आपस की बात :लेखक को बधाई
अगस्त अंक का लेख – आज़ादी कूच के सन्दर्भ में.. एक सम्भावना-सम्पन्न आन्दोलन के अन्तर्विरोध और भविष्य का प्रश्न… शिशिर, पढ़ा। बहुत दिनों बाद इतना सुन्दर, सारगर्भित लेख पढ़ने को मिला इस विषय पर। गदगद हो गया। जिस बात ने मुझे सबसे ज़्यादा प्रभावित किया वो है सैद्धान्तिक स्तर पर ज़रा भी समझौता किये बग़ैर विनम्र बने रहना, ज्ञानी होने के अहंकार को पास ना फटकने देना। ‘कम्युनिस्टों’ के अन्दाज़-ए-बयाँ अम्बेडकर के मुद्दे पर हमेशा तिरस्कारपूर्ण रहे हैं, ये लेख बड़ा ही सुखद बदलाव है। जिग्नेश मेवानी में वे सम्भावनाएँ अभी नज़र आती हैं कि जाति तोड़ो आन्दोलन से वर्ग विहीन आन्दोलन की तरफ़ जा सकें, दूसरे रिपब्लिकन तो कब के पतन को प्राप्त हो चुके। अम्बेडकर के मूल्यांकन में ये एहतियात ख़ास तौर से क़ाबिले तारीफ़ है कि कोई अम्बेडकरवादी बिना बिदके कुछ ज़रूर सीख सकता है। विनम्रता को ख़ुशामद नहीं बनने दिया गया, ‘जय भीम लाल सलाम’ के आज के फै़शनेबुल नारे के लोभ से बचते हुए, वैचारिक स्पष्टता और तथ्यों को कहीं भी छुपाये बगै़र। वाह। मैं लेखक को बधाई देना चाहता हूँ। कई बार स्थान अभाव में कुछ विषयों को अतिरिक्त संक्षिप्त किया गया है। उम्मीद है अगले अंक में इस विषय को तरजीह देकर पूर्ण किया जायेगा।
विनम्र अभिवादन सहित,
– सत्यवीर सिंह
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मज़दूर बिगुल,सितम्बर 2017
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