असंगठित क्षेत्र के मज़दूरों के लिए पेंशन योजना की असलियत
शाम मूर्ति
भाजपा की नरेन्द्र मोदी की सरकार ने लोकसभा चुनाव से ठीक पहले वर्ष 2019-20 के अपने छठे केन्द्रीय पूर्ण बजट की जगह अन्तरिम बजट में असंगठित क्षेत्र के कामगारों के लिए एक नयी पेशन योजना पेश की है। कार्यवाहक वित्त मन्त्री पीयूष गोयल देश के असंगठित क्षेत्र के 42 करोड़ मज़दूर-मेहनतकश, जो बुढ़ापे में अपनी आजीविका का इन्तज़ाम नहीं कर सकते, को सामाजिक सुरक्षा देने के लिए “गारण्टेड” पेंशन योजना – प्रधानमन्त्री श्रमयोगी मानधन पेंशन (पीएमएसवाईएम) के सपने लेकर आयी है जिसे देश में 15 फ़रवरी से शुरू कर दिया गया है। साथ में यह भी कहा गया है कि ‘आयुष्मान भारत’ के अन्तर्गत स्वास्थ्य सेवा और ‘प्रधानमन्त्री जीवन ज्योति योजना’ के अन्तर्गत प्रदान किये गये जीवन और दिव्यांगता सम्बन्धी बीमा कवरेज के अलावा पीएमएसवाईएम असंगठित क्षेत्र के उन कामगारों के लिए है, जिनके लिए 500 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। और इसके अगले पाँच सालों में असंगठित क्षेत्र के लिए विश्व की सबसे बड़ी पेंशन योजना बनने का दावा भी किया गया है। चलिए पहले यह देख लेते हैं कि असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले मज़दूरों में कौन शामिल है और उनकी हालत क्या है? इसमें घरेलू कामगार, ड्राइवर, प्लम्बर, रेहड़ी-पटरी वाले, रिक्शा चालक, खेती और निर्माण कार्य से जुड़े मज़दूर, कूड़ा बीनने वाले, कृषि कामगार, बीड़ी बनाने वाले, घर से काम करने वाले, हथकरघा कामगार, चमड़ा कामगार, मिड-डे मिल वर्कर, सिर पर बोझा उठाने वाले, ईंट भट्ठा मज़दूर, मोची, धोबी, ग्रामीण भूमिहीन, घरों में फे़री लगाने वाले, सिर पर बोझा उठाने वाले, चीर-फाड़ करने वाले, टैक्सी-ऑटो ड्राइवर, बिजली का काम करने वाले, नार्इ आदि, या ऐसी किसी कम्पनी में काम करने वाले मज़दूर जिनको पहले से पेंशन सुविधा नहीं है। भारत में ऐसे में हाड़तोड़ मेहनत करने वाला मज़दूर कैसे और कितने 65 वर्ष की औसत उम्र के आसपास पहुँच पाते हैं। असुरक्षित माहौल में काम करने वाली, कम खाकर गुज़ारा करने वाली कुपोषित आबादी 65 से क्या ऊपर जाती है। आज के दौर में 70-90 साल की उम्र तक तो ज़्यादातर सिर्फ़ खाता-पीता सुविधाभोगी पूँजीपति वर्ग व उच्च मध्यवर्ग पहुँच पाता है, जिनके पास निजी स्वास्थ्य सेवाएँ ख़रीदने की औक़ात होती है, वही सब इसके लिए जि़म्मेवार हैं।
मौजूदा मुनाफ़े तथा बाज़ार की ताक़तों द्वारा संचालित पूँजीवादी व्यवस्था और उसकी सरकारें, चाहे राज्यों की हों या केन्द्र की, अपने देश की 5 प्रतिशत से भी कम आबादी की पुरानी पेंशन व्यवस्था की सुरक्षा ख़त्म करने की हद तक चली गयी है, वह 95 प्रतिशत से अधिक कामगार असुरक्षित आबादी को कैसे सामाजिक सुरक्षा दे पायेगी। सरकारी कर्मचारी देश में पुरानी पेंशन बहाली को लेकर आन्दोलन कर रहे हैं। देश में रुपये की क़ीमत लगातार कम होने का रुझान पिछले 70 दशकों से जारी है। अंशदान करने के 20 से 42 साल के बाद उसकी क़ीमत कितनी रह जायेगी। क्योंकि आज रुपये की क़ीमत सात पैसे से भी नीचे जा चुकी है और यह लगातार जारी है। साथ में ही बढ़ती महँगाई में एक मज़दूर 3000 रुपये से कितना सामान और सेवाएँ हासिल कर पायेगा। पेट्रोल-डीज़ल की वजह से सब चीज़ों की क़ीमतें लगातार बढ़ जाती हैं, चाहे अन्तरराष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की क़ीमतें कम ही क्यों न हो जाये। जब किसी व्यक्ति के मज़दूरी या आमदनी से ज़्यादा महँगाई बढ़ जाती है। तो वह व्यक्ति कहाँ तक किश्तें भर पायेगा। इससे खाते बन्द होंगे और सरकार ऐसे खातों में पड़े पैसे को हड़प जायेगी। जैसे मज़दूरों के पीएफ़ का पूरा या एक हिस्सा अक्सर मारा जाता है। सरकार जानती है कि लोग ख़ुद की थक-हारकर बैठ जायेंगे। वो भी लेने नहीं आयेंगे। जैसे कई मालिक और ठेकेदार मज़दूरों का पैसा मार लेते हैं, दिहाड़ी टूटने की डर से वे उसे लेने ही नहीं जाते। वे अपनी ज़िन्दगी से जानते हैं कि चक्कर लगाने में ज़्यादा नुक़सान होगा, सबर का कड़वा घुट पीकर रह जाते हैं। और अब जबकि न्यूनतम बैलेंस न होने पर बैंक द्वारा जनता का पैसा पहले ही हड़पा जा रहा है, तब कोई क़ानूनी सुनवाई भी नहीं कर पायेगा।
सरकारी व निजी क्षेत्र के चापलूस व टुकड़ख़ोर विशेषज्ञों का कहना है कि नयी और अधिक सस्ती पेंशन योजना एक बेहतर सफलता हो सकती है, अगर इसे बेहतर तरीके़ से लागू किया जाये। पहले तो इनसे आँखों में आँखें डालकर यह सवाल करना होगा कि एक पार्षद से विधायक, फिर सांसद बनने वाला एक व्यक्ति तीन-तीन पेंशनें छोड़े और महज़ एक ही पेंशन ले। फिर भारत के लगभग 50 करोड़ कार्यबल, 95% से अधिक कार्यबल अनौपचारिक व असंगठित क्षेत्र के दायरे में आता है, उस आबादी के पास किसी भी तरह की सामाजिक सुरक्षा नहीं है।
अनौपचारिक व असंगठित क्षेत्र के मज़दूरों से हर महीने निश्चित रक़म वसूलने के बाद उन्हें 60 वर्ष की आयु के बाद पेंशन दोगे, वह भी 3000 रुपये। यह इस फ़ासिस्ट सरकार द्वारा किया गया क्रूर मज़ाक़ नहीं तो क्या है। यह तर्क भी दिया जाता है कि असंगठित क्षेत्र के मज़दूरों को विशेष रूप से 15,000 रुपये से कम मज़दूरी या आमदनी होती है, वे किसी भी पेंशन योजना में शामिल नहीं होते हैं। ये वे लोग हैं जो दिहाड़ी मज़दूरी करते हैं और उन्हें आमतौर पर बचत की आदत नहीं होती है। वे लोग जिनकी आय 15,000 रुपये से अधिक होती है, वे कर्मचारी भविष्य निधि (ईपीएफ़) योजना के तहत पात्र होते हैं, इसलिए पीएमएसवायएम उन लोगों का ध्यान रखेगी जो ईपीएफ़ के दायरे से बाहर है।
सरकार जिस चीज़ को ख़ुद ही स्वीकार कर रही है कि 50 फ़ीसदी जीडीपी में योगदान देने वाली आबादी के हालत : भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का आधा हिस्सा इन्हीं मज़दूरों के ख़ून-पसीने की कमाई से आता है, उसकी हालत बहुत ख़राब है। ऐसे कामगारों को प्राय: सरकारों की ओर से तय न्यूनतम वेतन भी नहीं मिलता और न ही पेंशन या स्वास्थ्य बीमा जैसी सामाजिक सुरक्षा मिल पाती है। सरकार जिनकी मासिक आय 15 हज़ार रुपये या इससे कम है। ऐसे में केन्द्र सरकार ने सोशल सिक्योरिटी कोड 2018 के तहत देश में काम करने वाले सभी 50 करोड़ वर्कर्स को पीएफ़, पेंशन, मेडिकल इन्श्योरेंस सहित सभी तरह की सामाजिक सुरक्षा मुहैया कराने की “मैगा” योजना तो बीरबल की खिचड़ी ही साबित होगी।
तब पहला सवाल यही है कि अगर कामगार का वेतन 15,000 से थोड़ा भी बढ़ता है या कम होता है तो सरकार कैसे पता लगायेगी कि किसे इस पेंशन स्कीम के दायरे में कब रखा जाना चाहिए और कब नहीं। सरकार के पास अभी तक इस पर कोई स्पष्ट पैमाना, योजना, घोषणा नहीं है। क्योंकि अनौपचारिक व औपचारिक क्षेत्र के असंगठित कामगारों को कभी नियमित रोज़गार तो मिलता नहीं है। जिनको मिलता है उनके हालात सबके सामने हैं। मालिक/प्रबन्धन/नियोक्ता कभी सीजन में ओवरटाइम (सिंगल व जबरिया) लगवा कर बाद में ब्रेक दे देता है। साप्ताहिक छुट्टी, काम के घण्टे तय नहीं है, समय तय नहीं है। छुट्टी करने पर पैसा काट लिया जाता है या मज़बूरी में छुट्टी करने पर रोज़गार ही छीन जाता है। ऐसे में ख़ुद कामगार क्या ऐसी योजना का जोखिम उठायेगा? दूसरा, अगर इस योजना में 18 से 40 साल तक के कामगार ही शामिल हो सकते हैं, तब आप उनका क्या करेंगे, जिन्हें देश में 40 साल के बाद छँटनी, तालाबन्दी के ज़रिये काम से निकाला जा रहा है। फै़क्ट्रियों के मालिक 25 साल के बाद काम पर रखने में आनाकानी करते हैं। जिनको पहले से पक्के रोज़गार की सुविधा दी अब वे तेज़ी से बेरोज़गार हो रहे हैं। कुछ बचे हुए मज़दूर ठेका-दिहाड़ी-पीस पर अनौपचारिक क्षेत्र के असंगठित मज़दूरों की तरह खटने को मज़बूर हो रहे हैं। फिर, ऐसे में दण्ड देकर चालू करने या पेंशन बन्द देने करने की व्यवस्था होने के क्या मायने रह जायेंगे? असुरक्षित और असुरक्षित होता जायेगा। बढ़ती मँहगाई, चीज़ों की बढ़ती क़ीमतें और घटती रुपये की क़ीमत, घट रहे रोज़गार में तो कल तक जो अंशदान दे रहे थे, आज अंशदान (किश्त) बढ़ने में दिक़्क़त का सामना करेंगे, और इसके ऊपर एजेंसी इस पर जुर्माना लगायेगी दोबारा शुरू करने में और अगर दोबारा शुरू नहीं किया तो काग़ज़ी कार्रवाई के नाम पर पैसा काट बाक़ी आपके हाथ में रख देगी। तब कहाँ रही आपकी सुरक्षा!? कम पैसा लेने तो मज़दूर मालिक के पास भी नहीं जाते और न ही बैंकों और पीएफ़ ऑफि़सों के चक्कर लगाते हैं, क्योंकि इससे ज़्यादा उनकी दिहाड़ी टूटती है।
मासिक योगदान की रक़म उम्र के आधार पर तय होगी और उसमें 60 साल की उम्र तक योगदान करना होगा। ऐसा ही कुछ पहले से चल रही अटल पेंशन योजना में था। तो यह नया झमेला क्यों? उसी को सुधार क्यों नहीं लिया गया? पहले से असंगठित क्षेत्र के लिए योजनाएँ थीं, पर दिक़्क़त कहाँ थी, इस पर कोई चर्चा नही। उनके नाम बदल कर और कुछ नुक़्तों में बदलाव तो कर दिया गया, लेकिन असंगठित क्षेत्र के मज़दूरों का भला होता तो दिखा नहीं है। अटल पेंशन योजना से पहले स्वावलम्बन योजना चल रही थी, जिसे सुधारने की बजाय नाम बदलकर अटल पेंशन योजना में तब्दील कर दिया गया था। क्या इस बार ऐसा ही दोहराया जायेगा? पहले की योजनाओं को क्यों बदला इसकी कोई समीक्षा और इस पर आधिकारिक जाँच-पड़ताल हुई है कि नहीं, अगर हुई है तो क्या इसे पब्लिक किया गया है कि नहीं? किसी को कुछ नहीं पता!
सरकार ने कहा कि योजना में शामिल होने के लिए कामगार के पास उसका बैंक खाता, आधार कार्ड और मोबाइल नम्बर होना ज़रूरी है। इसका क्या मतलब? एक तीर से कई निशाने साधने की पुरानी तकनीक को ही आगे बढ़ाया जा रहा है। असंगठित क्षेत्र के कितने लोगों के पास फ़ोन हैं और वह इसे कितना चलाना जानते हैं? देश की कितने प्रतिशत आबादी सही मायने में साक्षर है। इससे फ़ोन कम्पनियों का कारोबार तो ज़रूर बढ़ जायेगा और लेकिन हमारी जेब से पैसा और कम होता जायेगा। अगर दो व्यक्ति से ज़्यादा लोग काम करते हैं तो इसका मतलब घर में हर किसी के पास एक फ़ोन भी होगा। ख़र्चा कम हुआ या ज़्यादा आप ख़ुद सोचिए! रही बात बैंक खाते की तो जीरो बैलेंस वाले पहले अकाउण्ट खुलवाये, फिर बाद में न्यूनतम बैलेंस न होने पर सारा पैसा ही बैंक वाले खा गये।
यदि कामगार जुड़ने की तारीख़ से 10 साल के अन्दर स्कीम से निकलने का इच्छुक है। 10 साल के बाद, चाहे 60 साल पूरा होने पर या 60 साल की उम्र से पहले अस्थायी रूप से विकलांग हो जाता है और तो केवल उसके हिस्से के योगदान को बचत खाते की ब्याज़ दर से लौटा दिया जायेगा। ऐसा तो इंसान दो ही सूरत में करेगा, एक तो अगर उस पर मुसीबत पड़ गयी और पैसा चाहिए तो मज़बूरी में दुख-सुख में पैसा निकलवा लेगा और अगर दोबारा लौटता है तो उसे अंशदान की राशि बढ़ानी पड़ेगी। तभी 60 साल के बाद पेंशन की रक़म मिल पायेगी। एक तो अभी-अभी समस्या से गुज़र कर आया, दोबारा बढ़ी हुई राशि देना और भी मुश्किल होता जायेगा। 60 साल के बाद यानी पेंशन शुरू होने के बाद किसी कामगार की मौत होने पर उसके पति/पत्नी 50 प्रतिशत यानी 1,500 रुपये पेंशन के रूप में देती ही जाती है तो उसका जीवन साथी 1,500 रुपये में अपना गुज़ारा कर लेगा क्या? यह मज़ाक़ की हद हो गयी है। आपका बुढ़ापा भी बाज़ार की ताक़तों पर निर्भर है। यहाँ पर सरकार ख़ुद एक बिज़नेसमैन की भूमिका अदा कर रही है। पैसा लगाया है तो ठीक, नहीं तो जाओ भाड़ में। जिसके पास नहीं था अपने गुज़ारे लायक़ वो भला कैसे अपने को या जीवन साथी को बचा पायेगा। आठवाँ, कामगार और उसके जीवनसाथी की मौत होने की दशा में रक़म को वापस फ़ण्ड में क्रेडिट यानी वापस कर दिया जायेगा। उसके पीछे परिवार में छूटे हुए बच्चे कहाँ जायेंगे, क्या कोई बता सकता है?
सरकार ने कहा कि प्रधानमन्त्री जीवन बीमा योजना (पीएजेजेबीवाई) और प्रधानमन्त्री सुरक्षा बीमा योजना (पीएमएसबीआई) के तहत दुर्घटना बीमा योजना के अतिरिक्त है। 15,000 रुपये महीने से ज़्यादा वेतन वाले कर्मचारी प्रॉविडेण्ट फ़ण्ड ऑर्गनाइजेशन या एम्प्लॉयीज स्टेट इंश्योरेंस कारपोरेशन के तहत कवर्ड हैं, लिहाजा उन्हें प्रस्तावित योजना के दायरे से बाहर रखा जायेगा। इसका तो सीधा सा एक ही उत्तर है कि देश में एक ही वृहद पेंशन योजना होनी चाहिए पेंशन की न कि अलग आमदनी वाले लोगों के लिए अलग। सरकारी हो या प्राइवेट। स्थायी या अस्थायी, औपचारिक क्षेत्र से हो या अनौपचारिक क्षेत्र से। रोज़गार हो या न हो। जीवन सुरक्षा सबके लिए ज़रूरी है। ऐसे में अगल-अलग मुद्दों की बजाय एक की योजना हो चाहे वह पेंशन हो, दुर्घटना बीमा हो, भविष्य निधि हो। सब सरकारी योजनाओं के रूप में चलाया जाये।
अनौपचारिक और औपचारिक क्षेत्र के असंगठित मज़दूरों/कर्मचारियों/मेहनतकशों को सरकार द्वारा सुझाए गये पेंशन के टुकड़े की असलियत काे समझना होगा और पूरी सामाजिक सुरक्षा के लिए अपना एजेण्डा सेट करना होगा और अपना माँगपत्रक पेश करना होगा। सबको पक्का, सुरक्षित और मज़दूर पक्षीय श्रम-क़ानून सम्मत रोज़गार की गारण्टी के साथ-साथ सबको समान शिक्षा, इलाज, पेंशन योजना जैसी बुनियादी ज़रूरत मुहैया कराये, वरना गद्दी छोड़ दे।
मज़दूर बिगुल, फरवरी 2019
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