मज़दूर विरोधी आर्थिक सुधारों के खि़लाफ़ ब्राज़ील के करोड़ों मज़दूर सड़कों पर उतरे
रणबीर
मार्च के दूसरे हफ़्ते में ख़बर आयी थी कि ब्राज़ील के राष्ट्रपति माईकल टेमेर ने ‘‘भूतों’’ के डर से एल्वोरेड पैलेस (राष्ट्रपति का सरकारी घर) छोड़ दिया है। ‘‘बुरी आत्माओं’’ को भगाने के लिए पादरी बुलाये गये थे, लेकिन कोई फ़ायदा नहीं हुआ। आखि़र उसे यह आलीशान घर छोड़ना ही पड़ा। लेकिन लगता नहीं कि उसे सुकून मिल पायेगा। पूँजीपति वर्ग के इस कट्टर सेवक को ब्राज़ील का मज़दूर चैन की नींद नहीं सोने दे रहा। उसके पीछे पड़े ‘‘भूतों’’ से तो शायद कोई पादरी पीछा छुड़ा भी दे, लेकिन मज़दूर आन्दोलन उसका पीछा छोड़ने वाला नहीं।
ब्राज़ील की अर्थव्यवस्था पर मन्दी की काली घटा छाई हुई है। पूँजीपति वर्ग ने एक वर्ष पहले लेबर पार्टी की डिल्मा रूसेफ़ से सत्ता छीनकर माईकल टेमेर को सौंपी थी और सोचा था कि मन्दी का भूत छू-मन्तर कर देगा। टेमेर ने राष्ट्रपति पद सँभालते हुए वादा किया था कि अर्थव्यवस्था को मज़बूत करेगा। नवउदारवादी नीतियों का यह उपासक यह काम किस तरह करेगा यह तो शुरू से ही स्पष्ट था। पिछले एक वर्ष में उसका जनविरोधी चरित्र लगातार जगज़ाहिर होता गया है। लोगों में उसकी नीतियों के खि़लाफ़ रोष लगातार बढ़ता गया है।
28 अप्रैल 2017 को ब्राज़ील में इस देश की अब तक की सबसे बड़ी हड़ताल हुई है। सभी 26 राज्यों और फे़डर्ल जि़ले में हुई हड़ताल में साढ़े तीन करोड़ मज़दूरों ने हिस्सा लिया है। अगले दिनों में भी ज़ोरदार प्रदर्शन हुए हैं। मई दिवस पर बड़े आयोजन किये गये हैं। इन प्रदर्शनों में अनेकों जगहों पर पुलिस और प्रदर्शनकारियों में तीखी झड़पें हुई हैं। पुलिस ने जगह-जगह प्रदर्शनों को रोकने के लिए पूरा ज़ोर लगाया, लेकिन अधिकारों के लिए सड़कों पर उतरे मज़दूरों के सामने पुलिस की एक न चली। गोलीबारी, आँसू गैस, गिरफ़्तारियाँ, बैरीकेड – पुलिस ने मज़दूरों को रोकने के लिए बहुत कुछ अाज़माया, लेकिन मज़दूरों का सैलाब रोके कहाँ रुकता था। सड़कें जाम कर दी गयीं। पुलिस के बैरीकेड तोड़ फेंके गये। गाँवों में ट्रैक्टरों से गलियाँ बन्द कर दी गयीं। ‘‘भूतों’’ से पीछा छुड़ाते हुए टेमेर जिस नये घर में आया है, वहाँ ज़ोरदार प्रदर्शन हुआ। पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को रोकने की कोशिश की तो ज़बरदस्त पथराव के ज़रिये जवाब दिया गया।
इस हड़ताल में औद्योगिक मज़दूरों, रेल मज़दूरों, बस ड्राइवरों, अध्यापकों, सरकारी मुलाजिमों, नौजवानों आदि तबक़ों ने शमूलियत की है। 3 मई को जेलों के कर्मचारियों ने न्याय मन्त्रालय की इमारत पर क़ब्ज़ा कर लिया था।
टेमेर सरकार पेंशन प्रणाली और श्रम क़ानूनों में भारी मज़दूर विरोधी बदलाव करने जा रही है। रिटायरमेण्ट की न्यूनतम उम्र मर्दों के लिए 65 वर्ष और स्त्रियों के लिए 62 वर्ष की जा रही है। पहले यह स्त्रियों के लिए 55 और मर्दों के लिए 60 थी। पूरी पेंशन के लिए न्यूनतम कार्य अवधि 45 वर्ष तय की जा रही है। पहले यह अवधि शहरी मज़दूरो के लिए 25 वर्ष और ग्रामीण मज़दूरों के लिए 15 वर्ष थी। पेंशन प्रणाली में ऐसे प्रस्तावित बदलावों ने मज़दूरों को आक्रोश से भर दिया है। टेमेर सरकार का यह भी प्रस्ताव है कि सरकार के सार्वजनिक ख़र्च को 20 वर्ष के लिए स्थिर कर दिया जाये।
अन्य श्रम क़ानूनों में भी भारी बदलाव किये जा रहे हैं। मालिक-मज़दूर के बीच समझौतों को क़ानूनों के ऊपर मान्यता दी जा रही है। इससे कार्य-परिस्थितियाँ काफ़ी बिगड़ जायेंगी। मालिक मज़दूरों पर अपनी मर्ज़ी थोपने में और अधिक सक्षम हो जायेंगे। यह प्रस्ताव लाया जा रहा है कि अगर मालिक मज़दूरों के साथ अपना क़रार तोड़ता है तो मज़दूर को कोई मुआवज़ा नहीं मिलेगा। मालिक द्वारा दुर्व्यवहार पर मिलने वाले मुआवज़े को भी घटाया जा रहा है।
ब्राज़ील के इतिहास की यह सबसे बड़ी हड़ताल उस समय हुई है, जब यहाँ बेरोज़गारी ने सारे रिकाॅर्ड तोड़ फेंके हैं। इस समय इस देश में बेरोज़गारी दर 13.7 प्रतिशत हो चुकी है। माईकल टेमेर के राष्ट्रपति कार्यकाल के दौरान इसमें तेज़ वृद्धि हुई है। एक वर्ष पहले यह दर 11.7 प्रतिशत थी। सरकार बार-बार झूठे वायदे कर रही है कि इसके द्वारा किये जा रहे आर्थिक सुधारों से बेरोज़गारी घटेगी और अर्थव्यवस्था में मज़बूती आयेगी।
हड़ताल का नेतृत्व भले ही पूँजीवादी तत्वों के हाथ में है, लेकिन इस हड़ताल में मज़दूरों की बड़ी शमूलियत दिखाती है कि हुक्मरानों की नवउदारवादी नीतियों के खि़लाफ़ मज़दूर वर्ग में ज़ोरदार आक्रोश है, क्योंकि ये नीतियाँ जनविरोधी नीतियाँ हैं। भारत में मोदी सरकार इस समय नवउदारवादी नीतियों को ज़ोरशोर से आगे बढ़ा रही है। भारत के मज़दूर वर्ग को भी इन नीतियों के खि़लाफ़ अपने ब्राज़ीली मज़दूर साथियों की तरह बड़े स्तर पर सड़कों पर उतरना होगा।
मज़दूर बिगुल, मई 2017
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