कानपुर में निर्माणाधीन इमारत गिरने से कम से कम 10 मजदूरों की मौत
पूँजीवाद की राक्षसी इमारत को ढहाकर बराबरी की नींव पर नये समाज की इमारत खड़ी करनी होगी, तभी रुकेंगे ऐसे हादसे
अभिषेक, कानपुर
कानपुर के गज्जूपुरवा इलाके में 1 फरवरी, 2017 को एक निर्माणाधीन बहुमंजिला इमारत अचानक ढह गयी। उस समय उसकी सातवीं मंज़िल पर स्लैब ढालने का काम चल रहा था। मलबे में से 10 मजदूरों के शव निकाले गये हैं और दर्जनों मजदूरों बुरी तरह घायल हुए खबर हैं।
प्रदेश में सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी का नेता और व्यापारी महताब आलम इस इमारत को अवैध ढंग से बनवा रहा था। कानपुर विकास प्राधिकरण ने 23 नवम्बर, 2016 को काग़ज़ी कार्रवाई करते हुए उसे एक नोटिस भी दिया था लेकिन न तो बिल्डिंग का काम रुका और न ही प्राधिकरण ने फिर कोई कार्रवाई की। अब यह हादसा हो जाने के बाद महताब आलम के विरुद्ध एफ़.आई.आर. दायर कर ली गयी है और जाँच के लिए दो सदस्यों की एक टीम बना दी गयी है। इस देश में हज़ारों हादसों की जाँच रिपोर्टों की तरह इस रिपोर्ट का भी भविष्य पहले से तय है – प्राधिकरण के दफ़्तर में फ़ाइलों के मलबे में दफ़न हो जाना।
आरजी संख्या 628 व 646 गज्जूपुरवा स्थित 387 स्क्वॉयर मीटर एरिया में मकान बनाने के लिए 5 दिसंबर, 2015 को मेहताब आलम ने केडीए में नक्शा दाखिल किया था। नियमानुसार भूतल और उसके ऊपर दो मंज़िल तक निर्माण का नक्शा दिया गया था। लेकिन लोकेशन प्लान न दिखाने और साइट प्लान स्पष्ट न होने की वजह से केडीए ने ऑब्जेक्शन लगा दिया था। महताब आलम की तरफ से इन ऑब्जेक्शंस को दूर करने के लिए कोई जवाब नहीं लगाया, जिसके बाद केडीए अफसरों ने फाइल बन्द कर दी। महताब आलम और उनकी बेटी के नाम से दो और प्लाटों के नक्शे जमा किये गये थे। केडीए अफसरों के मुताबिक ये दोनों मैप भी पास नहीं हो सके थे। एक में जमीन ग्राम समाज की होने और दूसरे में कोर्ट केस होने की वजह से ऑब्जेक्शन लगाये गये थे। मगर ये सारे ऑब्जेक्शन सिर्फ़ कागज़ पर रहे और प्राधिकरण कर नाक के नीचे सात म़ंजिला इमारत बनकर खड़ी हो गयी। घटिया सामग्री और जल्दबाजी में कराये गये काम के कारण उसे गिरना ही था। बिल्डर शायद सोच रहा था कि बन जाने के बाद उसे बेचकर पैसे लेकर निकल लेगा लेकिन इमारत उतनी भी नहीं चल पायी।
हादसे में घायल एक मज़दूर भूपेन्द्र ने बताया कि उनकी माँ उर्मिला की मौत हो गयी और काम कर रहे भाई कृष्णदास का अभी भी अता-पता नहीं है। बड़ा भाई मुकेश अस्पताल में भर्ती है। कई मज़दूर लापता हैं। मज़दूरों और उनके परिजनों ने जमकर विरोध किया मगर उनकी सुनने वाला कोई नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि सपा नेता के इशारे पर पुलिस ने कई शवों को ग़ायब कर दिया है। प्रशासन की ओर से मुआवजे की कोई ख़बर नहीं है|
आये दिन निर्माण कार्य में होने वाली दुर्धटनाओं में मजदूरों की मौतें होती रहती हैं। कभी कांट्रैक्टर की लापरवाही के कारण तो कभी मालिक द्वारा हड़बड़ी में और अवैध तरीके से काम करवाए जाने के कारण। लेकिन मज़दूरों को मुआवजे के नाम पर मिलती है केवल प्रशासन और राजनेताओं के झूठे वादे और दर-दर की ठोकरें। ज़रा सोचिये, अगर कोई हवाई जहाज दुर्घटना हुई होती तो यह मामला कई दिनों तक राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में रहता और सभी मरने वालों और घायलों के लिए लाखों रुपयों के मुआवजे का ऐलान हो चुका होता। लेकिन इस व्यवस्था में ग़रीबों और मज़दूरों की जान सबसे सस्ती है।
देश में चारों ओर चल रहे अन्धाधुन्ध निर्माण में करीब तीन करोड़ मज़दूर लगे हुए हैं और आये दिन वे जानलेवा दुर्घटनाओं के शिकार होते रहते हैं। लेकिन हर बार ऐसी ही कहानी दोहरायी जाती है। दरअसल, इस पूँजीवादी व्यवस्था की इमारत ही पूरी तरह सड़ चुकी है। जब मज़दूरों के संघर्ष की आँधी इस राक्षसी इमारत को ढहाकर बराबरी की नींव पर नये समाज की इमारत खड़ी करेगी तभी ऐसे मजदूरों पर हो रहे इस तरह के अन्याय रुक सकेंगे।
मज़दूर बिगुल, फरवरी 2017
‘मज़दूर बिगुल’ की सदस्यता लें!
वार्षिक सदस्यता - 125 रुपये
पाँच वर्ष की सदस्यता - 625 रुपये
आजीवन सदस्यता - 3000 रुपये
आर्थिक सहयोग भी करें!
बुर्जुआ अख़बार पूँजी की विशाल राशियों के दम पर चलते हैं। मज़दूरों के अख़बार ख़ुद मज़दूरों द्वारा इकट्ठा किये गये पैसे से चलते हैं।
मज़दूरों के महान नेता लेनिन