काला धन मिटाने के नाम पर नोटबन्दी
अपनी नाकामियाँ छुपाने के लिए मोदी सरकार का एक और धोखा!
बिगुल मज़दूर दस्ता और अन्य जनसंगठनों की ओर से जारी पर्चे के अंश
पिछले 8 नवम्बर की रात से देश भर में अफ़रा-तफ़री का आलम है। बैंकों के बाहर सुबह से रात तक लम्बी-लम्बी कतारें लगीं हैं, सारे काम छोडकर लोग अपनी ही मेहनत और बचत के पैसे पाने के लिए धक्के खा रहे हैं। अस्पतालों में मरीज़ों का इलाज नहीं हो पा रहा, बाज़ार बन्द पड़े हैं, खेती-किसानी के काम रुके हैं, कामगारों को मज़दूरी नहीं मिल पा रही है, आम लोग रोज़मर्रा की मामूली ज़रूरतें तक पूरी नहीं कर पा रहे हैं। नोटबन्दी के कारण अब तक लगभग 50 लोगों की मौत तक हो गयी है। दिलचस्प बात यह है कि देश के बड़े पूँजीपतियों, व्यापारियों, अफ़सरशाहों-नेताशाहों, फिल्मी अभिनेताओं में काले धन पर इस तथाकथित “सर्जिकल स्ट्राइक” से कोई बेचैनी या खलबली नहीं दिखायी दे रही है। जिनके पास काला धन होने की सबसे ज़्यादा सम्भावना है उनमें से कोई बैंकों की कतारों में धक्के खाता नहीं दिख रहा है। उल्टे वे सरकार के इस फै़सले का स्वागत कर रहे हैं। आखिर माजरा क्या है?
क्या है कालेधन की असलियत? दोस्तो, जिस देश और समाज में मेहनत की लूट को क़ानूनी जामा पहना दिया जाय। जहाँ पूँजीपतियों को क़ानूनन यह छूट हो कि वह मेहनतकशों के ख़ून-पसीने को निचोड़कर अपनी तिजोरियाँ भर सकें वहाँ “ग़ैर क़ानूनी” कालाधन पैदा होगा ही। आज देश की 90 फ़ीसदी सम्पत्ति महज़ 10 फ़ीसदी लोगों के पास है और इसमें से आधे से अधिक सम्पत्ति महज़ एक फ़ीसदी लोगों के पास है। यह देश की मेहनत और कुदरत की बेतहाशा लूट से ही सम्भव हुआ है। मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद इसमें बेतहाशा बढ़ोत्तरी हुई है।
साथियो, काला धन वह नहीं होता जिसे बक्सों या तकिये के कवर में या ज़मीन में गाड़कर रखते हैं। सच्चाई यह है कि देश में काले धन का सिर्फ़ 6 प्रतिशत नगदी के रूप में है । आज काले धन का अधिकतम हिस्सा रियल स्टेट, विदेशों में जमा धन और सोने की खरीद आदि में लगता है। कालाधन भी सफेद धन की तरह बाज़ार में घूमता रहता है और इसका मालिक उसे लगातार बढ़ाने की फ़िराक़ में रहता है। आज पैसे के रूप में जो काला धन है वह कुल काले धन का बेहद छोटा हिस्सा है और वह भी लोगों के घरों में नहीं बल्कि बाज़ार में लगा हुआ है। आज देश के काले धन का अधिकांश हिस्सा बैंकों के माध्यम से पनामा, स्विट्ज़रलैंड और सिंगापुर के बैंकों में पहुँच जाता है। आज असली भ्रष्टाचार श्रम की लूट के अलावा सरकार द्वारा ज़मीनों और प्राकृतिक सम्पदा को औने-पौने दामों पर पूँजीपतियों को बेचकर किया जाता है। साथ ही बड़ी कम्पनियों द्वारा कम या अधिक के फर्जी बिलों द्वारा, बैंकों के कर्जों के भुगतान न देने और उसे बाद में बैंकों द्वारा नॉन परफ़ार्मिंग सम्पत्ति घोषित करने और उसका भुगतान जनता के पैसे से करने, बुरे ऋणों (बैड लोन) की माफ़ी और उसका बैंकों को भुगतान जनता के पैसों से करके किया जाता है। पूँजीपतियों द्वारा हड़पा गया यह पैसा विदेशी बैंकों में जमा होता है और फिर वहाँ से देशी और विदेशी बाज़ारों में लगता है। हालाँकि इस भ्रष्टाचार में कालेधन का एक हिस्सा छोटे व्यापारियों और अफ़सरों को भी जाता है लेकिन यह कुल काले धन के अनुपात में बहुत छोटा है।
मोदी सरकार के काले धन की नौटंकी का पर्दाफ़ाश इसी से साफ हो जाता है कि मई 2014 में सत्ता में आने के बाद जून 2014 में ही विदेशों में भेजे जाने वाले पैसे की प्रतिव्यक्ति सीमा 75,000 डॉलर से बढ़ाकर 1,25,000 डॉलर कर दिया जो अब 2,50,000 डॉलर हो चुकी है। केवल इसी से पिछ्ले 11 महीनों में 30,000 करोड़ रुपये का धन विदेशों में गया है। विदेशों से काला धन वापस लाने और भ्रष्ट लोगों को दो दिन में जेल भेजने वाली मोदी सरकार के दो साल बीत जाने के बाद भी एक व्यक्ति भी जेल नहीं भेजा गया। क्योंकि इस सूची में मोदी के चहेते अम्बानी, अडानी से लेकर अमित शाह, स्मृति ईरानी और बीजेपी के कई नेताओं के नाम हैं। क्या हम इन तथाकथित देशभक्तों की असलियत को नहीं जानते जो हर दिन सेना का नाम तो लेते हैं पर सेना के ताबूत में भी इन्होंने ही घोटाला कर दिया था? क्या मध्यप्रदेश का व्यापम घोटाला, पंकजा मुंडे और वसुंधरा राजे के घोटालों की चर्चा हम भूल चुके हैं? क्या हम नहीं जानते कि विजय माल्या और ललित मोदी जैसे लोग हज़ारों करोड़ धन लेकर विदेश में बैठे हैं और यह इन्हीं की सरकार में हुआ। आज देश में 99 फ़ीसदी काला धन इसी रूप में है और हम साफ़-साफ़ जानते हैं कि इसमें देश के नेता-मंत्रियों और पूँजीपतियों की ही हिस्सेदारी है।
अब दूसरी बात, आज देश में मौजूद कुल 500 और 1000 के नोटों का मूल्य 14.18 लाख करोड़ है जो देश में मौजूद कुल काले धन का महज़ 3 फ़ीसदी है। जिसमें जाली नोटों की संख्या सरकारी संस्थान ‘राष्ट्रीय सांख्यकीय संस्थान’ के अनुसार मात्र 400 करोड़ है। अगर एकबारगी मान भी लिया जाय कि देश में मौजूद इन सारे नोटों का आधा काला धन है (जो कि है नहीं) तो भी डेढ़ फ़ीसदी से अधिक काले धन पर अंकुश नहीं लग सकता। दूसरी तरफ जिन पाकिस्तानी नकली नोटों की बात कर मोदी सरकार लोगों को गुमराह कर रही है वह तो 400 करोड़ ही है जो आधा फ़ीसदी भी नहीं है। दूसरे, सरकार ने 2000 के नये नोट निकाले हैं जिससे आने वाले दिनों में भ्रष्टाचार और काला धन 1000 के नोटों की तुलना में और बढ़ेगा। इससे पहले चाहे 1948 या 1978 में नोटों को हटाने का फ़ैसला हो, इतनी बुरी मार जनता पर कभी नहीं पड़ी। इससे यह सहज ही समझा जा सकता है कि मोदी सरकार का यह पैंतरा जनता को बेवकूफ़ बनाने के सिवा और कुछ नहीं है। यही भाजपा 2014 में 2005 के पहले वाले नोट बन्द करने के फ़ैसले पर धमाचौकड़ी मचाते हुए विरोध कर रही थी!
फिर मोदी सरकार ने क्यों लिया यह फ़ैसला?
दोस्तो, मोदी सरकार जब आज देश की जनता के सामने अपने झूठे वायदों, बेतहाशा महँगाई, अभूतपूर्व बेरोजगारी और किसान-मज़दूर आबादी की भयंकर लूट, दमन, दलितों, अल्पसंख्यकों पर हमले तथा अपनी साम्प्रदायिक फासिस्ट नीतियों के कारण अपनी ज़मीन खो चुकी है तब फिर एक बार नोट बन्द कर काले धन के जुमले के बहाने अपने को देशभक्त सिद्ध करने की कोशिश कर रही है और अपने को फिर जीवित करना चाहती है। दूसरी बात जब उत्तर प्रदेश और अन्य जगहों पर चुनाव आसन्न है तो ऐसे में जनता की आँख में अपने झूठे प्रचारों के माध्यम से एक बार और धूल झोंकने की साज़िश है। साथ ही अनेक ख़बरें और तथ्य यह बता रहे हैं कि इस घोषणा से पहले ही भाजपा ने अपने लोगों के नोट बदलने का इन्तज़ाम कर लिया है। उदाहरण के लिए नोट बन्दी की घोषणा से कुछ ही घण्टे पहले पश्चिम बंगाल भाजपा ने अपने खाते में 1 करोड़ की रकम जमा करवायी।
तीसरी बात जो सबसे महत्वपूर्ण है, देश में मन्दी और पूँजीपतियों द्वारा बैंकों के कर्जे़ को हड़प जाने के बाद जनता की गाढ़ी कमाई की जो मुद्रा बैंकों में जमा होगी उससे पूँजीपतियों को फिर मुनाफ़ा पीटने के लिए पैसा दिया जा सकेगा। पूँजीपतियों द्वारा लाखों करोड़ रुपये के कर्जे़ बैंकों से लिये गये हैं और उनको चुकाया नहीं गया है। आज सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक 6,00,000 करोड़ रुपये की भयंकर कमी से जूझ रहे हैं। पूँजीपतियों को फिर ऋण चाहिए और सरकार अब जनता के पैसे की डाकेज़नी कर बैंकों को भर रही है जिससे इनको ऋण दिया जायेगा, जिसमें 1,25,000 करोड़ रिलायंस और 1,03,000 करोड़ वेदांता को दिये जाने हैं। इस कतार में कई और बड़े पूँजीपति भी शामिल हैं।
इस नोट बन्दी में जनता के लिए क्या है? साथियो, मोदी सरकार की नोट बन्दी जनता के लिए वास्तव में एक और धोखा, एक और छल-कपट, एक और लूट के अलावा कुछ नहीं है। इस बिकाऊ फासीवादी प्रचार तंत्र पर कान देने की बजाय ज़रा गम्भीरता से सोचिये कि आज बैंकों और एटीएम पर लम्बी कतारों में कौन लोग खड़े हैं? क्या उसमें टाटा, बिड़ला, अम्बानी, अडानी या कोई मोदी और अमित शाह या आपके आसपास का कोई बड़ा व्यापारी, नेता या कोई बड़ा अफसर खड़ा है? तो क्या देश का सारा काला धन 5,000 से 15,000 रुपये महीना कमाने वाले मज़दूर और आम जनता के पास है? जो दिल्ली में रिक्शा चलाने वाला मज़दूर है, दिहाड़ी मज़दूर है, रेहड़ी खोमचा लगाता है, छोटी-मोटी नौकरी करने वाली आम जनता है, वह बैंकों के सामने सुबह से शाम तक लाइन में लगी है। कितनों के पास बैंक खाते नहीं हैं, कितनों के पास कोई पहचान पत्र नहीं हैं। लोगों के पास आने-जाने के पैसे नहीं हैं, राशन के पैसे नहीं हैं। दलालों की चाँदी है। अफवाहें उड़ रहीं हैं; कहीं नमक महँगे दामों पर बिक रहा है तो कहीं 500 के नोट 300 और 400 रुपये में लिये जा रहे हैं। यही हाल पूरे देश का है। करोड़ों गरीब लोग जिन्होंने अपनी सालों की कमाई को मुश्किल दिनों के लिए इकट्ठा करके रखा था, सब अपने ख़ून-पसीने की कमाई के काग़ज़ बन जाने से बेचैन हैं। कोई बेटी की शादी को लेकर परेशान है तो कोई अस्पताल में परेशान है। एक महिला लाश लेकर रो रही है कि अंतिम संस्कार के पैसे नहीं है। क्या हम नहीं जानते हैं कि इस देश में अभी भी एक भारी आबादी के पास तो बैंक खाते नहीं हैं, जो अपनी मेहनत पर दो जून की रोटी कमाती है और उसी में से पेट काटकर कुछ पैसे बचाती है? वह आज क्या करे? क्या हम तमाम तकलीफ़ों को चुपचाप सहेंगे क्योंकि मामला “देश” और “कालेधन” का है?
ये भी मत भूलिये कि ऐसे नये नोटों के छपने का जो लगभग 15-20,000 करोड़ रुपया खर्च आयेगा वह भी जनता की गाढ़ी कमाई से ही वसूला जायेगा। उत्पादन और कारोबार की गतिविधियों के ठप्प होने के कारण बढ़ने वाली महँगाई का बोझ भी जनता से ही वसूला जायेगा।
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