मंगोलपुरी की घटना ने फिर साबित किया कि आज न्याय, इंसाफ़ और सुरक्षा सिर्फ अमीरज़ादों के लिए ही है!
योगेश
दिल्ली में 28 फरवरी को मंगोलपुरी के नगर निगम स्कूल में दूसरी कक्षा में पढ़ने वाली सात साल की बच्ची के साथ स्कूल परिसर में हुई बलात्कार की शर्मनाक घटना ने दिल्ली में सुरक्षा दुरुस्त करने के दिल्ली सरकार व निगम प्रशासन के दावों की पोल खोल दी। इस शर्मनाक घटना के बाद पुलिस और प्रशासन ने आरोपी को पकड़ने का दिखावा करते हुए जो कार्रवाई की उससे भी साफ हो गया कि इस व्यवस्था में ग़रीबों के लिए क़ानून, न्याय और इंसाफ जैसी चीज का कोई खास मतलब नहीं है। इस व्यवस्था का चरित्र इससे भी पता चलता है कि पिछले साल 16 दिसम्बर को एक पैरामेडिकल छात्र के साथ हुई बलात्कार की जघन्य घटना के बाद सारे सुरक्षा के इन्तज़ाम उन स्कूलों या कॉलोनियों में किए गये जहाँ शहर के खाते-पीते घरों के लोग रहते हैं। जिन सरकारी स्कूलों में ग़रीबों-मज़दूरों के बच्चे पढ़ते हैं, जिन कच्ची कॉलोनियों में ये लोग रहते हैं या जिन फ़ैक्टरियों में मज़दूर महिलाएँ काम करने जाती हैं, वहाँ ये सुरक्षा के इन्तज़ाम सिर्फ कागज़ों में होते हैं।
ऐसी शर्मनाक घटना के बाद भी प्रशासन का रवैया आमतौर पर मज़दूरों को ही दोषी ठहराने वाला होता है। जैसे इस घटना में हुआ अस्पताल द्वारा बलात्कार की पुष्टि के बाद 1 मार्च को जब लड़की के पिता स्कूल प्रशासन से इस घटना के सम्बन्ध में मिले तो प्रशासन का कहना था कि यह घटना हमारे स्कूल में हुई ही नहीं है; कहीं बाहर हुई होगी। लड़की के पिता ने उसी समय इस घटना की प्राथमिकी दर्ज कराने के लिए पुलिस को सूचित किया गया। पुलिस आयी तो पर मामला दर्ज करने के लिए टालमटोल करती रही। स्कूल प्रशासन और पुलिस के इस रवैये से लोग भड़क गये और उन्होंने वहाँ दोनो का विरोध करना शुरू कर दिया। बस इतने पर ही वहाँ जमकर लाठी चार्ज किया गया और पुलिस ने अपनी तत्परता दोषी को पकड़ने की बजाय इस घटना के खि़लाफ़ विरोध करने वाले युवाओं को गिरफ़्तार करने में ज़्यादा दिखायी। लोगों के इस विरोध के बाद पुलिस ने तुरन्त एफ.आई.आर. दर्ज कर ली। हर बार की तरह ऐसी किसी घटना के बाद एक जाँच समिति गठित कर दी गयी है। निगम प्रशासन ने लोगों के दबाव में अगले दिन ही प्रिंसिपल समेत पाँच कर्मचारियों को निलम्बित कर दिया। घटना की सूचना मिलते ही मज़दूर बिगुल अखबार और बिगुल मज़दूर दस्ता से जुड़े कार्यकर्ता इलाके में पहुँचे तो पता चला कि पुलिस ने उस लड़की और उसके माता-पिता को अपने थाने में बैठा रखा है। मीडिया या सामाजिक कार्यकर्ताओं से उनके मिलने पर रोक लगा रखी थी। इसका एक कारण तो पुलिस द्वारा पीड़ित लड़की से दोषी के सन्दर्भ में बातचीत करना था; दूसरा यह था कि इस घटना के सन्दर्भ में लड़की के माता-पिता दोनो के बयान प्रशासन के विरोध में आ रहे थे और प्रशासन नहीं चाहता था कि ऐसी कोई भी बात बाहर आये। इसीलिए घटना के बाद तीन-चार दिन तक बच्ची और उसके अभिभावकों को सुबह से शाम तक थाने में बैठाकर रखा जाता था।
इस घटना के बाद मंगोलपुरी की इस झुग्गी-झोपड़ी कॉलोनी में पुलिस गश्त बढ़ गई और शक के आधार पर यहीं के लोगों को गिरफ़्तार करने लगी। इलाके के कई लड़कों को इस घटना के विरोध में तोड़-फोड़ करने के जुर्म में पहले ही गिरफ़्तार कर रखा था। इस सब से पूरे इलाके में एक डर का माहौल था। कोई भी प्रशासन के खिलाफ कुछ बोलने से डर रहा था। बिगुल मज़दूर दस्ता और नौजवान भारत सभा की अगुवाई में दिल्ली के सरकारी स्कूलों की बदहाल स्थिति को बदलने के उद्देश्य से चलाये जा रहे ‘स्कूल बचाओ अभियान’ की ओर से लोगों को एकजुट करने के लिए ‘हमारे बच्चों के साथ ही क्यों होती है मंगोलपुरी जैसी घटनाएँ’ शीर्षक से एक पर्चा भी इलाके में बाँटा गया।
नगर निगम प्रशासन ने इस घटना की जाँच करने वाली समिति को पाँच दिन में अपनी रिपोर्ट सौंपने को कहा था। हम लोगों को पीड़ित लड़की के रिश्तेदारों से पता चला कि पुलिस प्रशासन दबाव बना रहा कि वे लोग अपने इलाके के किसी भी व्यक्ति का नाम ले दें; उसे दोषी भी सिद्ध कर दिया जायेगा। ताकि इस मामले को जल्दी निपटाया जा सके। हालाँकि उनके द्वारा ऐसा न करने पर अगले दिन कुछ अखबारों में यह छपा कि निगम की रिपोर्ट के मुताबिक यह घटना स्कूल में हुई ही नहीं है। सच्चाई जानने के लिए बिगुल अखबार के संवाददाता इस लड़की के अभिभावकों और कॉलोनी के लोगों के साथ इस इलाके के थाने के एस.एच.ओ. से मिले तो उनका जबाव टरकाने वाला ही था कि अभी जाँच चल रही है। जाँच के नाम पर कुछ लड़कों को पुलिस ने लड़की के सामने बुलाया गया था; जबकि स्वयं लड़की की मदद से बनाये गये व्यक्ति के स्कैच से यह साफ था कि दोषी कोई बड़ी उम्र का आदमी है। कुल मिलाकर पुलिस जाँच के नाम पर कुछ लीपा-पोती करने में लगी रही। घटना के लगभग दो महीने के बाद भी प्रशासन दोषी को पकड़ने में नकाम है; इसका एक मुख्य कारण यही है कि पीड़ित लड़की मज़दूर परिवार से ताल्लुक रखती है।
इस तरह के मामले में प्रशासन उस स्कूल में थोड़ी बहुत सुरक्षा बढ़ाने का दिखावा कर रहा है। लेकिन नगर निगम और राज्य सरकार के अन्य स्कूलों में ऐसी घटनाएँ न हों, क्या इसके कोई इन्तज़ाम किये जायेंगे? वर्तमान सच्चाई यही है कि नगर निगम के स्कूलों के गेटों पर न तो कोई गार्ड बैठते हैं और न ही उनके बाहर पुलिस की कोई मौजूदगी होती है। कोई भी इनमें आ-जा सकता है। इन स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे आये दिन ग़ायब होते हैं, अगवा कर लिये जाते हैं जिनमें से कई को मानव अंगों के व्यापार से लेकर यौन उत्पीड़न के नर्क में धकेलने की ख़बरें आती रही हैं। दिल्ली में स्कूलों के बच्चों के साथ हुई यह पहली घटना नहीं है। दिल्ली से हर रोज 18 बच्चे गायब होते है; जिनमें अधिकतर लड़कियाँ होती हैं। पिछले वर्ष राजधानी में सौ से अधिक छोटी बच्चियों के साथ बलात्कार हुआ था। 2009 में उत्तर-पूर्वी दिल्ली के खजूरी इलाके के राजकीय उच्चतम विद्यालय में प्रशासन की लापरवाही के कारण मची भगदड़ में पाँच लड़कियों को जान गँवानी पड़ी थी। जो गिरोह बच्चों की तस्करी में लगे होते हैं, उनकी स्थानीय प्रशासन से ऊपर तक पूरी मिलीभगत होती है। ऐसा नहीं है कि प्रशासन को इनकी जानकारी नहीं है। सरकारी स्कूलों के बाहर ही बच्चों को अलग-अलग तरह के नशे बेचने का धन्धा भी किया जाता है।
नगरनिगम, विधानसभा से लेकर संसद तक मौजूदा सरकारें समाज के धनी वर्गों की सेवा करती हैं। अमीरज़ादों के लिए बनाये गये सरकारी और निजी स्कूलों में सुरक्षा के सारे इन्तज़ाम हैं। जबकि ग़रीबों के बच्चों को बुनियादी सुरक्षा भी स्कूलों में नहीं दी जाती है, कि उनका जीवन सुरक्षित रहे। और तो और, ऐसी किसी घटना के बाद गरीब लोगों को आमतौर पर इंसाफ मिल ही नहीं पाता है। मंगोलपुरी की इस घटना के बाद प्रशासन का जो रवैया रहा उसने यही साबित किया कि मौजूदा व्यवस्था में न्याय, इंसाफ और सुरक्षा सिर्फ अमीरज़ादों के लिए ही है; जबकि मज़दूरों के लिए ये सिर्फ कागज़ी बातें है। मेहनतकश लोग अगर सच्चे मायनों में अपने और अपने बच्चों के लिए न्याय, इंसाफ और सुरक्षा चाहते हैं तो उन्हें मुनाफ़े पर टिकी मौजूदा व्यवस्था के ख़ात्मे के बारे में सोचना होगा।
मज़दूर बिगुल, अप्रैल-मई 2013
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