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कविता – असंख्य
नाजिम हिकमत
वे असंख्य
पृथ्वी पर चींटियों की भांति,
सिंधु में मछलियों से,
वायु में विहगों से,
कायर जो,
वीर जो,
ज्ञानशून्य
ज्ञानी जो,
और जो बच्चों से,
जो विध्वंसक हैं।
और निर्माता हैं –
उन्हीं की गाथा हमारी पुस्तक में है।
वे जो देशद्रोही के लोभ में आ धोखा खा जाते हैं,
हाथों का परचम पृथ्वी पर डाल देते हैं,
और अपने शत्रु को समर में छोड़कर
घर भाग आते हैं।
जो हजारों आदर्शच्युत व्यक्तियों पर
तलवारें खींच लेते हैं,
जो हरे वृक्ष की भांति हंसा करते हैं,
किसी कारण के बिना जो रोया करते हैं,
मां और पत्नी को कोसते रहते हैं –
हमारी पुस्तक में उन्हीं की गाथा है।
भाग्य में जो लिखा है
लोहे के,
कोयले के,
चीनी के
लाल रंग तांबे के,
रूई के,
प्रेम, निर्ममता और जीवन के,
उद्योग की हर शाखा के,
नभ के,
मरुभूमि के,
नीले महासिंधु के,
नदियों के घुप्प तल के,
जोती हुई भूमि और नगरों के,
भाग्य में लिखा बदल जाता है –
एक सुबह ऐसा सूरज निकल जाता है
पौ फटने पर जब लालिमा के किनारे से
वे अपने भारी हाथ पृथ्वी पर टेककर
खड़े हो जाते हैं।
सबसे प्रबुद्ध दर्पण वे ही हैं,
सबसे रंगीन रूप उनमें उभरते हैं,
वे ही हमारी सदी के विजेता थे, पराजित थे
उनके विषय में बहुत कुछ कहा जाता था
और उनके विषय में
यह भी कहा गया था :
उनके पास खोने को कुछ नहीं, केवल जंजीरें हैं।
Poem – The Multitudes
Nazim Hikmet
Those who are as numerous as ants in the earth,
fish in the sea,
and birds in the air;
who are cowardly,
brave,
ignorant,
learned,
and child-like;
those who destroy
and create,
only their adventures are in our book.
Those who, deceived by the temptations of the traitor,
drop to the ground the flags they were holding,
and leaving the enemy in the battlefield
run away home,
those who draw their swords against scores of renegades,
who laugh like a green tree,
cry without reason,
and curse mother and wife,
only their adventures are in our book.
Iron
coal
and sugar
and red copper
and textiles
and love, cruelty and life
and all the branches of industry
and the sky
and the desert
and the blue ocean
and the gloomy river beds
and the ploughed soil and the cities
their fate changes one morning at dawn,
at dawn when from the edge of darkness
they press their heavy hands against the earth
and rise.
They are the wisest mirrors
reflecting the most colorful shapes.
In our century they were the victors, they were the vanquished.
A great deal was said about them
and about them
it was said:
they have nothing to lose but their chains.
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