उत्तराखण्ड में रोज़गार का हक माँगने पर मिलीं लाठियाँ और जेल
अपूर्व
पिछले 8 फ़रवरी को देहरादून के गाँधी पार्क पर उत्तराखण्ड की कई सरकारी परीक्षाओं में धाँधली और पेपर लीक मामले को लेकर उत्तराखण्ड बेरोज़गार संघ द्वारा शान्तिपूर्ण धरना-प्रदर्शन का आयोजन किया गया था। लेकिन रात के 12 बजे उत्तराखण्ड पुलिस द्वारा उन्हें जबरन उठाने की कोशिश की गयी। इसके विरोध में 9 फ़रवरी को बड़ी संख्या में बेरोज़गार युवा गाँधी पार्क पर जुटने लगे। वे उत्तराखण्ड लोक सेवा आयोग और उत्तराखण्ड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग द्वारा आयोजित परीक्षाओं में धाँधली और पेपर लीक की घटना की सीबीआई जाँच कराने सहित अन्य माँगें उठा रहे थे। अपनी इन माँगों को लेकर बेरोज़गार युवा लगातार सरकार के दरवाज़े पर दस्तक देते रहे। लेकिन इनकी माँगों को सुनने की बात तो दूर उत्तराखण्ड की भाजपा सरकार के मंत्रियों और उनके उच्च अधिकारियों तक ने युवाओं से मिलना तक मुनासिब नहीं समझा। मज़बूर होकर छात्रों को सड़क जाम करना पड़ा, जिसपर उत्तराखण्ड पुलिस ने बर्बरतापूर्वक उनके ऊपर लाठियाँ बरसायीं। बेरोज़गार युवा संघ के नेतृत्व के 13 लोगों को गिरफ़्तार करके उनपर फ़र्ज़ी मुक़दमे दायर कर दिये गये। रोज़गार के हक़ के लिए अपनी आवाज़ उठाने वाले युवाओं को असामाजिक तत्व, तोड़फोड़ करने वाले दंगाई क़रार दे दिया गया। जो युवा शान्तिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे थे उन्हें कई संगीन धाराओं में गिरफ़्तार करके जेल भेज दिया गया। बिना किसी गुनाह के उन्हें एक हफ़्ते तक जेल में रखा गया। यह सब उत्तराखण्ड की भाजपा सरकार की तानाशाही और मनमाने रवैये को तो दिखलाता ही है, साथ ही बेरोज़गार युवाओं की इस आशंका को भी मज़बूती प्रदान करता है जो लगातार यह कहते आ रहे हैं कि इन भर्तियों और घोटालों में सरकार के बड़े मंत्रियों और नौकरशाहों की मिलीभगत है।
पिछले कई सालों से उत्तराखण्ड में आयोजित होने वाली तमाम सरकारी परीक्षाओं में पेपरलीक और धाँधली के कई मामले उजागर हुए हैं। इनमें गिरफ़्तारियाँ भी हुई हैं। बार-बार उजागर होने वाली इन धाँधलियों की जाँच राज्य सरकार एसआईटी से करवा रही है लेकिन युवाओं को अब एसआईटी पर भरोसा नहीं है। वे सीबीआई या उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की अध्यक्षता में बनाई गयी कमेटी से जाँच करवाना चाहते हैं। उत्तराखण्ड के बेरोज़गार युवा सरकारी भर्तियों में लगातार हो रहे घपले-घोटालों से त्रस्त हैं। उनका गुस्सा अचानक नहीं फूटा है बल्कि सरकारी नौकरियों की भर्ती में पिछले दो साल से लगातार घपले सामने आ रहे हैं जो 2015-16 की नियुक्तियों से ही चले आ रहे हैं। सरकार की नाकामी की वजह से न तो इसपर रोक लग पा रही है और न ही इस खेल के बड़े मास्टरमाइण्ड ही सामने आ पाये हैं। ऐसे में बेरोज़गार युवाओं का गुस्सा लाज़िमी है, जिनका भविष्य दाँव पर लगा है।
देश के बाकी राज्यों की तरह उत्तराखण्ड में भी बेरोज़गारी के भयंकर हालात हैं। पहाड़ में रोज़गार और बुनियादी सुविधाओं की कमी की वजह से एक बड़ी आबादी पलायन करके मैदानी इलाक़ों में आ रही है। कोरोना काल के बाद से यहाँ हालात और भी बदतर हुए हैं। सेंटर फ़ॉर मॉनिटरिंग इण्डियन इकॉनमी (सीएमआईई) के अनुसार साल 2021-22 में भले ही उत्तराखण्ड में बेरोज़गारी दर राष्ट्रीय औसत से कम रही हो लेकिन यहाँ 20 से 29 वर्ष आयु वर्ग में बेरोज़गारी की दर 56.41% देखी गयी है जो देश के 20 से 29 वर्ष के आयु वर्ग में 27.63% बेरोज़गारी से दोगुनी से भी ज़्यादा है। यहाँ 20 से 24 आयु वर्ग में बेरोज़गारी की दर सबसे ज्यादा 81.76% और 25 से 29 वर्ष में यह दर 24.39% है। उत्तराखण्ड सेवायोजन विभाग से मिली जानकारी के अनुसार उत्तराखण्ड में रजिस्टर्ड बेरोज़गारों की संख्या 8,68,641 है। जबकि वास्तविकता में बेरोज़गारों की संख्या इससे कहीं ज़्यादा है। सरकार ने ख़ुद माना है कि उसने साढ़े चार साल में मात्र 15 हज़ार रोज़गार दिये हैं।
वैसे तो देश के हर युवा को रोज़गार की गारण्टी और सम्मानजनक जीवन जीने का अधिकार मिलना चाहिए। लेकिन मुनाफ़े पर टिकी पूँजीवादी व्यवस्था में लोगों और उनकी ज़रूरतों को ध्यान में नहीं रखा जाता है बल्कि कोई भी नीति मुनाफ़े को केन्द्र में रखकर बनायी जाती है। राष्ट्रीय स्तर पर और राज्यों में रोज़गार का यह संकट असमाधेय नहीं है। पूँजीवादी विकास की असमानता की वजह से आज देश की एक बड़ी आबादी अनिश्चित ज़िन्दगी के अँधेरे में धकेल दी गयी है। अगर पूरे देश स्तर पर गाँवों से लेकर क़स्बों-शहरों में अस्पताल, स्कूल, सड़कें, परिवहन आदि बुनियादी ज़़रूरतों पर ही काम किया जाये तो न केवल लोगों की सुविधाएँ बढ़ेंगी बल्कि इस प्रक्रिया में करोड़ों नौकरियाँ भी पैदा होंगी। उत्तराखण्ड जैसे पहाड़ी राज्य में ही सड़कों, अस्पतालों, स्कूलों से लेकर बुनियादी ढाँचे तक की बहुत कमी है। लेकिन इसके बावजूद उत्तराखण्ड की भाजपा सरकार न तो नये रोज़गार सृजन के लिए कोई नीति बना रही है और न ही सरकारी विभागों, सार्वजनिक उपक्रमों, और निगमों आदि में खाली पड़े हज़ारों पदों को भरने की कोई योजना बना रही है। पिछले सात-आठ सालों में जो भर्तियाँ निकली भी हैं वे पेपर लीक, नक़ल माफियाओं, धाँधली, भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ चुकी हैं। रोज़गार न दे पाने की अपनी नाकामी को छुपाने के लिए ही सरकार बेरोज़गार युवाओं के ऊपर ही लाठीचार्ज और फ़र्ज़ी मुक़दमे करवा रही है। हालाँकि लाठी-डण्डे और जेल का डर दिखाकर बहुत लम्बे समय तक नौजवानों के भविष्य के साथ नहीं खेला जा सकता है।
मज़दूर बिगुल, मार्च 2023
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