लखनऊ के अकबरनगर में लिखा गया योगी सरकार के बुलडोज़री न्याय का एक और काला अध्याय

लालचन्द्र

जून के दूसरे सप्ताह में जब आसमान से आग बरस रही थी और रोज़ बड़ी संख्या में लोग गरमा से मर रहे थे तब उत्तर प्रदेश की योगी सरकार के बुलडोज़रों ने लखनऊ के अकबरनगर इलाक़े में कई दशकों से बसे घरों को ध्वस्त करके औरतों, बच्चों, बुज़ुर्गों और बीमारों सहित हज़ारों लोगों को सड़क पर फेंक दिया। फ़ैज़ाबाद रोड पर बादशाहनगर से कुछ आगे कुकरैल नदी (नाले) के किनारे बसी करीब 2000 घरों की इस बस्ती को देखते ही देखते 8-10 दिनों के अन्दर पूरी तरह ज़मींदोज़ कर दिया गया जहाँ कम से कम 30,000 लोग रहते थे। इस बस्ती में बच्चों के स्कूल थे, दुकानें थीं, डॉक्टरों की क्लीनिक थीं, मस्जिद, मदरसे और मन्दिर भी थे। आज वहाँ एक चौरस मैदान में मरघटी सन्नाटा बिखरा पड़ा है जहाँ मलबे में अपनी ध्वस्त कर दी गयी ज़िन्दगी के कुछ तिनके बीनते-तलाशते कुछ लोग दिख जाते हैं। फ़रवरी में भी यहाँ बुलडोज़र पहुँचे थे लेकिन हाई कोर्ट के आदेश और आने वाले लोकसभा चुनाव की वजह से लोगों को कुछ समय के लिए राहत मिल गयी थी। चुनाव ख़त्म होते ही भारी संख्या में पुलिस, पीएसी और रैपिड एक्शन फ़ोर्स लगाकर पूरे इलाक़े को छावनी में तब्दील कर दिया गया और डेढ़ दर्जन बुलडोज़रों को शिकारी कुत्तों की तरह गरीबों के आशियानों पर छोड़ दिया गया।

लखनऊ विकास प्राधिकरण (एलडीए) की ओर से यह तर्क दिया जा रहा है और भोंपू मीडिया बेशर्मी से इसीका कीर्तन कर रहा है कि कुकरैल नदी को पुनर्जीवित करने के लिए “अतिक्रमण” हटाये जा रहे हैं। लेकिन अगर सरकार कुकरैल नदी को लेकर वाक़ई चिन्तित होती तो सबसे पहले सड़कर बजबजाता हुआ गन्दा नाला बन चुकी इस नदी की सफ़ाई की ज़िम्मेदारी लेती। नदी में गिरने वाले कचरे का इन्तज़ाम करती। सीवेज ट्रीटमेण्ट प्लाण्ट लगाती। हालत तो यह है कि गोमती नदी के लिए करोड़ों की लागत से बने सीवेज ट्रीटमेंट प्लाण्ट भी बरसों से बन्द पड़े हैं। लेकिन ऐसा कुछ करने के बजाय सीधे लोगों की बस्तियाँ उजाड़ने पर टूट पड़े विकास प्राधिकरण की नीयत पर कोई भी शक़ ही करेगा। अकबरनगर के बाद अब अबरारनगर और आदिलनगर जैसी दशकों से बसी बस्तियों को भी उजाड़ने की बात मीडिया में उछाली जाने लगी है।

नौजवान भारत सभा और बिगुल मज़दूर दस्ता की एक टीम ने कुछ समय पहले अकबरनगर का दौरा किया था। वहाँ लोगों से बात करने पर एलडीए के उपाध्यक्ष इन्द्रमणि त्रिपाठी का यह झूठ पकड़ा गया कि 2002 तक यहाँ कोई पक्के मकान ही नहीं थे। बहुत से लोगों ने कहा कि वे 1965-66 से यहाँ रह रहे हैं। कई लोगों ने 40 साल पहले के पानी के बिल और अन्य रसीदें भी दिखायीं। दशकों से आम मेहनतकश लोगों ने यहाँ आकर अपनी मेहनत से और तमाम तकलीफ़ें सहकर इस जगह को रहने लायक बनाया। एलडीए, नगरनिगम, जलकल और बिजली विभाग सहित तमाम सरकारी विभागों ने यहाँ सुविधाएँ दीं, सड़कें और नालियाँ बनायी गयीं

यहाँ से अरबों रुपये टैक्स और शुल्क के रूप में वसूले जा चुके हैं। इतना ही नहीं, केन्द्रीय मंत्री, सांसद, मेयर और अन्य आला अफ़सरों ने यहाँ सोलर पैनल लगाने सहित तमाम तरह के कामों में अपने नामों की पट्टिकाएँ भी लगवायीं। अकबरनगर में लोगों की बसाहट तो करीब 60 साल पहले से शुरू हो गयी थी लेकिन 40 साल पहले एलडीए ने यहाँ की लगभग 24 एकड़ ज़मीन ‘गृहविहीन समिति” के सचिव बच्चालाल के पक्ष में अवण्टित की थी। उस समय उत्तर प्रदेश के राज्यपाल रहे अकबर अली खां के नाम पर इसका नाम अकबर नगर रखा गया था।

जब 50-60 सालों से यह सब चल रहा था तो यहाँ रहने वाले लोग “अवैध क़ब्ज़ा” करने वाले नहीं थे, वे भी नागरिक थे जो टैक्स और वोट देते थे। लेकिन अब अचानक उन सबको “अपराधी” घोषित कर दिया गया है जिनकी वजह से ही कुकरैल नदी मर रही है और राजधानी का पर्यावरण चौपट हो रहा है। अगर वे अपराधी हैं तो वे तमाम मंत्री और सरकारी अफ़सर उनसे बहुत बड़े अपराधी हैं जो दशकों से उनके यहाँ बसने में सहयोग करते रहे हैं। अपराधी वे तमाम मंत्री और अफ़सर हैं जिनकी शह पर बिल्डर माफ़िया ने हर शहर के जलाशयों, नालों और पार्कों को पाट और काट डाला है। मगर उन पर कभी कोई कार्रवाई नहीं होगी।

एलडीए और उत्तर प्रदेश सरकार लगातार यह झूठ भी बोल रहे हैं कि उजाड़े गये लोगों को घर दे दिये गये हैं। कुछ लोगों को घर दिये गये हैं जो अकबरनगर से 13 किलोमीटर दूर हरदोई रोड पर लगभग उजाड़ पड़ी कॉलोनी वसन्तकुंज में हैं। 280 वर्ग फुट में बने ये मकान वर्षों से ख़ाली पड़े थे और बिक नहीं रहे थे, उन्हें इन बदबख़्त लोगों के मत्थे मढ़ा जा रहा है। और वह भी मुफ़्त नहीं! अपनी सारी जमापूँजी अपने घर बनाने में लगाकर गँवा चुके लोगों से इन घटिया के पाँच-पाँच लाख रुपये वसूले जायेंगे। इससे भी बढ़कर यह है कि अकबरनगर में रहने वाले लोगों की सारी रोज़ी-रोटी उसी जगह के आसपास आधे किलोमीटर के दायरे में चलती थी। यहाँ ज़्यादातर लोग ग़रीब और निम्न मध्य वर्ग के हैं जो छोटी-मोटी दुकानें, रेहड़ी लगाने या मज़दूरी के काम करते हैं। बहुत सी औरतें पास की इन्दिरानगर और महानगर आदि कॉलोनियों के घरों में काम करने जाती थीं। उनके सिर्फ़ घर ही नहीं उजड़े हैं, उनकी सारी दुनिया ही उजाड़ दी गयी है। माँ-बाप की रोज़ी-रोटी ख़त्म, बच्चों की पढ़ाई-लिखाई ख़त्म, बरसों के दौरान बने रिश्ते, मुहल्लेदारियाँ, सुखदुख में काम आना – सबकुछ पर बुलडोज़र चल गया है।

वैसे तो हर पार्टी की सरकारें ग़रीबों की बस्तियाँ बेदर्दी से उजाड़ती रही हैं लेकिन भाजपा की सरकारें इस मामले में भी सबसे बर्बर हैं। और अगर उजाड़े जाने वालों में बड़ी तादाद मुसलमानों की हो तब तो इनके मंत्री और अफ़सर ज़्यादा ही जोश में आकर बुलडोज़रों को हाँकते हैं। चाहे फ़रीदाबाद की खोरी कॉलोनी हो जहाँ कोरोना काल में ही 2 लाख लोगों को उजाड़ दिया गया था या फिर हल्द्वानी की मुस्लिम बस्ती जहाँ 100 साल से बसे 50 हज़ार लोगों को उजाड़ डाला गया।

आज सबकुछ ग़रीबों-मेहनतकशों के ख़िलाफ़ है। सरकारें, चुनावी पार्टियाँ, अदालतें, प्रशासन, मीडिया – सब एक गिरोह की तरह मेहनतकशों के ख़िलाफ़ थैलीशाहों के युद्ध में उनके साथ लठैत बनकर खड़े हैं। चुनावी सभाओं में ग़रीबों, पिछड़ों, अल्पसंख्यकों की बड़ी-बड़ी बातें करने वाले सपाई और कांग्रेसी नेताओं को भी अकबरनगर के लोगों की आवाज़ सुनायी नहीं दी। अखिलेश यादव और राहुल गाँधी को उनके लिए एक ट्वीट करने की भी फ़ुरसत नहीं मिली।  लेकिन ग़रीब लोगों में जिजीविषा ज़बर्दस्त होती है। बार-बार उजाड़े जाने के बाद भी वे फिर धूल से उठकर खड़े हो जाते हैं।  आज उनके जीवन को धूल मे मिलाया जा रहा है, लेकिन एक दिन ऐसा आयेगा जब यही आम लोग उठ खड़े होंगे और तब उनके सपनों के मलबे पर खड़े किये गये अमीरों के महल ढहाये जायेंगे, सब तख़्त गिराये जायेंगे और ताज उछाले जायेंगे।

 

मज़दूर बिगुल, जून 2024


 

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