त मन्त्री निर्मला सीतारमण ने 23 जुलाई को लोकसभा में बजट पेश करते हुए कहा कि केन्द्रीय बजट 2024-25 में महिलाओं और लड़कियों को लाभ पहुँचाने वाली योजनाओं और महिलाओं के नेतृत्व वाले विकास को बढ़ावा देने के लिए 3 लाख करोड़ रुपये से अधिक का आबण्टन किया गया है। लेकिन पिछले 10 सालों का रिकॉर्ड देखा जाये तो भाजपा के सत्तासीन होने के बाद कल्याणकारी स्कीमों पर होने वाले वास्तविक ख़र्च में लगातार कमी आयी है। एक ओर भाजपा यह दावा करती है कि प्रधानमन्त्री ग़रीब कल्याण योजना के तहत 80 करोड़ आबादी को 5 किलो खाद्यान्न उपलब्ध कराया गया है। लेकिन दूसरी ओर खाद्यान्न सब्सिडी पर जहाँ 2019-20 में केन्द्रीय बजट का 6.61% का ख़र्च तय किया गया था, इस वर्ष इसे घटाकर 4.5% कर दिया गया है।
विश्व भूख सूचकांक 2023 में भारत के स्थान (125 देशों में 111वाँ स्थान) को झुठलाने की तमाम कोशिशों में लगी भारत सरकार का बजट कुछ और ही हक़ीक़त बयां करता है। भूखमरी और कुपोषण के ख़िलाफ़ समेकित बाल विकास परियोजना बेहद ज़मीनी स्तर की योजना है। इसका एक मुख्य लक्ष्य है बच्चों, गर्भवती और दूध पिलाने वाली महिलाओं को ज़रूरी पोषाहार मुहैया करना। वर्ष 2013-14 में समेकित बाल विकास परियोजना को बजट का 0.95% हिस्सा आबण्टित किया गया था। मोदी सरकार के कार्यकाल के दौरान समेकित बाल विकास परियोजना और प्रधानमन्त्री मातृ वन्दना योजना को जोड़ कर सक्षम आँगनवाड़ी, पोषण 2.0 व सामर्थ्य प्रोग्राम में तब्दील कर दिया गया है। इस विलय के बाद इन सभी योजनाओं पर होने वाले ख़र्च को लगातार कम किया गया है। समेकित बाल विकास परियोजना पर इस वर्ष महज़ 0.45 फ़ीसदी ख़र्च आबण्टित किया गया है। सिर्फ़ पोषाहार की बात करें तो एक अनुमान के अनुसार इसके लिए (राज्य सरकारों के फ़ण्ड समेत) तक़रीबन 42,033 करोड़ रुपये राशि की ज़रूरत है, जबकि महिला एवं बाल विकास मन्त्रालय को कुल आबण्टित की गयी राशि ही 26,092 करोड़ रुपये है, सक्षम आँगनवाड़ी और पोषण स्कीम को 21,200 करोड़ रुपये की राशि आबण्टित की गयी है। सरकार की इसी वर्ष की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में 6 महीने से 6 साल के बीच के 13.7 करोड़ बच्चों में से 8.9 करोड़ बच्चे आँगनवाड़ी केन्द्रों में दर्ज हैं। कुल मिलकर समेकित बाल विकास परियोजना के तक़रीबन 10.01 करोड़ लाभार्थी हैं। वर्ष 2017 से सरकार ने लाभार्थियों पर किया जा रहा औसतन ख़र्च 8 रुपये प्रति दिन प्रति व्यक्ति ही तय किया हुआ है। उसी तरह प्रधानमन्त्री मातृ वन्दना योजना के तहत मिलने वाली 6,000 रुपये की राशि वर्ष 2013 से उतनी ही चली आ रही है। सकल घरेलू उत्पाद के हिस्से के रूप में देखें तो मनरेगा, प्रधानमन्त्री मातृ वन्दना योजना, मिड-डे-मील, समेकित बाल विकास परियोजना जैसे कल्याणकारी योजनाओं पर ख़र्च लगतार ही कम होता गया है। इसमें अगर महँगाई दर को जोड़ दिया जाये तो यह ख़र्च और कम ही हो जाता है। यही नहीं, आबण्टित की गयी राशि भी पूर्ण रूप से इस्तेमाल कर ही ली जाएगी, इसकी भी कोई गारण्टी नहीं है। महिला एवं बाल विकास मन्त्रालय की ही एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2022-23 में आबंटित की गयी राशि का केवल 73.42 फ़ीसदी हिस्सा ही इस्तेमाल किया गया। महिला एवं बाल विकास मन्त्रालय के ही 2023 के वार्षिक रिव्यू रिपोर्ट के अनुसार आँगनवाड़ी केन्द्रों के निर्माण की राशि को 7 लाख से बढ़ाकर 12 लाख, शौचालय के निर्माण के लिए तय राशि को 12,000 से बढ़ा कर 36,000 और पेय जल की उपलब्धता के लिए तय राशि को 10,000 से बढ़ा कर 17,000 रुपये कर दिया गया। लेकिन लाभार्थियों के पोषाहार पर ख़र्च होने वाले समेत स्कीम वर्करों के मानदेय राशि में इज़ाफ़ा करने का ख़याल भाजपा सरकार को नहीं आया!
नयी शिक्षा नीति 2020 के तहत शिक्षा के निजीकरण को बढ़ावा देने की स्कीम में आँगनवाड़ीकर्मियों के श्रम की लूट का भी हिस्सा है। ‘पोषण भी – पढ़ाई भी’ योजना मोदी सरकार के पिछले कार्यकाल में ही शुरू कर दिया गया था। इसके अनुसार आँगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को अब औपचारिक प्राथमिक शिक्षा का भार उठाना पड़ेगा। ज़ाहिरा तौर पर कार्यकर्ताओं का बोझ बढ़ेगा, मानदेय नहीं! एक रिपोर्ट के अनुसार जुलाई 2023 में पोषण ट्रैकर ऐप से जुटाया गया आँकड़ा यह बताता है कि महराष्ट्र, ओड़ीसा, राजस्थान और तेलंगाना में लाभार्थी और आँगनवाड़ी कार्यकर्ता का अनुपात क्रमशः 67.7, 55.4, 75.6 और 64.5 है। आबादी की ज़रूरत के अनुसार नये केन्द्र खोले जाने, खाली पड़े पदों की भर्ती इत्यादि पर महिला एवं बाल विकास मन्त्रालय का कोई ठोस कार्यक्रम नहीं है।
भाजपा के कार्यकाल में आँकड़ों की बाज़ीगरी करने में महिला एवं बाल विकास मन्त्रालय भी किसी से पीछे नहीं है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण – 5 के अनुसार 5 वर्ष से कम की उम्र के भारत में 35.5% बच्चों की लम्बाई और 19.3% बच्चों का उम्र के अनुसार वज़न कम हैं और 32.1% बच्चे कमज़ोर हैं। लेकिन महिला एवं बाल विकास मन्त्रालय का दावा है कि यह सरकारी आँकड़े ही झूठे हैं और पोषण ट्रैकर ऐप में दर्ज किये गये आँकड़ों से यह मेल नहीं खाते!
1975 से लागू हुई समेकित बाल विकास परियोजना का मक़सद था बेहद सस्ती दरों पर बच्चों, गर्भवती महिलाओं आदि की देखरेख व पोषण तथा बुनियादी शिक्षा मुहैया कराना ताकि श्रमशक्ति के पुनरुत्पादन पर पूँजीपति वर्ग का ख़र्च कम किया जा सके। इस स्कीम में ज़मीनी स्तर पर कार्यरत महिलाओं को “सशक्त” करने के नाम पर उनके श्रम की लूट लम्बे समय से चली आ रही है। आज के समय में आँगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को 25 अलग-अलग कार्यभार सौंपे हुए हैं। लेकिन मानदेय की राशि, पेंशन, ग्रैच्युटी, इत्यादि पर कोई सरकार कुछ ख़र्च नहीं करना चाहती। भाजपा सरकार ने तो अपने पूरे कार्यकाल के दौरान एक ही रुख़ अपनाया है – पुरानी घोषणाओं को ही हर साल दोहराते रहो, लेकिन उन्हें किसी भी क़ीमत पर लागू नहीं करो! प्रधानमन्त्री महोदय ने 2018 में पोषण 2.0 स्कीम लॉंच की थी। उसी साल सभी स्कीम वर्करों के मानदेय में, बेहद मामूली, बढ़ोत्तरी की घोषणा हुई। तब से लगातार वही घोषणा दुहरायी जाती रही लेकिन वह अब तक लागू नहीं हुई! उसी तरह अब स्कीम वर्करों को हाथ में ‘आयुष्मान भारत’ का झुनझुना थमा दिया गया है और सरकारी वक्तव्य में 2018 के मानदेय बढ़ोत्तरी के “ऐतिहासिक” क़दम का ही फिर से गुणगान कर दिया गया है। मोदी 3.0 में इसी “गारण्टी” की उम्मीद की जा सकती है!
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