आईएमटी रोहतक की आइसिन कम्पनी के मज़दूरों के संघर्ष की रिपोर्ट
बिगुल संवाददाता (रोहतक, हरियाणा)
आइसिन ऑटोमोटिव हरियाणा मज़दूर यूनियन के नेतृत्व में लड़े गये आइसिन के मज़दूरों के संघर्ष को विगत 3 मई 2018 को एक साल पूरा हो गया। ज्ञात हो, आइसिन ऑटोमोटिव हरियाणा प्राइवेट लिमिटेड नामक कम्पनी जोकि एक जापानी मालिकाने वाली कम्पनी है। आईएमटी रोहतक, हरियाणा में स्थित है। यह कम्पनी ऑटोमोबाइल सेक्टर की एक वेण्डर कम्पनी है, जोकि ख़ासतौर पर मारुति, होण्डा, टोयोटा इत्यादि कम्पनियों के लिए ऑटो पार्ट जैसेकि डोर लॉक, इनडोर-आउटडोर हैण्डल इत्यादि बनाने का काम करती है। अत्यधिक कार्यभार (वर्कलोड), बेहद कम मज़दूरी, मैनेजमेण्ट द्वारा गाली-गलौच और बुरा व्यवहार, श्रम क़ानूनों का हनन, स्त्री श्रमिकों के साथ छेड़छाड़ की घटनाएँ आदि वे मुद्दे थे जिन्होंने आइसिन के मज़दूरों को एकजुट होने की ज़रूरत का अहसास कराया। मज़दूरों ने धीरे-धीरे आपसी संवाद स्थापित किया और ट्रेड यूनियन एक्ट 1926 के तहत श्रम विभाग में यूनियन पंजीकरण की फ़ाइल लगा दी। थोड़ा ही समय हुआ था कि ख़ुद श्रम विभाग द्वारा मैनेजमेण्ट के कानों तक यह ख़बर पहुँच गयी और बड़े ही शातिराना अन्दाज़ में मैनेजमेण्ट श्रम विभाग से साँठ-गाँठ करके पंजीकरण फ़ाइल को रद्द कराने में जुट गयी। क़रीब एक महीने तक मज़दूर कम्पनी गेट पर जमे रहे, उसके बाद मैनेजमेण्ट ने प्रशासन के साथ मिलकर मज़दूरों, अभिभावकों और कार्यकर्ताओं पर लाठीचार्ज करवा दिया और 426 को जेलों में ठूँस दिया गया और झूठे मुक़दमों में फँसा दिया गया। जमानत के बाद भी श्रमिकों ने लड़ना नहीं छोड़ा और धरने-प्रदर्शन के साथ-साथ कोर्ट-कचहरी का रास्ता अपनाया।
स्थानीय प्रशासन, स्थानीय नेताओं, श्रम विभाग के छोटे से लेकर बड़े अधिकारियों यानी हर किसी के दरवाज़े पर मज़दूरों ने दस्तक दी, किन्तु न्याय मिलने की बजाय हर जगह से झूठे दिलासे ही मिले। अब मज़दूर आबादी को तो हर रोज़ कुआँ खोदकर पानी पीना पड़ता है, तो कब तक धरना जारी रहता! आख़िरकार क़रीब 3 महीने के धरने-प्रदर्शन के बाद आइसिन के मज़दूरों का आन्दोलन क़ानूनी रूप से केस-मुक़दमे जारी रखते हुए धरने के रूप में ख़त्म हो गया। ज़्यादातर ठेके, ट्रेनी और अन्य मज़दूर काम की तलाश में फिर से भागदौड़ के लिए मजबूर हो गये। कम्पनी में ठेके पर नयी भर्ती फिर से कर ली गयी और उत्पादन बदस्तूर जारी है। अब कोर्ट-कचहरी में मज़दूरों को कितना न्याय मिला है, सामने है ही; और आइसिन के श्रमिकों को कितना मिलेगा, यह भी सामने आ ही जायेगा। और देर-सवेर कोर्ट के माध्यम से कुछ होता है तो भी ‘देरी से मिलने वाला न्याय’; न्याय नहीं समझा जा सकता!
इस बीच आइसिन के मज़दूरों के लिए एक सकारात्मक पहलू यह है कि जि़ला अदालत में 426 श्रमिकों, परिजनों और मज़दूर कार्यकर्त्ताओं पर चल रहे मुक़दमे में 412 को सिविल जज के द्वारा बाइज्जत बरी कर दिया गया। अब यह फ़र्जी केस 12 अगुआ श्रमिकों पर ही चलेगा और इसमें भी नीयत वही परेशान करने वाली ही है। यह तो पहले से ही स्पष्ट था कि इस मामले में कम्पनी प्रबन्धन और स्थानीय प्रशासन के द्वारा मज़दूरों को जानबूझकर फँसाया गया था, इसलिए देर-सवेर बरी होना तो निश्चित था ही! मज़दूरों के द्वारा कम्पनी प्रबन्धन पर किये गये कोर्ट केस पिछले क़रीब एक साल से चल रहे हैं, यह बात शीशे की तरह साफ़ है कि मज़दूर पूरी तरह निर्दोष हैं और कम्पनी प्रबन्धन सरासर दोषी है। फिर भी कम्पनी मालिक और प्रबन्धन पर कार्रवाई नहीं हो रही है। श्रम क़ानूनों को कम्पनी प्रबन्धन अपनी ठोकर पर समझता है। कारण साफ़ है कि कम्पनी के पास पैसे की तो कोई कमी है नहीं! श्रम विभाग और स्थानीय प्रशासन के कम्पनी प्रबन्धन के पक्ष में रवैये से तो यही लगता है कि दाल में कुछ काला ज़रूर है। फिर भी क़ानूनी पचड़े में कम्पनी को आर्थिक नुक़सान और सिरदर्दी तो होती ही है, तो अब कम्पनी प्रबन्धन फ़ोन कर-करके मज़दूरों को नये सिरे से ‘ज्वाॅइन’ करने का लुकमा फेंक रहा है। किन्तु नये सिरे से ‘ज्वाॅइन’ करने का मतलब है नये सिरे से शुरुआत करना और पिछले कई साल तक किये गये काम का कोई मोल नहीं! सीधी सी बात है श्रमिक इस शर्त पर ‘ज्वाॅइनिंग’ क्यों करने लगे? श्रमिकों का कहना है कि नौकरी मिले तो सभी को मिले और वह भी पुराने रोल पर ही।
विगत 3 मई को आइसिन के मज़दूरों के संघर्ष को एक वर्ष पूरा होने के अवसर पर तथा साथ ही मई दिवस के शहीदों को याद करने के मक़सद से आइएमटी गेट पर एक कार्यक्रम का भी आयोजन किया गया था। इस दौरान आयोजित सभा को विभिन्न संगठनों के प्रतिनिधियों ने सम्बोधित किया। यूनियन के प्रधान जसबीर और महासचिव अनिल ने अब तक के कोर्ट में चल रहे मामलों की रिपोर्ट प्रस्तुत की। सभा में बिगुल मज़दूर दस्ता की तरफ़ से इन्द्रजीत ने भी बात रखी। अपनी बात में इन्द्रजीत ने आर्थिक माँगों के तहत आन्दोलन संगठित करने की ज़रूरत को तो सामने रखा ही, साथ ही उन्होंने कहा कि मज़दूर वर्ग का ऐतिहासिक दूरगामी लक्ष्य राजनीतिक सत्ता हासिल करना है। ताकि ऐसा करके मज़दूरी की व्यवस्था को चकनाचूर किया जा सके और एक समतामूलक, शोषणविहीन समाज बनाया जा सके। उन्होंने कहा कि अलग-अलग सेक्टरों में चल रहे मज़दूर आन्दोलनों की समस्याओं को समझते हुए इन्हें रचनात्मक ढंग से खड़ा करना होगा। आज सेक्टरगत और इलाक़ाई यूनियनें वक़्त की ज़रूरत हैं। इसका कारण स्पष्ट है कि आज फ़ोर्डिस्ट असेम्बली लाइन की बजाय ग्लोबल असेम्बली लाइन का अस्तित्व है। मज़दूरों को बिखरा दिया गया है। ठेके, पीस रेट, कैजुअल, अपरेण्टिस और अस्थाई श्रमिकों से अधिकतर काम लिया जाता है। मज़दूर हितों के लिए आज सेक्टरगत और इलाक़ाई यूनियनें अधिक कारगर ढंग से लड़ सकती हैं। एक-एक कारख़ाने के धरातल पर आज मालिक-प्रशासन और पूँजीवादी तन्त्र का गँठजोड़ मज़दूरों पर हावी पड़ता है। यह बात पिछले क़रीब 30 साल के अनुभवों से साफ़ है।
उन्होंने आगे कहा कि हमारे संघर्ष दो क़दमों पर चलेंगे। आर्थिक संघर्ष; जिनमें काम के घण्टे, ईएसआई, ईपीएफ़, न्यूनतम मज़दूरी, सुरक्षा के समुचित इन्तज़ाम, बोनस, वेतन-भत्ते, रोज़गार इत्यादि से जुड़ी माँगों के लिए हमें आन्दोलन संगठित करने होंगे। देश-दुनिया के कोने-कोने में मज़दूर वर्ग अपने आर्थिक संघर्ष लड़ भी रहा है, किन्तु अधिकतर जगह पर नेतृत्व समझौतापरस्त है। मज़दूर आन्दोलन में आज अर्थवाद करने वाले और 20-30 परसेण्ट की दलाली खाने वाले हावी हैं। इनसे पीछा छुड़ाकर स्वतन्त्र नेतृत्व विकसित करना आर्थिक संघर्षों की जीत की भी पहली शर्त है। मज़दूर वर्ग का असल संघर्ष उसका राजनीतिक संघर्ष है, जो एक शोषणविहीन-समतामूलक समाज व्यवस्था के लिए होने वाला संघर्ष है जिसमें एक इंसान के द्वारा दूसरे इंसान का शोषण न हो सके। मज़दूर वर्ग पूँजीवादी व्यवस्था को उखाड़ फेंककर तथा समाजवादी व्यवस्था क़ायम करके ही ऐसा कर सकता है। जब तक पूँजीवाद रहेगा तब तक होने वाले आर्थिक संघर्ष तो साँस लेने के समान हैं, किन्तु असल लड़ाई शोषण के हर रूप के ख़ात्मे के लिए होनी चाहिए। मई दिवस का सच्चा सन्देश यही है कि हम अपने शानदार अतीत से प्रेरणा लेकर भविष्य की दिशा का सन्धान करें। मई दिवस के शहीदों को भी हमारी यही सच्ची श्रद्धांजलि हो सकती है!
मज़दूर बिगुल, मई 2018
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मज़दूरों के महान नेता लेनिन