मालिक की मिठास के आगे ज़हर भी फेल
आनन्द, बादली, दिल्ली
बात ऐसे मालिकों की है जो बिल्कुल परजीवी (दूसरों की मेहनत पर ज़िंदा रहने वाला) हो चुके हैं। मगर फिर भी उन्हें इस बात का सुकून है कि दुनिया में आज भी इज्ज़तदार लोगों के लिए जगह है। ऐसे ही एक मालिक से आपको मिलवाते हैं।
इनका नाम सुरजीत है। डोली एण्टरप्राइजेज के मालिक, पता-खसरा न. बी-23/8 व बी-23/9 रेलवे रोड, समयपुर, दिल्ली-42 । इनकी फ़ैक्ट्री में चूरन, हाजमोला आदि बनता है। ये इतने सीधे इन्सान हैं कि उनके आगे गाय की सिधाई भी फेल हो जाए। अगर आपको उदाहरण देना हो तो आप कह सकते हैं कि भाई फलानी फ़ैक्ट्री के मालिक से सीधा इन्सान दुनिया में कोई न होगा। गाड़ी खड़ी करते ही सीधा जाकर चीनी पीसने लगेंगे, ऑयलर से ट्रॉली निकालकर हाजमोला का मसाला चेक करने लगेंगे। बाहर वाला कोई व्यक्ति यह नहीं कह सकता कि यही मालिक हैं। सारे मज़दूर उनसे खुश रहते हैं। और सारे मज़दूरों से ज़्यादा काम भी खुद ही करते हैं। हाँ, ये बात अलग है कि रजनीगन्धा पान मसाला 100 ग्राम शीशी 140 रुपए कीमत की दिनभर में चट कर जाते हैं। विल्स क्लासिक का 20 सिगरेट वाला पैकेट दिनभर में लगभग तीन पी जाते हैं। मगर फिर भी बड़ा मृदुभाषी व्यक्ति है। मैंने पूछा भाई साहब यह क्या है। बोले, बेटा यह पिसी चीनी, यह आमचूर पाउडर, यह सिट्रिक एसिड, यह लाल रंग और बेर का पाउडर, ये सब जब एक साथ मिला देंगे तो चूरन बन जाएगा, बेचने लायक। एक बात ध्यान रखना बेटा कि काम आराम से करो, भले ही कम हो मगर चोट न आने पाए। वाह, उस महान आत्मा की दिल की बात सुनकर दिल गदगद हो गया। मगर भाई दिखने में ये जितने सीधे लगते हैं, दिल के उतने ही कुत्ते इंसान हैं। इन्होंने सुनीता वर्मा (नत्थूपुरा की रहने वाली) को सिर्फ़ इसलिए निकाल दिया कि वे कभी-कभार आने में लेट हो जाती हैं। इसी मसले पर एक दिन सुपरवाइज़र से नोक-झोंक हो गयी थी। सुनीता वर्मा गिड़गिड़ाती रही कि मेरे छोटे बच्चे हैं, मत निकालिए। मगर कोई असर नहीं हुआ। यही नहीं, जब कोई काम छोड़कर जाता है तो उसका पैसा मारने में कोई कसर नहीं छोड़ते। इसके लिए कुछ ही उदाहरण पर्याप्त होंगे –
1. गोविन्द ने 11 दिन काम किया और उसके बाद भारी काम होने की वजह से छोड़ दिया। काम पर रखते समय उसे 3700 रुपए महीना पगार देने की बात कही गई थी, लेकिन नौकरी छोड़ने पर 3500 रुपए महीना के अनुसार हिसाब किया गया और एक सण्डे का पैसा भी काट लिया।
2. अशोक कम पैसे मिलने के कारण काम छोड़ गया था। 6 जनवरी को काम पर लगा था और 31 जनवरी को छोड़ा, जिसमें पांच इतवार और 26 जनवरी की छुट्टी का पैसा काटकर उसका हिसाब किया गया।
3. आनन्द 1 दिसम्बर 2011 से काम पर लगा लेकिन भारी व गन्दा काम होने की वजह से 28 जनवरी को छोड़ दिया। चार इतवार और 26 जनवरी की छुट्टी का पैसा काटकर उनका हिसाब किया गया।
4. राजीव 7 जनवरी को (3800 रु महीने के हिसाब से) काम पर लगा, लेकिन काम भारी होने की वजह से 12 फरवरी को तनख्वाह लेकर काम छोड़ दिया। दोबारा हिसाब लेने गया तो बहुत डांट सुनाई और पिछले महीने की तनख्वाह (3500 रुपए के हिसाब से) 6 सण्डे और 26 जनवरी की छुट्टी का पैसा काटकर हिसाब करने का आश्वास दिया। अभी राजीव ने हिसाब नहीं लिया है, कहता है कि भाई ने काम पर लगवाया था। जब गांव से लौट आएगा तभी हिसाब करेंगे।
यह हालत हर फ़ैक्ट्री की है। मेरी उम्र ज़्यादा तो नहीं है, लेकिन पिछले 4 सालों में करीब 15 फ़ैक्ट्री में काम का अनुभव है। हर फ़ैक्ट्री का मालिक बड़ा मृदुभाषी मीठा दिखता है, मगर इनकी मिठास के आगे ”विष फेल” है।
मज़दूर बिगुल, मार्च 2012
‘मज़दूर बिगुल’ की सदस्यता लें!
वार्षिक सदस्यता - 125 रुपये
पाँच वर्ष की सदस्यता - 625 रुपये
आजीवन सदस्यता - 3000 रुपये
आर्थिक सहयोग भी करें!
बुर्जुआ अख़बार पूँजी की विशाल राशियों के दम पर चलते हैं। मज़दूरों के अख़बार ख़ुद मज़दूरों द्वारा इकट्ठा किये गये पैसे से चलते हैं।
मज़दूरों के महान नेता लेनिन