महिला दिवस पर महिलाओं व पुरुष मज़दूरों को कम्पनी में अपनी माँगों को लेकर भूख हड़ताल करनी पड़ी

जेएनएस के कैज़ुअल व परमानेण्ट मज़दूर, 8 मार्च और 9 मार्च को वेतन बढ़ोत्तरी, पुराने कैज़ुअल मज़दूरों को पक्का करने व अन्य माँगों को लेकर डेढ़ दिन हड़ताल के बाद कम्पनी प्रबन्धन से श्रम विभाग के समक्ष बातचीत के बाद काम पर लौट आये हैं।
फ़िलहाल कम्पनी प्रबन्धन ने लिखित रूप में 30 अप्रैल तक समस्याओं के समाधान का भरोसा दिलाया है। और कहा कि डेढ़ दिन की हड़ताल का पैसा भी नहीं कटेगा।
लेकिन इसके बावजूद काफ़ी मज़दूरों को 30 घण्टे की भूख हड़ताल ख़त्म करने पर भोजन नहीं मिला, और भूखे पेट काम पर लौटना पड़ा, जिसकी वजह से मज़दूरों की हालत ख़राब हुई और कुछ बेहोश भी हुए।
ऐसे मज़दूरों को कम्पनी प्रबन्धन के वायदों पर निर्भर न रहकर माँगें पूरा न होने तक सतर्क रहने की ज़रूरत है। कभी भी कम्पनी किसी मज़दूर को तंग-परेशान करके कोई बदले की भावना से कार्रवाई कर सकती है। ऐसा इसलिए कि अक्सर कम्पनी प्रबन्धन हड़ताल को तोड़ने के लिए साम-दाम-दण्ड-भेद का इस्तेमाल करती है।
ज्ञात रहे कि कम्पनी में क़रीब 1300-1400 ठेका-कैज़ुअल मज़दूर हैं और क़रीब 50-60 परमानेण्ट मज़दूर हैं। जिसमें काफ़ी संख्या महिला मज़दूरों की हैं। यह ऑटोपार्ट्स बनाने वाली कम्पनी मानेसर के आई. एम. टी. (औद्योगिक क्षेत्र) के सेक्टर तीन में स्थित है। दीवाली से पहले ही कम्पनी प्रबन्धन के प्रति मज़दूरों का ग़ुस्सा बढ़ रहा था। ज़बरन 12 घण्टे की शिफ़्ट का मामला हो या टॉयलेट व कैण्टीन का मुद्दा भी क्यों न हो?

मज़दूर बिगुल, अप्रैल 2021


 

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