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(मज़दूर बिगुल के जून 2018 अंक में प्रकाशित लेख। अंक की पीडीएफ फाइल डाउनलोड करने के लिए यहाँ क्लिक करें और अलग-अलग लेखों-खबरों आदि को यूनिकोड फॉर्मेट में पढ़ने के लिए उनके शीर्षक पर क्लिक करें)
सम्पादकीय
भारत में लगातार चौड़ी होती असमानता की खाई! जनता की बर्बादी की क़ीमत पर हो रहा ”विकास”!!
अर्थनीति : राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय
क्या देश अमीरों के टैक्स के पैसे से चलता है? नहीं! / नितेश शुक्ला
तेल की लगातार बढ़ती क़ीमत : वैश्विक आर्थिक संकट और मोदी सरकार की पूँजीपरस्त नीतियों का नतीजा / अमित
मौजूदा आर्थिक संकट और मार्क्स की ‘पूँजी’ / मुकेश असीम
श्रम कानून
विश्व बैंक की आँखों में चुभते श्रम-क़ानून
फासीवाद / साम्प्रदायिकता
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ : भारतीय फ़ासीवादियों की असली जन्मकुण्डली / अभिनव सिन्हा
संघर्षरत जनता
हरियाणा में नगर परिषद, नगर निगम, नगर पालिका के कर्मचारियों की हड़ताल समाप्त
मनरेगा मज़दूरों ने चुना संघर्ष का रास्ता / गुरूदास सिधानी
एनआरएचएम के निविदा कर्मियों का संघर्ष / अमित, इलाहाबाद
ऑटोमोबाइल सेक्टर के मज़दूरों के बीच माँगपत्रक आन्दोलन की शुरुआत
मज़दूर आंदोलन की समस्याएं
संशोधनवादियों के लिए कार्ल मार्क्स की प्रासंगिकता! / मनजीत चाहर, रोहतक, हरियाणा
विरासत
क्रान्तिकारी सोवियत संघ में स्वास्थ्य सेवाएँ / मुनीश मैन्दोला
बुर्जुआ जनवाद – दमन तंत्र, पुलिस, न्यायपालिका
हत्यारे वेदान्ता ग्रुप के अपराधों का कच्चा चिट्ठा / पराग वर्मा
कला-साहित्य
सच और साहस – दो दाग़िस्तानी क़िस्से / रसूल हमज़ातोव
कविता : हत्यारों की शिनाख़्त / लेस्ली पिंकने हिल
आपस की बात
मज़दूर बिगुल अख़बार को घर-घर पहुँचाने की ज़रूरत है / राहुल, चिडी, रोहतक, हरियाणा
मज़दूरों की कलम से
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बुर्जुआ अख़बार पूँजी की विशाल राशियों के दम पर चलते हैं। मज़दूरों के अख़बार ख़ुद मज़दूरों द्वारा इकट्ठा किये गये पैसे से चलते हैं।
मज़दूरों के महान नेता लेनिन