बेरोज़गारी का दानव लील रहा है युवा ज़िन्दगियाँ
हर दिन 35 बेरोज़गार नौजवान कर रहे हैं आत्महत्या!
– रूपा
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आँकड़ों के मुताबिक 2018 में हर दिन औसतन 35 बेरोज़गारों और स्वरोज़गार से जुड़े 36 लोगों ने ख़ुदकुशी की। कुल मिलाकर 2018 में बेरोज़गार और स्वरोज़गार से जुड़े 26,085 लोगों ने जीवन से निराश होकर आत्महत्या कर ली!
हर साल दो करोड़ लोगों को रोज़गार देने का जुमला उछालकर 2014 में सत्ता में आयी मोदी सरकार के कारनामों से रोज़गार बढ़ने के बजाय लगातार घटता गया है। बेरोज़गारी पिछले 45 साल का रिकॉर्ड तोड़ चुकी है। इस सरकार के पास अब लोगों को देने के लिए जुमले भी नहीं रह गये हैं। वे सिर्फ़ इस देश के आम नौजवानों में नफ़रत का ज़हर भरकर उनके हाथों में कट्टे, बम और त्रिशूल थमाकर अपना उल्लू सीधा करना जानते हैं। संघ और भाजपा के सारे नेताओं के बच्चों का तो भविष्य सुरक्षित है, मगर वे जो देश बना रहे हैं, उसमें ग़रीबों और मेहनतकशों के बच्चे सड़कों पर जूते घिस रहे हैं और निराशा में अपनी जान दे रहे हैं।
टेलिकॉम सेक्टर से लेकर रेलवे, बैंक हर जगह नौकरियाँ छीनी जा रहीं हैं और रहे-सहे पदों को भी ख़त्म करने की कवायदें चल रहीं हैं। सरकार की पूरी कोशिश है कि सभी सार्वजनिक उपक्रमों को जर्जर अवस्था में पहुँचाकर उन्हें निजी हाथों में सौंप दिया जाय। ऐसे में साफ है कि बेरोज़गारी और छँटनी की मार अब निजी और सार्वजनिक क्षेत्र के सभी कर्मचारियों पर और भी तेज़ी से पड़ने वाली है।
जनवरी 2019 में एक रिपोर्ट आयी थी कि भारत में बेरोज़गारी दर 6.1 फीसदी हो गई है और यह पिछले 45 सालों में सबसे ज्यादा है। दिसम्बर 2019 में यही आँकड़ा 6.1 से 7.6 फीसद हो गया। इसका साफ़ मतलब है कि जनवरी 2019 से दिसम्बर 2019 के बीच लाखों लोगों का रोज़गार छिन गया।
पिछले 5 सालों में देश के प्रमुख सेक्टरों, जैसे टेक्सटाइल, ऑटोमोबाइल, टेलिकॉम, नग और आभूषण, रियल एस्टेट, विमानन और बैंकिंग से 3.64 करोड़ लोगों की नौकरियाँ चली गयीं। सबसे ज्यादा 3.5 करोड़ नौकरियाँ टेक्सटाइल सेक्टर में गयीं। इसके अलावा नग और आभूषण में 5 लाख, ऑटो सेक्टर में 2.30 लाख, बैंकिंग में 3.15 लाख, टेलिकॉम में 90 हज़ार, रियल एस्टेट में 2.7 लाख और विमानन में 20 हज़ार नौकरियाँ गयी हैं।
दूसरे सेक्टरों की हालत भी कुछ ऐसी ही है। अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण और बड़ी संख्या में रोज़गार पैदा करने वाले सबसे अहम 8 औद्योगिक क्षेत्रों में विकास दर पिछले नवम्बर में शून्य से भी नीचे चली गयी। ऐसे में रोज़गार कहाँ से पैदा होगा। खेती के लगातार गम्भीर होते संकट के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में भी लोगों को रोज़गार नहीं मिल रहा है। मनरेगा के बजट में कटौती के चलते इस योजना से भी लोगों को कम काम मिल पा रहा है।
मोदी सरकार नये रोज़गार सृजन के चाहे जितनी लफ़्फ़ाजी करे वास्तविकता ये है कि सार्वजनिक क्षेत्रों में नई भर्तियां पूरी तरह से रोक दी गयी हैं, जिसकी वजह से पहले से कार्यरत कर्मचारियों पर काम का बोझ दुगना हो गया है। खाली पदों को भरने के बजाय बाहर के लोगों से ठेके पर काम कराया जा रहा है। रिटायर होने वाले कर्मचारियों को फिर से कम वेतन पर सरकारी विभागों में काम करने को मज़बूर किया जा रहा है। निजी और सरकारी विभागों में तेज़ी से छँटनी की प्रक्रिया शुरू हो गयी है। अभी-अभी बीएसएनएल से हज़ारों कर्मचारियों को जबरन वीआरएस देकर रिटायर कर दिया गया है।
सीएमआई की रिपोर्ट के अनुसार दिसम्बर 2017 में देश में 40.79 करोड़ रोज़गार थे जो कि दिसम्बर 2018 में घटकर 39.7 करोड़ रह गये। मात्र एक साल के अन्दर एक करोड़ 10 लाख रोज़गार खत्म कर दिये गये।
आज बेरोज़गारी देश का सबसे बड़ा मुद्दा है, देश में करीब एक-तिहाई लोग बेरोज़गार हैं लेकिन मोदी सरकार के पास इस पर कोई योजना नहीं है। यह बात फ़रवरी 2020 के बजट में भी सामने आ चुकी है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने 162 मिनट के बजटीय भाषण में बेरोज़गारी जैसे अहम् मुद्दे को लेकर कोई ख़ास बात नहीं की और ना ही कोई योजना रखी। नौकरियाँ देने के नाम पर लघु, सूक्ष्म और मध्यम उद्योगों और स्टार्टअप को ज़्यादा सहूलियतें देकर रोज़गार सृजन बढ़ाने के जुमले भर उछाले गये। कुल मिलाकर मोदी सरकार नये बजट में भी प्रीपेड मीटर, स्मार्ट सिटी और पीपीपी मॉडल जैसे झुनझुनों को जनता के हाथ में थमा कर बाक़ी अहम मुद्दों से ध्यान भटकाने का ही काम करती रही। लेकिन निजी कम्पनियों का खास ख्याल रखा गया इस बजट में और साथ ही मोदी की सुरक्षा का भी। तभी तो प्रधानमंत्री की एसपीजी सुरक्षा का खर्च 540 करोड़ से बढ़ाकर 600 करोड़ कर दिया गया।
जिस देश का युवा बेरोज़गारी में दर-दर भटक रहा हो, हर दिन 35 युवा बेरोज़गारी से तंग आकर जान दे रहे हों, ऐसे देश में युवाओं को रोज़गार मुहैया कराने और बेरोज़गारी भत्ता देने के बजाय प्रधानमंत्री की सुरक्षा पर जनता का पैसा पानी की तरह बहाया जाये ये अपने आप में बहुत बड़ा सवाल है।
दुनिया का सबसे युवा देश कहे जाने वाले भारत की हालत ये है कि यहाँ युवाओं की उर्जा और क्षमता का कोई मोल नहीं। किसी देश के लिए ये बहुत गौरव की बात होनी चाहिए कि वहाँ सबसे ज़्यादा युवा आबादी है, लेकिन हमारे यहाँ युवा को दर-दर की ठोकरें, हताशा, झूठे वादों और ख़ुदकुशी करने के हालात के सिवा क्या मिलता है?
देश के युवाओं को बेहतर शिक्षा, बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएँ और रोज़गार मिले तो उनकी क्षमताएँ देश को तरक़्क़ी की राह पर ले जाती हैं। लेकिन एक फ़ासीवादी सरकार से ऐसी उम्मीद करना नासमझी है।
आज मोदी सरकार के पास बेरोज़गारी का कोई समाधान नहीं है। इसलिए आज एनआरसी, सीएए और एनपीआर जैसे नकली मुद्दों को उभारा जा रहा है। सोचने वाली बात ये है कि जहाँ इस देश की आबादी को शिक्षा, रोज़गार जैसे बुनियादी मुद्दों के लिए सड़कों पर उतरना चाहिए वहाँ आज देश की महिलाएँ, बच्चे और नौजवान एनआरसी, सीएए और एनपीआर के ख़िलाफ़ अपने वजूद के लिए लड़ने पर मजबूर कर दिये गये हैं।
देश में ज्यों-ज्यों आर्थिक संकट गहराता जा रहा है रोज़गार की हालत बद से बदतर होती जा रही है। हमें यह भी ध्यान रखना होगा कि इसका समाधान निजीकरण नहीं है और ना ही इसका निदान पूँजीवादी व्यवस्था के पास है। छँटनी, तालाबन्दी और बेरोज़गारी को बनाये रखने की प्रक्रिया पूँजीवाद के बने रहने की शर्त है। यह आर्थिक संकट पूँजीवाद का ढाँचागत संकट है और यह पूँजीवाद के ख़ात्मे के साथ ही जायेगा। इसलिए रोज़गार के हक़ की लड़ाई के साथ-साथ इस व्यवस्था को बदलने की लड़ाई को भी तेज़ करने की ज़रूरत है।
मज़दूर बिगुल, फ़रवरी 2020
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