हरियाणा के नगर पालिका, नगर निगम और नगर परिषदों के कर्मचारी हड़ताल पर

बिगुल संवाददाता

पूरे हरियाणा में ही नगर पालिका-नगर निगम और नगर परिषदों से जुड़े हज़ारों कर्मचारी हड़ताल पर चले गये हैं। यह रिपोर्ट लिखे जाने तक हड़ताल अपने 8वें दिन में प्रवेश कर चुकी है। हरियाणा की नगर पालिकाओं, नगर निगमों और नगर परिषदों में क़रीबन 30-32 हज़ार कर्मचारी हैं। इन कर्मचारियों में पक्के कर्मचारियों की संख्या बेहद कम है; ज़्यादातर कच्चे, डीसी रेट पर, ऐडहॉक पर तथा ठेके पर हैं। ये कर्मचारी विभिन्न प्रकार के कामों को सम्हालते हैं। इनमें विभि‍न्न तरह के कर्मचारी हैं जैसे सफ़ाईकर्मी, माली, लिपिक, बेलदार, चौकीदार, चपरासी, अग्निशमन सम्हालने वाले, स्वास्थ्यकर्मी, इलेक्ट्रिशियन, ऑपरेटर इत्यादि। कर्मचारी ज़्यादा कुछ नहीं माँग रहे हैं। उनकी माँग बस यही है कि हरियाणा की भाजपा सरकार ने अपने चुनावी घोषणापत्र में कर्मचारियों के लिए जो वायदे किये थे, उन्हें वह पूरा करे।

ज्ञात हो कि केन्द्र की तरह राज्य स्तर पर भी भजपा ने जनता से लोकलुभावन वायदे किये थे। सरकार बनने के चार साल बाद चुनावी घोषणापत्र गपबाजियों से भरे हुए पुलिन्दे प्रतीत हो रहे हैं। अब जबकि हरियाणा में सरकार को बने हुए 4 साल होने को हैं, तो आम जनता का सरकार की नीतियों और कारगुजारियों पर सवाल खड़े करना लाज़िमी है। भाजपा ने कच्चे कर्मचारियों को पक्का करने, वेतन बढ़ाने, सुविधाएँ देने, हर साल लाखों नये रोज़गार सृजित करने जैसे सैकड़ों वायदे कर्मचारियों से किये थे। किन्तु अब भाजपा के नेता कान में रुई-तेल डालकर सो रहे हैं। किये गये वायदे पूरे करना तो दूर कर्मचारियों के आर्थिक हालात और भी खस्ता करने पर भाजपा सरकार कटिबद्ध दिखायी दे रही है। हर विभाग को धीरे-धीरे ठेकेदारों के हाथों में सौंपा जा रहा है। हरियाणा लोक सेवा चयन आयोग से लेकर तमाम विभागों में घपलों-घोटालों का बोलबाला है। हर जगह की तरह हरियाणा में नगर निगम, नगर पालिका और नगर परिषद के तहत आने वाले सफ़ाई कर्मचारियों के हालात सबसे खस्ता हैं।

बिगुल की टीम के सदस्य जब रोहतक में हड़तालरत कर्मचारियों के बीच गये तो उन्होंने कई अन्दर की बातें सामने रखीं। एक ठेकेदार के तहत काम करने वाले सफ़ाई कर्मचारी ने नाम न बताने की शर्त पर बताया कि ठेकेदार मनमाने ढंग से पैसे काटकर तनख्वाह देता है। ठेकेदार के तहत काम करने वाले सफ़ाई कर्मचारी को महीने में कुल दो दिन का आराम मिलता है, जबकि असल में साप्ताहिक अवकाश होना चाहिए। 2 दिन से अधिक यदि कोई सफ़ाईकर्मी काम पर नहीं जाता, तो ठेकेदार 300 के हिसाब से प्रत्येक दिन की राशि अपनी जेब में डाल लेटा है। वहीं विभाग में 14-15 सालों से भी बहुत से कच्चे कर्मचारी काम कर रहे हैं। स्थायी प्रकृति के काम में ठेकेदारी प्रथा और कच्चे काम को ख़ुद भारत के संविधान का 1971 एक्ट नकारता है, किन्तु यहाँ पर धड़ल्ले से इस क़ानून की धज्जियाँ ख़ुद सरकारें उड़ाती हैं। एक तरफ़ न्यायालय समान काम के लिए समान वेतन की बात करता है, दूसरी तरफ़ समान काम करने वाले श्रमिकों की आय और सुवि‍धाओं में ज़मीन-आसमान का अन्तर होता है। हरियाणा में सफ़ाई कर्मचारियों को झाड़ू भत्ते के नाम 5 रुपये थमा दिये जाते हैं। अब यह सोचने की बात है कि 5 रुपये में आज के समय में क्या आता है!

भाजपा एक तरफ़ स्वदेशी का राग अलापती नहीं थकती, दूसरी और सफ़ाई तक का ठेका विदेशी कम्पनियों को दे रही है। ये कम्पनियाँ देसी ठेकेदारों से साँठ-गाँठ करके न केवल कर्मचारियों का मनमाना शोषण करती हैं, बल्कि नागरिकों से भी मनमाने पैसे ऐंठती हैं। स्मार्ट सिटी विकसित करने का कार्यक्रम भी पूरी तरह से हर चीज़ को बिकाऊ माल में तब्दील करने का कार्यक्रम है। हरियाणा के नगर पालिका, नगर परिषदों और नगर निगमों के तहत यानी प्रदेश के 80 शहरों और 6,754 गाँवों में क़रीबन 25 हज़ार सफ़ाई कर्मचारी काम करते हैं। हरियाणा की ढाई करोड़ आबादी के लिहाज़ से आबादी के अनुपात में 62 हज़ार सफ़ाई कर्मचारी होने चाहिए। सरकार के स्वच्छ भारत अभियान के ढोंग की असलियत यहीं पर जनता के सामने आ जाती है। साफ़-सुथरी जगह पर झाड़ू लेकर फ़ोटो खिंचा लेना एक बात है और हर रोज़ गन्दगी, बदबू, सड़ान्ध से जूझ रहे कर्मचारियों को मूलभूत सुविधाएँ देना दूसरी बात है। बिना दस्तानों, मास्क, बूट, सुरक्षा उपकरणों के चलते कितने ही कर्मचारी बीमारी का शिकार होते हैं तथा बिना पर्याप्त सुरक्षा उपकरणों के कितने ही ज़हरीली गैस के कारण अपनी जान से ही हाथ धो बैठते हैं।

सफ़ाई कर्मचारियों के अतिरिक्त निगम में काम करने वाले माली, लिपिक, बेलदार, चौकीदार, चपरासी, अग्निशमन सम्हालने वाले, स्वास्थ्यकर्मी, इलेक्ट्रिशियन, ऑपरेटर इत्यादि के हालात भी बुरे हैं। ज़्यादातर या तो डीसी रेट पर एेडहॉक काम करते हैं या फिर ठेकेदारी प्रथा के तहत। आज चुनावी पार्टियों और ठगों, लुटेरों में कोई फ़र्क़ नहीं रह गया है। चुनाव से पहले मनमाने चुनावी जुमले उछालो और फिर उन जुमलों को अपने कानों में ठूँस लो और सरकार बनने के बाद दिल खोलकर लुटेरी नीतियों को लागू करो। फिर जनता को जाति-धर्म-आरक्षण के नाम पर लड़ाओ! हरियाणा में भी यही हो रहा है। बहुत से विभागों में ठेकेदारी प्रथा की शुरुआत करने वाली हरियाणा की भूपेन्द्र सिंह हुड्डा वाली सरकार थी, किन्तु अब हुड्डा साहब बहती गंगा में हाथ धोने के मक़सद से यह वायदा कर रहे हैं कि कांग्रेस की सरकार बनतेे ही “वे” कच्चे कर्मियों को पक्का कर देंगे और ठेकेदारी प्रथा समाप्त कर देंगे!

फ़िलहाल हरियाणा में नगर पालिका कर्मचारी संघ, हरियाणा कर्मचारियों की हड़ताल का नेतृत्व कर रहा है। जोकि सर्व कर्मचारी संघ, हरियाणा से सम्बन्ध रखता है। निश्चित तौर पर हरियाणा में कर्मचारियों ने लम्बे और जुझारू संघर्ष लड़े हैं किन्तु उसके बावजूद भी सरकारें और पूँजीपति वर्ग कर्मचारी विरोधी नीतियाँ लागू करने में आगे क़दम बढ़ाते रहे हैं। देश की तरह हरियाणा की भी कर्मचारियों की यूनियनों और संगठनों में अर्थवाद पूरी तरह से हावी रहा है। वेतन-भत्ते की लड़ाई ही प्रमुखता से लड़ी गयी तथा वे भी बिना ढंग के राजनीतिक नेतृत्व के समझौतापरस्त ढंग से ही लड़ी जायेंगी। मज़दूर और कर्मचारी वर्ग को मेहनतकश वर्ग के इतिहास से प्रेरणा लेते हुए ऐसे समाज के निर्माण को अपने दूरगामी लक्ष्य के तौर पर सुनिश्चित करना होगा, जिसमें एक इंसान के द्वारा दूसरे इंसान का शोषण असम्भव हो जाये। कहने को हड़तालों के दौरान क्रान्तिकारी नारे तो ख़ूब सुनायी देते हैं, किन्तु आर्थिक संघर्षों से अलग क्रान्तिकारी शिक्षा-दीक्षा का नितान्त अभाव दृष्टिगोचर होता है। मज़दूर वर्ग का क्रान्तिकारी इतिहास कहीं न कहीं नज़रों से ओझल है। हमारा यह स्पष्ट मानना है कि केवल आर्थिक संघर्ष ज़रूरी होने के बावजूद मात्र इन संघर्षों से काम नहीं चल सकता और आर्थिक संघर्ष भी जुझारू तरीक़े से तभी लड़े जा सकते हैं, जब नेतृत्व राजनीतिक तौर पर सचेत हो।

फ़िलहाल हरियाणा के नगर पालिका, नगर परिषदों और नगर निगमों के कर्मचारियों की हड़ताल जारी है। इसका क्या परिणाम निकलता है यह फ़िलहाल भविष्य के गर्भ में है।

 

मज़दूर बिगुल, मई 2018


 

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