पुलिसिया दरिंदगी की एक और मिसाल बना सुल्तानपुर पट्टी
बिगुल संवाददाता
रुद्रपुर (ऊधमसिंह नगर)। आजाद मुल्क और नवोदित उत्तरांचल राज्य के इतिहास में पुलिसिया दमन का एक और काला अध्याय जुड़ गया। ऊधमसिंह नगर के बरा गांव में खाकी वर्दीधारी सरकारी गुण्डा फोर्स (पुलिस) की दरिंदगी को अभी पांच माह ही गुजरे थे कि जिले की गांधी कालोनी (सुल्तानपुर पट्टी) में पुलिसिया ताण्डव की एक और घटना सामने आयी। अभी भी पूरा इलाका खौफजदा है।
28 जनवरी को जिस वक्त ‘गुड फील’ में मदहोश देश के प्रधानमंत्री प्रदेश की राजधानी देहरादून में चुनावी तोहफों की बौछार कर रहे थे, ठीक उसी वक्त राज्य के इस दूसरे हिस्से में पुलिसिया बूटों, लाठियों–संगीनों की धमक के बीच बेबस जनता की चीखों से पूरा क्षेत्र गूंज रहा था। औरतों–बूढ़ों–बच्चों तक की बेरहमी से पिटाई हो रही थी, घर के सामानों को रौंदा–कुचला जा रहा था और भयानक लूटपाट मची हुई थी। खाकी वर्दीधारियों द्वारा यह सारा कुकृत्य जिलाधिकारी और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक के सीधे दिशा–निर्देशन में चल रहा था।
26 जनवरी की रात में सुल्तानपुर पट्टी में छेड़खानी की घटना को स्थानीय पुलिस चौकी द्वारा लीपापोती करने और अभियुक्तों के छुट्टा घूमने से लोगों में पुलिस के प्रति गुस्सा पनप रहा था। गुस्साये ग्रामीणों ने अगले दिन खटीमा–पानीपत राष्ट्रीय राजमार्ग पर सात घण्टे तक जाम लगाये रखा तब कहीं पुलिस ने मामले की रिपोर्ट दर्ज की। इसमें भी पुलिस ने चार अभियुक्तों में से दो मुख्य अभियुक्तों के खिलाफ कोई मामला दर्ज नहीं किया, क्योंकि अभियुक्त प्रभावशाली थे।
‘उत्तरांचल पुलिस आपकी मित्र’ लिखने वाले खाकी वर्दीधारियों के प्रति लोगों में नफरत और गुस्सा भीतर–भीतर सुलगता रहा है। इससे पहले भी पुलिस यहां की तमाम घटनाओं को ऐसे ही निपटाती रही है, अपराधियों को शह देती रही है और तमाम बेगुनाह गरीबों पर रोब गालिब करती रही है। लीपा–पोती की इस घटना ने आग में घी का काम किया। गुस्साये सैकड़ों लोगों की भीड़ ने जाकर पुलिस चौकी को घेर लिया। भीड़ देखकर पुलिस वाले चौकी छोड़कर भाग गये। गुस्सायी भीड़ ने चौकी को खाली पाकर अपना पूरा गुस्सा खाली चौकी पर उतार दिया, वहां तोड़–फोड़ की और आग लगा दिया।
फिर क्या था? घण्टे भर के भीतर तीन थानों की पुलिस फोर्स, रैपिड ऐक्शन फोर्स और पीएसी की बटालियन सुल्तानपुर पट्टी पहुंच गयी। डीएम, एसएसपी सहित पूरे जिले के आला अफसरों का यहां जमावड़ा लग गया। और फिर शुरू हुआ तबाही का वह मंजर जिसके सामने अंग्रेजों की बर्बरता भी फीकी पड़ जाये। इससे मची भगदड़ में 60 साल की एक वृद्ध महिला की मौके पर ही मौत हो गयी। सैकड़ों घायल हुए और सामानों को नष्ट करने और लूटपाट के मंजर ने पूरे इलाके को चीखों–कराहों के साथ वीरानगी में बदल दिया। भयभीत तमाम लोग गांव से ही पलायन कर गये हैं। उधर विभिन्न खतरनाक धाराओं में 75 नामजदों सहित 200 लोगों पर मुकदमे कायम हुए और 10 लोगों पर रासुका ठोंक दिया गया।
सवाल यह उठता है कि आखिर यह नौबत ही क्यों आयी कि पूरी एक भीड़ को पुलिस चौकी पर हमला करना पड़ा। और फिर, क्या पुलिसिया दरिन्दगी की यह पहली घटना है? क्या बेगुनाहों को फंसाने, अपराधियों को संरक्षण देने, गरीब आबादी को लूटने व थैलीशाहों के सामने दुम हिलाने का काम पुलिस नहीं करती है?
महज ऊधमसिंह नगर जिले में पांच माह पूर्व किच्छा थाने के बरा चौकी की पुलिस ने एक अर्धविक्षिप्त व्यक्ति को पेड़ पर लटकाकर ऐसी पिटाई कि उसकी मौके पर ही मौत हो गयी। डेढ़ वर्ष पूर्व पुलिस चार मजदूर नौजवानों को उठा ले गयी और हफ्ते भर बाद उन्हें हापुड़ (गाजियाबाद) में लश्करे तोइबा के खतरनाक आतंकवादी के रूप में पोटा के तहत पकड़ने का दावा किया। उसमें भी डेढ़ वर्ष पूर्व रुद्रपुर के रवीन्द्र नगर में हत्यारे अभियुक्त को पकड़ने की जगह क्षेत्राधिकारी पुलिस के नेतृत्व में इस सरकारी गुण्डा गिरोह ने गरीब बंगाली आबादी पर ऐसा ही कहर बरपा किया था।
यह एक जीता–जागता सच है कि पिछले छप्पन वर्षों के दौरान आजाद देश की पुलिस ने आम जनता का उससे ज्यादा बर्बरतापूर्वक दमन किया है, जितना कि दो सौ वर्षों के दौरान अंग्रेज हुक्मरानों ने किया था। उदारीकरण के इस दौर में तो बौराई पुलिस का दमन और तेज हो गया है। चाहे राज्य की कांग्रेस सरकार हो या केन्द्र की भाजपा नेतृत्व वाली राजग सरकार, सभी दमन के नित नये कीर्तिमान स्थापित कर रही हैं। इन वारदातों से पुलिस के प्रति जनता की नफरत और ज्यादा बढ़ती जा रही है। पुलिस चौकी पर उसका पूरा गुस्सा इसकी एक अभिव्यक्ति मात्र है।
आज चौकी पर हमला करने वालों पर प्रशासन ने रासुका (राष्ट्रीय सुरक्षा कानून) लगा दिया है, लेकिन हत्यारे और दमनकारी शासन–प्रशासन–पुलिस को दण्डित कौन करेगा, यह आने वाला वक्त ही बतायेगा, जब जनता अपने ऊपर होने वाले एक–एक जुल्म का बदला लेगी।
बिगुल, फरवरी 2004
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