जन विरोध के बाद लखनऊ में हज़ारों घरों पर बुलडोज़र चलाने से पीछे हटी योगी सरकार
अवैध ढंग से उजाड़े गये अकबरपुर के हज़ारों लोगों को वापस उनकी जगह पर बसाओ और मुआवज़ा दो!
“मनमानी” कार्रवाई करने वाले दोषी अफ़सरों पर कठोर कार्रवाई करो!
लालचन्द्र
बुलडोज़र पर सवार उत्तर प्रदेश की योगी सरकार लखनऊ के बीचोबीच अकबरनगर के हज़ारों घरों की बस्ती को नेस्तनाबूद करने के बाद सत्ता के नशे में पगला गयी थी। किसी बड़े विरोध के बिना पूरी बस्ती को बुलडोज़रों से रौंदने में सफल होने से उसके हौसले और भी बुलन्द हो गये थे और कुकरैल नाले (जिसे जबरन नदी घोषित कर दिया गया) के किनारे बसी पंतनगर, अबरार नगर, खुर्रम नगर, रहीम नगर, इंद्रप्रस्थ कॉलोनी आदि बस्तियों से भी लाखों लोगों को बेदखल करने और हज़ारों घरों पर बुलडोज़र चलाने की तैयारी कर ली गयी थी। इन बस्तियों के हज़ारों घरों पर लखनऊ विकास प्राधिकरण के कर्मचारियों ने लाल निशान लगाने शुरू कर दिये थे।
लेकिन इस बार सरकार को भारी विरोध का सामना करना पड़ा। शहर के अनेक जनसंगठनों और राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों ने मिलकर लखनऊ बचाओ मोर्चा का गठन किया है जिसकी ओर से प्रभावित बस्तियों में विरोध सभाएँ की गयीं जिनमें बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए। अकबरनगर को पूरी तरह ज़मींदोज़ किये जाने का हश्र देखकर लोगों में डर और ग़ुस्से का माहौल था। ये सभी बस्तियाँ कई दशकों से यहाँ बसी हुई हैं और इनके निवासियों के पास ज़मीन की मिल्कियत, मकान की रजिस्ट्री समेत सारे काग़ज़ात भी हैं। दशकों से ये लोग बिजली-पानी का शुल्क और तमाम सरकारी टैक्स भी भर रहे हैं।
अकबरनगर के बाशिन्दे भी यह सारे काम कर रहे थे फिर भी सुप्रीम कोर्ट तक ने उनकी बात नहीं सुनी और सरकारी बुलडोज़रों ने पूरी बस्ती तहस-नहस कर डाली। लेकिन इस बार सरकार के पीछे हटने के पीछे व्यापक विरोध के साथ ही दो ख़ास बातें हैं। पहली बात तो यह कि इन कालोनियों में बसी आबादी का एक बड़ा हिस्सा हिन्दू आबादी का है जिसकी नाराज़गी योगी सरकार अभी मोल नहीं लेना चाहती। कुछ ही दिनों में राज्य में 10 विधानसभा क्षेत्रों में उपचुनाव होने वाले हैं। लोकसभा चुनाव में झटका खा चुकी योगी सरकार अपने बचे कार्यकाल में अपने हिन्दू वोटबैंक को नाराज़ करने से भी बचना चाहती है। कुछ भाजपा समर्थक हिन्दुओं के वीडियो भी वायरल हुए जिनमें यह कहा जा रहा था कि हमने तो योगी सरकार बनने पर पटाखे फोड़े थे फिर हमारे ही घर क्यों तोड़े जा रहे हैं!
कड़वी मगर सच बात यही है कि कुछ ही दिन पहले बड़ी संख्या में हिन्दू अकबरनगर में बुलडोज़र चलने पर ख़ुश हो रहे थे क्योंकि वहाँ बहुसंख्यक आबादी मुसलमानों की थी। इनमें उन कालोनियों के लोग भी थे जिनके घरों पर अब सरकारी तलवार लटक रही है। देशभर में और ख़ासकर उत्तर प्रदेश में पिछले 10 वर्षों के दौरान जिस तरह से नफ़रत फैलायी गयी है, यह उसीका नतीजा है। लेकिन तमाम नफ़रती चिन्टुओं के लिए यह एक सबक भी है! राहत इन्दौरी के ये शब्द एक बार सही साबित हो रहे हैं कि “लगेगी आग तो आयेंगे घर कई ज़द में, इस गली में सिर्फ़ हमारा मकान थोड़ी है।”
सरकार पर बने दबाव में एक और बड़ा फ़ैक्टर यह भी था कि जहाँ अकबरनगर में ज़्यादा आबादी मेहनत-मशक्कत करने वाले ग़रीब लोगों की थी, वहीं इन कालोनियों में एक अच्छी-ख़ासी संख्या खाते-पीते और पैसेवाले मध्यवर्गीय लोगों की है जिनके विरोध को नज़रअन्दाज़ करना सरकार के लिए थोड़ा मुश्किल होता। इसका असर तो मीडिया में आने वाली ख़बरों में भी साफ़ देखा जा सकता था। अकबरनगर को उजाड़े जाते समय लगभग सभी बड़े अख़बार मानो ख़ुशी से चिल्ला रहे थे और सरकारी लाइन का ही ढोल पीट रहे थे, लेकिन पंतनगर, अबरार नगर, खुर्रम नगर, रहीम नगर, इंद्रप्रस्थ कॉलोनी आदि पर ख़तरा आते ही उनके सुर बदल गये थे। अचानक उनमें उजाड़े गये लोगों के प्रति हमदर्दी हिलोर मारने लगी थी और सरकार से भी सवाल पूछे जाने लगे थे।
ख़ैर, भारी विरोध के बाद सरकार ने न सिर्फ़ बेदखली के आदेश को अभी वापस ले लिया है बल्कि लिखित रूप में यह स्वीकार भी किया है कि सिर्फ़ 35 मीटर रिवर बेड में ही कुकरैल रिवर फ्रण्ट का निर्माण किया जाना है और फ्लड प्लेन एरिया जो 50 मीटर है, उसे ख़ाली कराने की कोई योजना नहीं है। ऐसे में यह सवाल उठता है कि तब अकबरनगर पर बुलडोज़र क्यों चलाये गये। जब सरकार और प्रशासन यह स्वीकार कर चुका है तब प्रशासन ने अकबरनगर में नदी से 500 मीटर दूर तक के क्षेत्र को तहस-नहस क्यों कर डाला?
अकबरनगर के 2000 से ज़्यादा परिवार अपने मकान और रोज़ी-रोटी से वंचित हो गये। सैकड़ों लोग अब भी आवास पाने के लिए दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं और जिन लोगों को 15-16 किलोमीटर दूर बियाबान में बने बसंत कुंज में छोटे-छोटे घटिया मकान दिये भी गये हैं, उनसे उसके 5-5 लाख रुपये माँगे जा रहे हैं। उस जगह पर तो स्कूल और सरकारी अस्पताल जैसी बुनियादी सुविधाएँ भी आसपास कहीं नहीं हैं।
इसीलिए अब सरकार से माँग की गयी है कि उसे तत्काल प्रभाव से अकबरनगर पर बुलडोज़र चलाने वाले अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए, उजाड़े गए परिवारों को मुआवज़े के साथ अकबरनगर में फिर से बसाना चाहिए और लोगों के लिए रोज़गार व बुनियादी नागरिक सुविधाओं का इन्तज़ाम करना चाहिए। साथ ही, बसंत कुंज आवासीय योजना में जो घर दिये गये हैं, वहाँ रहने का चुनाव करने वालों को मकान मुफ़्त दिये चाहिए।
बिगुल मज़दूर दस्ता और नौजवान भारत सभा की एक टीम ने दो बार बसन्तकुंज में अकबरनगर से उजड़े लोगों से मुलाकात की। उनकी हालत देखकर सरकार के झूठ बिल्कुल बेनकाब हो गये। अचानक बुलडोज़र चलने से बहुत से परिवारों को अपना सामान भी निकालने का मौक़ा नहीं मिला। घर तोड़ने का मुआवज़ा देना तो दूर, उनके घरों के मलबे को भी बेचकर सरकार उनके ज़ख़्मों पर नमक छिड़कने का काम कर रही है। रोज़ी-रोटी से वंचित हो गये लोगों से उन्हें दिये गये फ्लैटों की कीमत माँगी जा रही है। जो लोग इस चिन्ता में जी रहे हैं कि वे पेट कैसे भरेंगे और बच्चों को कैसे पढ़ाएँगे, उन पर यह चिन्ता भी थोप दी गयी है कि वे घर की किस्त के हज़ारों रुपये कैसे भरेंगे।
रिज़वान अकबरनगर में भाड़े पर टेंपो चलाते थे। अब नयी जगह से अकबरनगर की दूरी 15 किलोमीटर है, यहाँ उन्हें पूरा काम नहीं मिलता, कमाई घटकर आधी रह गयी है। उनके तीन बच्चे अकबरनगर के पास रजत इंटर कॉलेज में पढ़ने जाते थे, अब उनकी पढ़ाई बन्द है क्योंकि आसपास कोई अच्छा स्कूल नहीं है, जो है वे बहुत महँगे हैं। रुख्साना घरों में झाड़ू-पोछा करती हैं। अब उन्हें बसन्तकुंज से अकबरनगर आने-जाने में दो-ढाई घण्टे और लगभग 100 रुपये रोज़ ख़र्च करने पड़ते हैं। ऐसी और भी कई औरतें हमें मिलीं जो वहाँ आसपास काम करती थीं। अब वे या तो घर बैठी हैं या फिर ख़ासा समय और पैसे ख़र्च करके काम के लिए जाती हैं। दिहाड़ी पर काम करने वाले अनीस ने बताया कि उन्हें रोज़ 400-450 की दिहाड़ी मिलती है लेकिन अब अक्सर काम नहीं मिल पाता। आने-जाने में समय और पैसे अलग ख़र्च होते हैं।
पेण्टिंग का काम करने वाले अजय के दोनों बच्चों की पढ़ाई भी छूट गयी है। मुस्कान को इस बार बारहवीं का इम्तिहान देना है। लेकिन यहाँ से उसके कॉलेज जाने के लिए बस की कोई सेवा नहीं है। ईरिक्शा से जाने के लिए हर महीने 1500 रुपये चाहिए जो अब उसके माँ-बाप के लिए दे पाना बहुत मुश्किल है। विस्थापित लोगों को बसन्तकुंज में सस्ता राशन भी नहीं मिल रहा है क्योंकि यहाँ न तो कोई कोटेदार है और न ही सरकार ने कोई व्यवस्था की है। मजीद ने अपना घर दिखाया जिसकी छत अभी से टपक रही है।
ऐसे में अकबरनगर के लोगों के बीच भयंकर ग़ुस्से और हताशा को समझा जा सकता है। ख़ासकर अब, जब सरकार कह रही है कि सिर्फ़ 35 मीटर रिवर बेड में ही कुकरैल रिवर फ्रण्ट का निर्माण किया जाना है। एक निवासी ने बिल्कुल सही कहा कि अगर हमारे घरों पर बुलडोज़र चलते समय शहर के लोगों ने हमारा साथ दिया होता तो दूसरों के घरों को तोड़े जाने की नौबत ही नहीं आती।
इसी बात को खुर्रम नगर में आयोजित एक जनसभा में जागरूक नागरिक मंच की ओर से साथी रामबाबू ने कहा कि अकबरनगर को नेस्तनाबूद करने का कोई बड़ा विरोध संगठित नहीं हो सका इसलिए यह तानाशाह सरकार और भी वहशी तरीक़े से लाखों लोगों की रिहाइश और आजीविका पर हमला करने की तैयारी करने लगी। अगर हम लोग संगठित होकर पूरी ताक़त से इसके विरुद्ध नहीं लड़े तो हम लखनऊ शहर को अपनी आँखों के सामने बरबाद होते हुए देखेंगे। कोई भी शहर इमारतों और पार्कों से नहीं, उसे बसाने वाले मेहनतकश लोगों से बनता है।
रामबाबू ने कहा कि योगी सरकार जो नजूल संपत्ति अधिग्रहण अध्यादेश लेकर आयी है उसका असल मकसद है दशकों से बसी हुई लखनऊ की अनेक बस्तियों को ख़ाली करके बुलडोजरों से नेस्तनाबूद कर देना ताकि अरबों-खरबों की ज़मीनें भाजपा और संघ से जुड़ी रियल एस्टेट माफ़िया कम्पनियों को सौंपी जा सकें।
उल्लेखनीय है कुकरैल नाले के किनारे रिवर फ्रंट बनाने का 6000 करोड़ का ठेका एक गुजराती कम्पनी को देने की बात सामने आयी है। पीसीपी प्रोजेक्ट लिमिटेड नाम की इसी गुजराती कम्पनी ने अहमदाबाद में साबरमती रिवर फ्रंट बनाया था।
योगी सरकार मार्च में नजूल सम्पत्ति (लोक प्रयोजनार्थ प्रबंध और उपयोग) अध्यादेश 2024 लायी है जिसने पूरे प्रदेश में नज़ूल की ज़मीनों पर बसे हुए लोगों को उजाड़ने का रास्ता खोल दिया है। अंग्रेज़ों के जाने के बाद विभिन्न शहरों में जो ज़मीनें बिना किसी मालिकाना अधिकार के पड़ी रहीं वे नज़ूल की ज़मीनें थीं और बहुत से लोग लम्बे समय से इन ज़मीनों पर घर या दुकान आदि बनाकर रह रहे हैं और रोज़ी-रोटी कमा रहे हैं। सरकारें इन लोगों को साल-दर-साल हर तरह की सुविधाएँ देती रही हैं और उनसे तमाम शुल्क-टैक्स आदि वसूलती रही हैं। लेकिन अब अचानक यह अध्यादेश लाकर लाखों लोगों को उजाड़ने की कार्रवाई कॉरपोरेट घरानों और बिल्डरों को फ़ायदा पहुँचाने के लिए की जा रही है।
दरअसल यह लड़ाई सिर्फ़ उनकी नहीं है जिनके घरों पर बुलडोज़र चलने वाले हैं बल्कि यह नागरिक अधिकारों की साझा लड़ाई है और लखनऊ के तमाम नागरिकों को इसमें साथ देना चाहिए वरना कल किसी और रास्ते से दमन-उत्पीड़न का डण्डा उनके सिरों पर भी बरस सकता है। हमें अलग-अलग करके ही यह सत्ता अपना दमन चलाने में कामयाब हो पा रही है। जब दूसरों के घरों पर बुलडोज़र चल रहे थे तब बहुत से लोग ख़ुश हो रहे थे लेकिन अब वही बुलडोज़र उनके घरों की ओर मुड़ने वाले हैं। इस सच्चाई को हमें समझना होगा।
मज़दूर बिगुल, जुलाई 2024
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