गोरखपुर में ऑक्सीजन की सप्लाई रोकने से मासूमों की मौत
अब भी चेत जाओ वरना हत्यारों-लुटेरों का यह गिरोह पूरे समाज की ऑक्सीजन बन्द कर देगा!

 सम्पादक मण्डल

पिछले 11 अगस्त को, आज़ादी के 70 साल पूरे होने से चार दिन पहले, एक और भयानक घटना ने हमें याद दिलाया दिया कि हमें किस तरह की आज़ादी मिली है। एक दिन में 23 और पाँच दिनों में 79 मासूम बच्चे मौत की नींद सुला दिये गये, उसी अस्पताल में जहाँ उनके ग़रीब माँ-बाप उनकी ज़ि‍न्‍दगी बचाने के लिए उन्हें लेकर आये थे। मौतों का सिलसिला उसके बाद भी जारी रहा। यह कोई हादसा नहीं था, जैसाकि खूनसने हाथों वाले प्रधानमंत्री ने लाल किले के अपने भाषण में बड़ी आसानी से कह दिया। यह एक हत्या थी। मार्च से ही अस्‍पताल से मुख्यमंत्री सहित तमाम अधिकारियों को पत्र लिखे जा रहे थे कि कंपनी को भुगतान नहीं किया गया तो वह ऑक्सीजन रोक देगी। महज़ 67 लाख रुपये न चुकाने के कारण न जाने कितने परिवार सूने हो गये। मगर प्रदेश का मुखिया और उसका स्वास्थ्य मंत्री बेशर्मी से झूठ बोलते रहे और बच्चों की मौतों के लिए कभी गन्दगी तो कभी अगस्त महीने को ज़िम्मेदार ठहराते रहे।

यूरोप का कोई देश होता तो इतनी बड़ी घटना पर सरकार गिर गयी होती। लेकिन यहाँ तो इस हत्याकाण्ड पर परदा डालने की घिनौनी कोशिशें तुरन्त ही शुरू हो गयीं। अस्पताल को पुलिस छावनी बना दिया गया, बच्चों के परिजनों को उनके शवों का पोस्टमॉर्टम कराये बिना जल्दी-जल्दी वहाँ से घर भेज दिया गया। जिस डॉक्टर ने उस खूनी रात बच्चों की जान बचाने की पूरी कोशिश की थी, उसे ही निलम्बित कर दिया गया और आरएसएस की झूठ फैलाने की मशीनरी ने तमाम तरह के झूठ फैलाने शुरू कर दिये – इस बात का फ़ायदा उठाकर कि वह डॉक्टर मुसलमान था। हमारा समाज ऐसी शर्मनाक और डरावनी हालत में पहुँच चुका है कि ऐसे झकझोर देने वाले मामलों को भी ज़हरीले साम्प्रदायिक प्रचार की धुन्ध से झुठलाया जा सकता है। सरकारी जाँचों में डॉक्टर कफ़ील पर कोई इल्ज़ाम साबित न होने के बाद भी झूठ की फ़ैक्ट्री अपने गन्दे काम में लगी हुई है।

जिस लोकसभा क्षेत्र में ये घटना घटी है, वहाँ से पिछले 5 कार्यकाल में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ही सांसद रहे हैं। आम लोगों से ज़्यादा उन्हें गाय की चिन्ता दिखती है। पहली गोवंश चिकित्सा ‍मोबाइल एम्बुलेंस योगी ने यहीं शुरू की थी। यहीं पर मोदी ने 2014 में इन्सेफ़लाइटिस से मरने वाले बच्‍चों के लिए रुआँसे गले से शोक प्रकट किया था और सत्ता ‍में आने पर सब ठीक करने का सपना दिखाया था। इसी इन्सेफ़लाइटिस के विरोध में संघर्ष करने का ढोल बजाकर आदित्यनाथ ने सत्ता पायी। लेकिन ऑक्सीजन के लिए भाजपा की दोनों सरकारें 67 लाख रुपये की ज़रूरत पूरी नहीं कर सकी। उल्टा इस वर्ष के बजट में चिकित्सा शिक्षा का आवंटन घटाकर आधा कर दिया गया है। जान लें कि बीआरडी मेडिकल कॉलेज और अन्य सरकारी कॉलेजों को इसी मद में पैसे मिलते हैं। ऐसे 14 मेडिकल कॉलेजों और उनके साथ जुड़े टीचिंग अस्पतालों का बजट पिछले वर्ष के 2344 करोड़ से घटाकर इस वर्ष 1148 करोड़ कर दिया गया है। बीआरडी मेडिकल कॉलेज का आवंटन पिछले वर्ष 15.9 करोड़ से घटकर इस वर्ष केवल 7.8 करोड़ रह गया है। इतना ही नहीं, मशीनों और उपकरणों के लिए इसे मिलने वाली राशि पिछले वर्ष 3 करोड़ से घटाकर इस वर्ष केवल 75 लाख कर दी गयी है।  प्रदेश के तमाम राजकीय मेडिकल कॉलेजों में यही हुआ है। उदाहरण के लिए, कानपुर और इलाहाबाद के मेडिकल कॉलेजों का आवंटन 15.9 करोड़ से घटकर इस वर्ष क्रमश: 3.3 करोड़ और 4.2 करोड़ रह गया है। गोरखपुर मेडिकल कॉलेज के इंसेफलाइटिस वार्ड में कार्यरत 378 चिकित्सा कर्मियों (चिकित्सक, शिक्षक, नर्स व कर्मचारी) को मार्च 2017 से तनख्वाह नहीं मिली है व 11 पीएमआर कर्मचारियों को 27 महीने से वेतन नहीं मिला है।

इससे पहले जून में मध्यप्रदेश के इंदौर में भी ऑक्सीजन की आपूर्ति 15 मिनट के लिए बन्द होने से 2 बच्चों सहित 17 लोगों की मौत हो गयी थी। तब भाजपा ने मीडिया पर अपने नियंत्रण के दम पर इस बात को दबा दिया था।

याद कीजिये, गोरखपुर के मासूम बच्चों ने ऑक्सीजन बन्द होने से किस तरह घुट-घुटकर दम तोड़ा होगा। अगर अब भी आपके दिल में इन हत्यारों के प्रति नफ़रत और ग़ुस्सा नहीं फूट पड़ता, तो आपको इलाज की ज़रूरत है। वरना, अगर इंसान हैं, तो जाग जाइये, और इन आदमख़ोरों से अपने बच्चों को, अपने समाज को, अपने मुल्क को बचाने के लिए आवाज़ उठाइये!

 

मज़दूर बिगुल,अगस्त 2017


 

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