कोरोना के बहाने हरियाणा में युवाओं, कर्मचारियों और जनता के हितों पर खट्टर सरकार का बड़ा हमला!
अगले 1 साल तक सरकारी नौकरियों पर लगी रोक, कर्मचारियों के हक़ों को छीना, जनता पर बढ़ेगी महँगाई की मार!
– अरविन्द
हाल ही में भाजपा-जजपा की खट्टर सरकार ने हरियाणा में अगले 1 साल तक सरकारी भर्तियों पर रोक लगाने का फ़रमान सुनाया है। खट्टर सरकार द्वारा यह बेहूदा निर्णय उस समय लिया गया है जब प्रदेश में बेरोज़गारी का आँकड़ा बुलन्दियों को छू रहा है। इसके अलावा कर्मचारियों के महँगाई, एलटीसी जैसे भत्तों पर रोक लगा दी गयी है। जल्द ही अन्य हक़ों को छीने जाने का भी ऐलान होने वाला है। भाजपा-जजपा गठबन्धन की प्रदेश सरकार ने लॉकडाऊन के दौरान बसों के किराये में 20 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी करने, पेट्रोल और डीजल पर भारी उत्पाद शुल्क लगाकर इसे महँगा करने तथा शराब व बीयर की कीमतों में इज़ाफ़ा करने का भी फ़ैसला लिया है। कुछ लोग कह रहे हैं कि खट्टर सरकार के एक बड़े मन्त्री का रिश्तेदार बड़ा शराब कारोबारी हैं। आप समझ सकते हैं कि महँगी शराब का फ़ायदा भी किसे होने वाला है! इस भयानक संकट के वक्त भी जनता पर भारी-भरकम करों का बोझ लादा जा रहा है।
गीता महोत्सव, सरस्वती पुनरुत्थान, नेताशाही की अय्याशियों, ऊलजुलूल खर्चों और घपलों-घोटालों में खजाने को लुटाने वाली खट्टर की खटारा सरकार अब कोरोना संकट से निबटने के लिए किसानों से एक-एक किलो अनाज और छात्रों से पाँच-पाँच रुपये की भीख माँग रही है। अब सरकार के द्वारा कर्मचारियों और जनता के हितों में सेंधमारी की जा रही है। बेरोज़गारी की मार झेल रहे हरियाणा में सरकार ने अगले एक वर्ष तक रोज़गार सृजन पर रोक लगा दी है। वैसे भी खट्टर सरकार हरियाणा के पढ़े-लिखे युवाओं के साथ लगातार विश्वासघात करती रही है। लाखों खाली पद होने के बावजूद भी पढ़े-लिखे युवा बेरोज़गारी की मार झेल रहे हैं। चुनाव के समय वायदे कुछ और हक़ीक़त कुछ और, इस रघुकुल रीत की भाजपा सबसे बड़ी पर्याय है।
सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआरई) के सितम्बर 2019 के आँकड़ों के अनुसार हरियाणा में बेरोज़गारी की दर 28.7% थी जो कि देश के किसी भी राज्य में सबसे ज्यादा और राष्ट्रीय बेरोज़गारी दर (8.4%) की लगभग तीन गुना थी। कोरोना संकट के बीच 1 मई को आये सीएमआई के सर्वे व अनुमान के मुताबिक हरियाणा में बेरोज़गारी दर फ़िलहाल 43.2 प्रतिशत पर जा पहुँची है। हरियाणा में 1995-96 में सरकारी-अर्ध सरकारी 4,25,462 नौकरियाँ थी। इस दौरान आबादी बढ़ी, लोगों की ज़रूरतें बढ़ी, उत्पादन बढ़ा लेकिन रोज़गार घटा। 20 साल बाद यानी 2015-16 में नौकरियाँ घटकर मात्र 3,66,829 रह गयीं। यानी प्रदेश की सरकारें हर साल औसतन 3,100 नौकरियाँ निगलती रही हैं!
भाजपा-जजपा की ठगबन्धन सरकार के कोरोना संकट से उबरने के नाम पर उठाये गये ये सारे कदम घोर जन-विरोधी हैं। यह कारस्तानी सरकार की बदइन्तजामी और कोरोना की मार झेल रही जनता की झुकी कमर को तोड़ने की कवायद से ज़्यादा कुछ नहीं है। भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी सरकार के ऐसे कदमों की कड़ी भर्त्सना करती है। साथ ही हम हरियाणा के लोगों से अपील करते हैं कि इस सरकारी लूट की असलियत को समझें और हर सम्भव तरीके से इसका कड़ा प्रतिवाद करें।
देखिए हरियाणा में पिछले 6 साल के दौरान नेताशाही-अफ़सरशाही द्वारा हुए ऊलजलूल खर्चों और घपलों की कुछ बानगियाँ :-
कोरोना की गफ़लत के बीच ही विगत 24 मार्च को भाजपा-जजपा सरकार ने मन्त्रियों के आवास भत्ते को 50,000 से बढ़ाकर 80,000 रुपये कर दिया था। साथ ही बिजली एवं पानी के शुल्क के तौर पर 20,000 रुपये अतिरिक्त मिलेंगे। यानी एक मन्त्री की रिहायश ही 1 लाख में पड़ेगी। हज़ारों-लाखों में इनकी तनख्वाह और अन्य भत्ते अलग से!
आरटीआई एक्टिविस्ट पीपी कपूर द्वारा 8 अक्टूबर को लगायी गयी एक आरटीआई के जवाब के अनुसार हरियाणा के कुल 262 पूर्व विधायकों को मासिक पेंशन के रूप में प्रति वर्ष 22 करोड़ 93 लाख रुपये मिलते हैं। ज़ाहिर है विगत विधानसभा चुनाव के बाद इन पूर्वविधायकों की संख्या में बढ़ोत्तरी ही हुई होगी।
“सात्विक और ऋषि सदृश” अनिल विज पिछले दिनों 950 की थाली, 450 का मुर्गा सूप, 350 का एक अण्डा और 407 रुपये की चाय उड़ाते हुए पाये गये थे! जनता के धन का अपने स्वास्थ्य लाभ के लिए इस्तेमाल करने का स्वास्थ्य मन्त्री का अपना ही अन्दाज़ है।
खट्टर सरकार ने पिछली योजना में गीता महोत्सव 2017 के दौरान 50-100 रुपये कीमत वाली भगवद गीता की 1 पुस्तक के लिए 38 हज़ार रुपये खर्च किये। यानी खट्टर सरकार द्वारा 3 लाख 80 हज़ार रुपये में गीता की दस प्रतियाँ खरीदी गयी।
पिछले प्लान में ही हरियाणा सरकार प्रवासी दिवस पर मेहमानों के लिए चाय के कप पर 407 रुपये, खाने की थाली पर 34 सौ रुपये और प्रति व्यक्ति शराब पिलाने पर 1,388 रुपये खर्च करती पायी गयी।
खट्टर के करीब 6 साल के कार्यकाल के दौरान निजी विमान, मन्त्रियों के द्वारा संसाधनों का बेजा इस्तेमाल और फर्जी लाखों किलोमीटर गाड़ियाँ दौड़ाने जैसी नेताशाही द्वारा खुली लूट जैसी घटनाओं और बिजली मीटर घोटाला, किलोमीटर स्कीम रोडवेज़ घोटाला, छात्रवृत्ति घोटाला, दवा खरीद घोटाला, वाहन रजिस्ट्रेशन घोटाला, विभिन्न भर्तियों में घोटालों की कोई सीमा नहीं है। इतना सब होने पर भी जो कोई इन महारथियों पर थोड़ा भी प्रश्नवाचक की मुद्रा में होता है तो सबसे पहले सत्तापक्ष उससे यह पूछता है कि पिछले 70 साल क्यों नहीं बोले!? मतलब एक तो चोरी ऊपर से सीनाजोरी!
प्रदेश के खजाने को लूटने, लुटवाने और प्रदेश पर हज़ारों करोड़ के कर्ज का बोझ लाद देने वाली भाजपा, प्रदेश के मुख्यमन्त्री खट्टर और साझीदार के तौर पर इनकी पूँछ पकड़े जजपा के दुष्यन्त चौटाला को जनता से आर्थिक मदद की अपील करने में ज़रा भी शर्म नहीं आती? क्या सरकारी घाटे की ज़िम्मेदार जनता है? क्या हर बार जनता को ही पेट पर पट्टी बाँधनी पड़ेगी? प्रदेश के युवा भला मन्त्रियों-सन्तरियों-अफ़सरों की ऐशो-आराम-अय्याशियों का खामियाजा क्यों भुगतें?
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