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(मज़दूर बिगुल के मई 2021 अंक में प्रकाशित लेख। अंक की पीडीएफ़ फ़ाइल डाउनलोड करने के लिए यहाँ क्लिक करें और अलग-अलग लेखों-ख़बरों आदि को यूनिकोड फ़ॉर्मेट में पढ़ने के लिए उनके शीर्षक पर क्लिक करें)
सम्पादकीय
श्रद्धांजलि
विदा कॉमरेड मीनाक्षी, लाल सलाम!
चुनाव
पाँच राज्यों में सम्पन्न चुनावों के नतीजे और सर्वहारा वर्गीय नज़रिया / शिवानी
कोरोना महामारी और पूँजीवाद
“पाँच ट्रिलियन डॉलर” की अर्थव्यवस्था बन रहे देश में ऑक्सीजन, दवा, बेड की कमी से दम तोड़ते लोग! / प्रियम्वदा
कोरोना महामारी ने खोली पूँजीवादी चिकित्सा-व्यवस्था की पोल; आज मनुष्यता को समाजवादी चिकित्सा व्यवस्था की ज़रूरत है! / आनन्द
बिना योजना थोपा गया लॉकडाउन और मज़दूरों के हालात / भारत
राजधानी दिल्ली की बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं के दावे और हक़ीक़त / योगेश स्वामी
तमाम तिलचट्टे, छछून्दर और चूहे बदहवास क्यों भाग रहे हैं इधर-उधर? / कविता कृष्णपल्लवी
कोरोना की दूसरी लहर में बदहाल राजस्थान; स्वास्थ्य सेवाओं ने दम तोड़ा, डेढ़ साल हाथ पर हाथ धरे बैठी रही गहलोत सरकार / रवि
जब बस्तियों के किनारे श्मशान बना दिये जायें तो समझो हालात बद से बदतर हो गये हैं / अदिति
मोदी सरकार के आपराधिक निकम्मेपन की सिर्फ़ दो मिसालें देखिए!
स्वास्थ्य
आज़ाद भारत में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति: एक ऐतिहासिक रूपरेखा / आनन्द सिंह
पूँजीवाद और स्वास्थ्य सेवाओं की बीमारी / डॉ. नवमीत
बन्द होती सार्वजनिक क्षेत्र की दवा कम्पनियाँ सरकार की मजबूरी या साज़िश? / डॉ. नवमीत
मुनाफ़े के गोरखधन्धे में बलि चढ़ता विज्ञान और छटपटाता इन्सान / डॉ. नवमीत
समाजवादी स्वास्थ्य सेवाएँ
क्रान्तिकारी समाजवाद ने किस प्रकार महामारियों पर क़ाबू पाया; सोवियत संघ और क्रान्तिकारी चीन के अनुभव / आनन्द सिंह
क्रान्तिकारी चीन में स्वास्थ्य प्रणाली / डॉ. ऋषि
अन्तर्राष्ट्रीय
इन्साफ़पसन्द लोगों को इज़रायल का विरोध और फ़िलिस्तीन का समर्थन क्यों करना चाहिए / आनन्द
कोरोना महामारी और कोविडियट्स
विरासत
मई दिवस की कहानी / सत्यप्रकाश
अपने-अपने मार्क्स / कविता कृष्णपल्लवी
सोफ़ी और उसके बहादुर साथियों की शहादत दुनिया भर में फ़ासीवाद के विरुद्ध लड़ने वालों को प्रेरित करती रहेगी! / सत्यम
कला-साहित्य
डॉक्टर के नाम एक मज़दूर का ख़त / बेर्टोल्ट ब्रेष्ट
आपस की बात
मज़दूर बिगुल अख़बार है मज़दूरों का हथियार / अमित, गाँव – डोहाना खेड़ा, जीन्द, हरियाणा
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बुर्जुआ अख़बार पूँजी की विशाल राशियों के दम पर चलते हैं। मज़दूरों के अख़बार ख़ुद मज़दूरों द्वारा इकट्ठा किये गये पैसे से चलते हैं।
मज़दूरों के महान नेता लेनिन