केजरीवाल सरकार के मज़दूर और ग़रीब विरोधी रवैये के ख़िलाफ़ आँगनवाड़ी महिलाकर्मियों ने उठायी आवाज़!
बिगुल संवाददाता, दिल्ली
दिल्ली में पिछले दिनों हज़ारों आंगनवाड़ी कर्मियों की ऐतिहासिक हड़ताल हुई थी जिसकी रिपोर्टें मज़दूर बिगुल में भी छपती रही हैं। 60 दिन तक चली इस हड़ताल में संघर्षशील महिला कर्मियों ने अन्ततः केजरीवाल सरकार को घुटनों के बल ला दिया था। शुरू से ही यूनियन विरोधी रवैये को लागू करने वाली तथा यूनियन नेतृत्व को नकारने वाली दिल्ली सरकार को आख़िरकार गजट आर्डर ज़ारी कर मानदेय बढ़ोत्तरी की बात पुष्ट करनी पड़ी थी। गौरतलब है कि खुद को आम जनता का मुख्यमंत्री बताने वाले केजरीवाल ने यह आर्डर तभी जारी किया जब महिलाकर्मियों ने अपनी यूनियन ‘दिल्ली स्टेट आंगनवाड़ी वर्कर्स एंड हेल्पर्स यूनियन’ के नेतृत्त्व में 60 दिनों तक लगातार अपनी हड़ताल जारी रखी। इसके बाद केजरीवाल सरकार ने बड़ी बेशर्मी से सारा श्रेय अपनी झोली में डाल कर सोशल मीडिया व अन्य प्रचार माध्यमों से मानदेय बढ़ोत्तरी के लिए अपनी पीठ थपथपाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
लेकिन अब हाल में दिल्ली सरकार ने आंगनवाड़ी महिलाकर्मियों को प्रताड़ित करने के लिए आंगनवाड़ी परियोजना में छंटनी की प्रक्रिया शुरू कर दी है। हड़ताल के बाद से दिल्ली के करावल नगर, निजामुद्दीन, कल्याणपुरी, तिलक विहार, मंगलापुरी, सागरपुर, बदरपुर, डाबरी आदि प्रोजेक्टों में ऐसे मसले सामने आए हैं जहाँ बिना किसी वाजिब कारण के महिलाकर्मियों को निकाला जा रहा है तथा परेशान किया जा रहा है। यह साफ़ है कि सरकार निरीक्षण और सुधार के नाम पर अन्यायपूर्ण तरीके से आंगनवाड़ी महिलाकर्मियों को निकालने के बहाने तलाश रही है। केजरीवाल सरकार ने नयी जांच कमिटियों का निर्माण किया है जिसमें आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता बाकयदा कमिटी के कर्त्ता-धर्त्ता बने घूम रहे हैं और इन जाँच समितियों में आम जनता के प्रतिनिधि कहीं नज़र नहीं आते। अब सवाल यह भी बनता है कि सरकारी काम में दखल देना किसी चुनावी पार्टी के कार्यकर्त्ता किस हैसियत से कर रहे हैं?! वहीं आंगनवाड़ी में सुधार-कार्य के नाम पर जो निरीक्षण हो रहे हैं उनमें पहले यह सवाल क्यों नहीं उठाया जाता कि आंगनवाड़ियों में जो सुविधा दी जाती हैं, जो खाना बाँटा जाता है उसकी गुणवत्ता का कोई मानक, कोई स्तर ही नहीं है। एक ओर केजरीवाल सरकार सर्दियों के मौसम के नाम पर स्कूलों को बंद कर रही है जबकि दूसरी ओर आंगनवाड़ी में 5 साल तक के बच्चों को बिना किसी इंतज़ाम के सुबह 9 बजे बुलाने के लिए मजबूर कर रही है। मसला यह भी है कि अगर जांच और ‘चेकिंग’ करनी ही है तो फिर इसकी शुरुआत इस योजना के कर्त्ता-धर्त्ताओं से होनी चाहिए, यानी कि, खुद मंत्री-महोदय के कार्यालय और इस स्कीम में लगे तमाम अफसर तथा खाना बनाने के काम में लगे एनजीओ से शुरू होनी चाहिए। जो मिलकर हर महीने करोड़ों के घपले-घोटाले करते हैं।
इस योजना में सबसे निचले पायदान पर कार्यरत कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं को बलि का बकरा बनाकर केजरीवाल सरकार इस स्कीम में अपने द्वारा किये जा रहे भ्रष्टाचार पर पर्दा डालते हुए महिलाकर्मियों के कन्धों पर रख कर बन्दूक चला रही है। ये कोई छिपी हुई बात नहीं है कि इस योजना में लगे एनजीओ का, प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से, आम आदमी पार्टी से सम्बन्ध है। खुद को आम आदमी का हिमायती कहने वाले केजरीवाल ने यह साबित कर दिया है कि उसकी सरकार के ख़िलाफ़ अगर आवाज़ उठाई जायेगी तो उस आवाज़ को दबाने के लिए वो किसी भी हद तक जा सकते हैं। हड़ताल के दौरान यूनियन को तोड़ने के प्रयास से लेकर हड़ताल के बाद महिलाकर्मियों पर दंडात्मक करवाई करने तक कोई कसर नहीं छोड़ेगी।
ज्ञात हो कि आंगनवाड़ी योजना की शुरुआत 1975 में केंद्र सरकार द्वारा गरीब घरों की महिलाओं और बच्चों को पौष्टिक आहार और प्री-स्कूल की शिक्षा प्रदान करने के लिए की गई थी। हालांकि हम जानते हैं कि इस स्कीम के तहत मिलने वाला भोजन पौष्टिक तो दूर खाने लायक भी नहीं है। जो पैसा और संसाधन बच्चों-महिलाओं के भोजन तथा अन्य ज़रूरतों पर खर्च होना चाहिए वो तो तमाम नेता-मंत्री-विधायकों की जेब में चला जाता है। साथ ही, इस योजना में लगे एनजीओ भी हर महीने करोड़ों डकार जाते हैं। दिल्ली में कांग्रेस के समय के भ्रष्टाचार में आम आदमी पार्टी की सरकार ने ज़बरदस्त इजाफा किया है। पहले जो खाना मिलता था वह सूखा था तो बच्चे उसे खा भी लेते थे। लेकिन अब जो खाना बच्चों को परोसा जा रहा है वह तो जानवरों को भी नहीं दिया जा सकता। अरविन्द केजरीवाल और मनीष सिसोदिया एक दिन यह खाना खुद खा लें तो इसकी असलीयत समझ जायेंगे!
आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं द्वारा जब कभी भी खाने की गुणवत्ता से लेकर संसाधनों की कमी के मामलों को विभाग के अधिकारियों के संज्ञान में लाया जाता है तो महिलाकर्मियों को नौकरी से निकल दिए जाने की धमकी दी जाती है। कई कार्यकर्ताओं व सहायिकाओं को इस भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाने के कारण काम से भी निकाल दिया गया है। मतलब साफ़ है, सरकार चाहती है कि वर्कर और हेल्पर चुपचाप तमाशबीन बनी रहें और जब निरीक्षण की बारी आये तो बलि का बकरा इन्हें ही बना दिया जाए।
अन्त में छंटनी का यह मसला सिर्फ़ राज्य सरकार का नहीं, बल्कि केंद्र का भी इसमें बड़ा हाथ है। सरकार की पूरी कोशिश है की इस योजना को बंद कर निजी हाथों में सौंप दिया जाए। मोदी सरकार की मजदूर-विरोधी नीतियाँ कोई नई बात नहीं है। भाजपा के सत्ता में आने के बाद से ही श्रम कानूनों में बड़े पैमाने में बदलाव किये गये हैं। और इसका असर आंगनवाड़ी से जुड़ी स्कीमों पर भी नज़र आने लगा है।
इन्हीं सब समस्याओं ले मद्देनज़र ‘दिल्ली स्टेट आंगनवाड़ी वर्कर्स एंड हेल्पर्स यूनियन’ की तरफ से 7 जनवरी को यूनियन की आम बैठक और 10 जनवरी को ‘आंगनवाड़ी जन-सुनवाई’ का आयोजन किया गया। इन दोनों कार्यक्रमों में सामूहिक तौर पर तय की गयी योजना के अनुसार पर्चा निकाल कर केजरीवाल सरकार की इस मजदूर और ग़रीब जनता विरोधी नीति को दिल्ली भर की जनता के सामने बेनकाब करने का फैसला लिया गया था। जन-सुनवाई के दौरान वर्कर और हेल्पर को प्रताड़ित किये जाने के कई मसले सामने आये। यूनियन की तरफ से दिल्ली के अलग अलग इलाकों में इस प्रक्रिया के ख़िलाफ़ पर्चा निकाल कर आम जनता से अपील की गयी है की इस फैसले के विरोध में वो भी साथ आयें, क्योंकि आंगनवाड़ी परियोजना के बन्द होने का असर न सिर्फ महिलाकर्मियों और उनके परिवारों पर होगा, बल्कि उन बच्चों और महिलाओं पर भी होगा जो इस योजना के तहत आते हैं। 10 तारीख़ तो तय किये गये कार्यक्रम के अनुसार 15 जनवरी को दिल्ली सरकार के महिला एवं बाल विकास विभाग के सामने चेतावनी प्रदर्शन किया गया। यूनियन प्रतिनिधिमण्डल ने विभाग की निदेशिका के सामने कई मांगें रखीं। जिसके बाद विभाग ने एक महीने के अन्दर ‘टर्मिनेट’ की गयी महिलाकर्मियों के फाइलों की दोबारा जांच करने का, निरीक्षण की प्रक्रिया को ज्यादा पारदर्शी बनाने का आश्वसान दिया। प्रतिनिधि मण्डल ने यह भी मांग की कि महिलाकर्मियों को बेवजह तंग न किया जाये, जांच समितियों में आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं की दखलंदाज़ी बंद की जाए, तथा ख़राब गुणवत्ता के ज़िम्मेदार एन.जी.ओ. को दण्ड देते हुए बच्चों के लिए गुणवत्तापूर्ण भोजन का इन्तजाम किया जाये। वर्ना केजरीवाल सरकार की साजिश को नाकाम करने के लिए आंगनवाड़ी कर्मी पुनः कमर कसने के लिए तैयार हैं।
मज़दूर बिगुल, जनवरी 2018
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