श्रम-विभाग, पुलिस-प्रशासन और ठेकेदारों की लालच ने ली 15 मज़दूरों की जान
ग़ाज़ियाबाद संवाददाता
शहीद नगर, साहिबाबाद उत्तर प्रदेश के जि़ला ग़ाजि़याबाद का एक घनी आबादी वाला गरीबों का रिहाइशी इलाका है। 11 नवम्बर को सुबह करीब 4 बजे यहाँ जैकेट बनाने वाले एक वर्कशाप में आग लगी जिसकी वजह से 15 मज़दूर जलकर और दम घुटने से मर गये। जिस बिल्डिंग में आग लगी वह एक तीन मंजि़ला इमारत है। इसके ऊपर की दो मंजि़लों पर, जो किसी मुर्गीखाने के दड़बे से मिलती-जुलती है, करीबन 10 साल से ठेकेदार रिज़वान और नज़ाकत अली जैकेट सिलाई का वर्कशाप चला रहे थे। इनमें से हर एक के पास सिलाई की 15-15 मशीनें थी और कुल मिलाकर 30 मज़दूर दोनों वर्कशापों में काम कर रहे थे।
घटना की रात मज़दूरों ने सुबह 1.30 बजे तक काम किया था और फिर वे वहीं सो रहे थे। आग संभवत: बिजली के शार्ट सर्किट से लगी। काम से थके मज़दूर गहरी नींद में सो रहे थे और ज़्यादातर को आग का पता तक नहीं चला। केवल 2 मज़दूर ही छत से कूदकर अपनी जान बचा पाए। आग लगने की ख़बर 4 बजे तक इलाके में फैल चुकी थी और स्थानीय लोगों ने पुलिस तथा फायर ब्रिगेड को तत्काल ही सूचना दे दी थी। फायर ब्रिगेड की गाड़ी डेढ़ घंटे बाद मौके पर पहुंची लेकिन छोटी टंकी की गाड़ी होने की वजह से इसका पानी तुरंत ही ख़त्म हो गया। तब स्थानीय लोगों ने पास के बहते हुए गंदे नाले से आग बुझाने की कोशिशों को जारी रखा। इसके काफ़ी देर बाद ही फायर ब्रिगेड की दूसरी गाड़ी वहाँ पहुँची। फायर ब्रिगेड की इस लापरवाही पर प्रशासन का कहना है कि आग बुझाने वाली गाडियाँ समय पर पहुँच गयी थी और अगर कहीं देर हुई तो इसकी वजह सड़क पर लगा हुआ जाम थी। स्थानीय लोगों ने बताया कि सुबह 4 बजे इलाके में कोई जाम नहीं रहता है। उन्होंने यह भी बताया कि सबसे पहले पास की चौकी से पुलिस के केवल 3 सिपाही घटनास्थल पर पहुँच थे लेकिन वे तमाशबीन बने रहे और उन्होंने कोई पहलकदमी नहीं दिखाई। इस बीच मौहल्ले के अकरम, नौशाद और ताहिर किसी तरह जलती हुई इमारत के अंदर पहुँचे और घायल मज़दूरों तक मृतकों को बाहर निकाल लाए जिन्हें बैट्री रिक्शा, टैम्पो और एक पीसीआर वैन में डालकर दिल्ली के जी टी बी अस्पताल में पहुँचाया गया। महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि अभी तक एम्बुलेंस सेवा उपलब्ध नहीं करवाई गयी थी और सात बजे जाकर एक एम्बुलेंस घटनास्थल पर पहुँची। 13 मज़दूर मौके पर ही दम तोड़ चुके थे और 2 ने अस्पताल में आखिरी सांसे ली। एक मज़दूर अभी भी जि़न्दगी और मौत से जूझ रहा है। अग्निकांड के प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि फायर ब्रिगेड वाले बिना किसी तैयारी के आए हुएे थे। वे केवल 2 लोग थे और उनके पास बचाव के कोई उपकरण जैसे हेल्मेट, अग्निरोधी सूट आदि कुछ भी नहीं थे। उन्होंने पानी का छिड़काव करने के लिए स्थानीय लोगों को ही पाइप पकड़वा दी। एक व्यक्ति ने बताया कि इस पूरे घटनाक्रम के दौरान कुछ पुलिस वाले नाश्ता करने के लिए चौराहे की तरफ चले गये, कुछ लोगों को निर्देश दे रहे थे और रौब झाड़ रहे थे ओर कुछेक किनारे पर खड़े होकर बातें कर रहे थे और हँस रहे थे। उनमें से एक कह रहा था ‘‘जब फैक्ट्री है तो आग तो लगेगी ही’’।
इस इलाके में जैकेट बनाने वाले करीब 150-200 वर्कशाप हैं। इसके साथ ही यहाँ बड़े पैमाने पर जूते भी बनाए जाते है ओर कुछ जगह जीन्स रंगाई का भी काम होता है। यह सभी वर्कशाप अवैध हैं और पुलिस तथा श्रम-विभाग की मिलीभगत के बिना नहीं चल सकते। इन वर्कशापों में तैयार किया गया माल दिल्ली के स्थानीय बाज़ारों और फुटपाथों पर लगने वाली दुकानों में सप्लाई किया जाता है। मज़दूरों ने बताया कि एक जैकेट बनाने के पीछे एक मज़दूर को करीब 30-40 रुपये तक पीसरेट मिलता है। यदि मज़दूर को प्रतिदिन 400-500 रुपये की दिहाड़ी बनानी हो तो उसे 14-16 घंटे काम करना पड़ता है। मज़दूरों ने बताया कि इन वर्कशापों में कोई भी श्रम क़ानून लागू नहीं होता और पुलिस वाले इन अवैध कारखानों को चलते रहने की एवज़ में हर महीने अपना हिस्सा लेकर चले जाते है। इन वर्कशापों के मालिक छोटी पूँजी के मालिक हैं जिन्हें मज़दूर ठेकेदार कहते हैं। यह ठेकेदार 10 से 50 मशीनें डालकर इलाके में जगह-जगह अपने वर्कशाप चला रहे हैं और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के इलाकों से मज़दूरों को बुलाकर अपने यहाँ काम करवाते हैं। यह मज़दूर अपने गाँव, जि़ला या इलाका के आधार पर छोटे-छोटे गुटों में बंटे हुए हैं और इनके बीच वर्ग एकता का अभाव है।
मज़दूर बिगुल, अक्टूबर-नवम्बर 2016
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